BHOPAL. आपातकाल (emergency) एक ऐसा वक्त था जिसे लोकतांत्रिक व्यवस्था का काला अध्याय कहा जाता है। जिनको मीसा कानून (MISA Law) के तहत जेल में बंद किया गया था इसलिए उनको मीसाबंदी (MISA Bandi) कहा जाता हैं। लेकिन अब उनका नाम लोकतंत्र सेनानी हो गया है। 46 साल बाद भी जब ये दिन आता है तो इन नेताओं के सामने वो घटनाएं ऐसे आ जाती हैं मानों कल की ही बात हो। द सूत्र ने आपातकाल के बारे में पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी (Former Governor Kaptan Singh Solanki), पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा (Former MP Raghunandan Sharma) और लोकतंत्र सेनानी संघ के प्रमुख तपन भौमिक (Loktantra Fighter Sangh chief Tapan Bhowmik) से बात की। आइए आपको बताते हैं आपातकाल की कहानी, इन नेताओं की जुबानी।
कप्तान की जगह कोमल सिंह सोलंकी की गिरफ्तारी
कप्तान सिंह सोलंकी बताते हैं कि मैं उन दिनों ग्वालियर में कॉलेज में प्रोफेसर था। इंग्लिश पढ़ाया करता था। जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पुलिस ने संघ से जुड़े नेताओं को तलाशकर जेल भेजना शुरू कर दिया। मेरी जगह कोमल सिंह सोलंकी की गिरफ्तारी कर ली गई। कोमल सिंह सोलंकी को पुलिस ने कप्तान सिंह सोलंकी समझ लिया। लेकिन इसमें राज की बात ये है कि उस समय भिंड के तत्कालीन एसपी अयोध्यानाथ पाठक (SP Ayodhyanath Pathak) थे जो बाद में डीजीपी भी बने। मेरी उनसे अच्छी मित्रता था। इसीलिए उन्होंने मुझे गिरफ्तार न कर कोमल सिंह (Komal Singh) को गिरफ्तार कर लिया। बाद में कोमल सिंह को छोड़ दिया गया और एक महीने बाद मेरी गिरफ्तारी हुई। जिस सीआईडी के पुलिसकर्मी ने मेरी गिरफ्तारी की उसने कहा कि मैंने इसलिए आपको गिरफ्तार करने में देरी की क्योंकि मेरे बेटे ने कहा कि सर को गिरफ्तार नहीं करना। कांग्रेस (Congress) नेताओं के दबाव में मेरी गिरफ्तारी की गई थी।
जब रघुनंदन शर्मा बने रामनारायण
रघुनंदन शर्मा बताते हैं कि मेरी उम्र उस समय करीब 29 साल थी। मैं मंदसौर में संघ का जिला बौद्धिक प्रमुख था और जेपी आंदोलन से जुड़ा हुआ था। जब संघ के नेताओं को पकड़-पकड़ कर जेल में ठूंसा जा रहा था तब मेरे नाम का भी वारंट निकला। इसकी खबर मिलते ही मैं अंडरग्राउंड हो गया। मैंने अपना नाम रामनारायण रख लिया। मुझे संघ ने जेल गए लोगों के परिवारों को आर्थिक मदद के साथ—साथ राशन—पानी और बीमारी के इलाज की जिम्मेदारी सौंपी थी। पूरे आपातकाल के दौरान मैं चंदा इकट्ठा कर इन परिवारों की मदद करता रहा। मैं तब तक अपने घर नहीं गया जब तक कि सारे लोग जेल से बाहर नहीं आ गए। मैंने 15—20 लोगों की टोलियां बनाकर जेल भरो आंदोलन शुरु किया। हमारा मार्गदर्शन बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे स्व प्यारेलाल खंडेलवाल करते थे। खंडेलवाल भी कभी रामलाल तो कभी श्यामलाल के नाम से बैठकें आयोजित करते थे।
शिवराज की हुई डंडों से पिटाई
तपन भौमिक बताते हैं कि मैं बीएचईएल के महात्मा गांधी स्कूल में था और शिवराज सिंह चौहान मॉडल स्कूल में 11वीं के छात्र थे। पुलिस ने मुझे पकड़ा और कोतवाली थाने में बंद कर दिया। फिर पुलिस ने संघ नेता सूर्यकांत केलकर को पकड़ा। उनकी डायरी में शिवराज सिंह चौहान का नाम लिखा था। पुलिस ने शिवराज सिंह चौहान को पकड़कर हबीबगंज थाने में बंद कर दिया। उस समय हम दोनों की उम्र करीब 16 साल थी। पुलिस ने शिवराज सिंह की डंडों से खूब पिटाई की। इतनी पिटाई की थी आज भी बादल गरजने पर उनकी हड्डियों में दर्द होता है। आपातकाल का विरोध करने पर हम लोगों की जमकर पिटाई हुई थी। मुझे और शिवराज पर भाषण देने की जिम्मेदारी थी। पुलिस उन्हें हबीबगंज स्टेशन स्थित थाने में ले गई और शरीर में चार-चार इंच की जगह छोड़कर जमकर डंडों से पीटा। पिटाई के वक्त शिवराज ने पुलिसकर्मी से कहा था- मैं बहुत दुबला-पतला हूं, ज्यादा पिटाई मत करो, क्या पता आने वाले समय में हमारी ही सरकार बन जाए। इतना सुनते ही पुलिसकर्मी ने गुस्से से उनकी और पिटाई की।
कैलाश सारंग ने पिता की तरह रखा ध्यान
तपन भौमिक ने आगे बताया कि हमारे साथ जेल में कैलाश सारंग ने बड़ी भूमिका निभाई। हम सभी की पूरे परिवार की तरह ही जेल में देखभाल की। एक संरक्षक पिता की भूमिका में कैलाश सारंग रहे। हम सभी के खाने की जिम्मेदारी, स्वास्थ्य से लेकर हर छोटी से छोटी जरूरत का कैलाश सारंग ने ध्यान रखा. किसी की तबीयत खराब हो या किसी को चाय या दूध की छोटी से छोटी किसी भी चीज की जरूरत हो, कैलाश सारंग हर एक युवा का ध्यान रखते थे। एक दिन हम सभी कैलाश जी के पास जाकर बोले- सारंगजी बाटियां कब बनेंगी. उस पर उन्होंने कहा रुको, 15 दिन बाद बाटी का नंबर आएगा। इंतजार करने की बात इसलिए कही गई थी क्योंकि इतने दिनों में 5 से 6 किलो घी इकट्ठा हो जाता। बिना घी से बाटियां नहीं बनतीं। बाटियां बनवाने के लिए कैलाश जी ने हमारी रोटियां पर घी लगाना बंद कर दिया और 15 दिन तक उसे जमा करते रहे। 15 दिनों बाद जब घी इकट्ठा हो गया तब हम सभी को हमारी मनपसंद बाटियां खिलाई गईं।