पन्ना जिले की खुशहाली, विकास और हितों को क्यों किया जा रहा नजरअंदाज ?

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Arun Singh
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पन्ना जिले की खुशहाली, विकास और हितों को क्यों किया जा रहा नजरअंदाज ?

panna. बुंदेलखंड क्षेत्र (Bundelkhand region) के सबसे पिछड़े और उपेक्षित पन्ना जिले के हितों और यहां के लोगों की खुशहाली को हमेशा क्यों नजरअंदाज किया जाता है? अंग्रेजों के जमाने में यहां केन नदी पर बने बरियारपुर डैम (Bariyarpur Dam) का पानी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में पहुंचता रहा और पन्ना जिले के किसान सिर्फ सूखे की विभीषिका से जूझने को विवश रहे। अब तो इस जिले की प्राकृतिक संपदा (natural wealth) जो यहां के जीवन का आधार है, उसे भी नष्ट करने की पूरी तैयारी की जा रही है। जैव विविधता से परिपूर्ण पन्ना जिले का वह जंगल जो न सिर्फ राष्ट्रीय पशु बाघ का घर है, बल्कि यहां सैकड़ों प्रजाति के वन्य जीव और पक्षी रहते हैं। यह जंगल कभी आदि मानवों का भी आश्रय स्थल रहा है, जिसके चिन्ह यहां की पहाड़ियों व गुफाओं में शैल चित्रों के रूप में आज भी मौजूद हैं। लेकिन केन-बेतवा लिंक परियोजना के मूर्त रूप लेने पर पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र में 25 लाख से भी अधिक पेड़ जहां बेरहमी से काट दिए जाएंगे, वहीं बाघों व वन्य जीवों का घर भी डूब जाएगा। इतना ही नहीं हजारों साल पुराने आदिमानवों द्वारा बनाए गए शैल चित्र भी नष्ट हो जाएंगे। अपनी अनमोल प्राकृतिक धरोहरों को खोने तथा जीवनदायिनी केन नदी की अविरल धारा को रोकने की इतनी बड़ी कुर्बानी देने के बाद पन्ना जिले के लोगों को क्या मिलेगा, यह बताने वाला कोई नहीं है।





उल्लेखनीय है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa link project) के तहत ढोंढन गांव के पास केन नदी पर प्रस्तावित बांध का यदि निर्माण कराया गया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। डूब में आने वाला घना वन क्षेत्र बाघ और विलुप्ति होते गिद्धों का प्रिय रहवास है। बांध बनने पर इस वन क्षेत्र के तकरीबन 25 लाख से भी अधिक वृक्षों का सफाया हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 'केन्द्रीय साधिकार समिति' (सीईसी) की रिपोर्ट के मुताबिक पन्ना टाइगर रिज़र्व (Panna Tiger Reserve) की 9000 हेक्टेयर जमीन जहां डूब जाएगी, वहीं 10,500 हेक्टेयर जमीन में वन्यजीव (Environmental Damage) को नुकसान होगा। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने में कम से कम डेढ़ से दो दशक लगेंगे, जिसमें हजारों करोड़ रुपए खर्च होंगे, वहीं भारी भरकम मशीनों का उपयोग होगा। हजारों मजदूर भी वन्य प्राणियों के इस रहवास में कार्य करेंगे। इन हालातों में यहां नैसर्गिक जीवन जीने वाले वन्य प्राणी कैसे रह पायेंगे? इस बीच पर्यावरण को कितना नुकसान होगा तथा केन नदी का नैसर्गिक प्रवाह थमने से नीचे के सैकड़ो ग्रामों के लोगों को किस तरह के दुष्परिणाम भोगने पडेंग़े, इस बारे में सोचना भी जरूरी है।





बाघों का घर उजाडना ही था तो फिर बसाया क्यों ?





मौजूदा समय में पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण कर रहे हैं। समूचे बुन्देलखण्ड में एक मात्र बाघों का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। इसमें उल्लेखनीय सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। मालूम हो कि बढ़ती आबादी के दबाव में पन्ना जिले का सामान्य वन क्षेत्र तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है, काफी हद तक सुरक्षित है। लेकिन इसे भी उजाडऩे की तैयारी की जा रही है, जो पर्यावरणीय दृष्टि से दुर्भाग्यपूर्ण है। लोग पूछ रहे हैं कि पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को अथक मेहनत और करोड़ों रुपए खर्च कर जब आबाद कर दिया गया और पर्यटन विकास की उम्मीद जागी, तब फिर उसे क्यों उजाड़ा जा रहा है। जब उजाडऩा ही था तो फिर बसाया क्यों?





नदी सूखेगी तो चौपट हो जाएगी खेती





केन नदी के किनारे स्थित पन्ना जिले के बगौंहा गांव के किसान व पूर्व सरपंच दिनेन्द्र सिंह (75 वर्ष) बताते हैं कि बंधा बनने से बहुत नुकसान होगा। जब ऊपर छेंका (रोक) लग जाएगा, बंधा बनेगा तो नदी सूख जाएगी। केन नदी के किनारे के गांवों में खेती किसानी चौपट हो जाएगी, पीने के पानी की भी दिक्कत होगी। दिनेन्द्र सिंह का कहना है कि बांध बनने से हमारा सिर्फ नुकसान होना है। यहां चारों तरफ जंगल लगा है, नदी के सूखने पर जंगली जानवर प्यासे मरेंगें। क्योंकि जंगल और नदी से ही जानवर जीवित हैं। उन्होंने बताया कि केन किनारे बांदा तक सैकड़ों की संख्या में गांव बसे हैं, इन सभी गांवों में



परेशानी आएगी। इसलिए हम चाहते हैं कि केन नदी पर यह बंधा न बने तो बहुत अच्छा होगा। केन नदी के किनारे स्थित ग्रामों के रहवासी विस्थापन का दंश नहीं, बल्कि मूलभूत सुविधाएं और विकास चाहते हैं।





केन हमारी जिन्दगी है





केन्द्र सरकार की इस बहुचर्चित परियोजना के बारे में तटवर्ती ग्रामों के लोग यह सोचते हैं कि केन का पानी बेतवा में और बेतवा का पानी केन में डाला जाएगा, जिससे बाढ़ नहीं आएगी। बाढ़ की विभीषिका अनेकों बार झेल चुके लोग इस भ्रांति के चलते निश्चिंत थे कि नदी जोड़ योजना से उनके जीवन में कोई खलल नहीं पड़ेगा, लेकिन बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिल जाएगी। जबकि वास्तव में इस योजना से केवल केन नदी का पानी बेतवा में डाला जाएगा, बेतवा का पानी केन में नहीं आएगा। ग्रामीणों को जब इस तथ्य का पता चला तो वे हैरान रह गए। हकीकत जानकर ग्रामीण अपने को अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और कहते हैं कि यदि ऐसा है तो नदी जोड़ परियोजना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि केन हमारी जिन्दगी है।





बक्सवाहा जंगल में हीरा खनन पर रोक





पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे छतरपुर जिले के बक्सवाहा जंगल (Buxwaha Forest) में हीरा खनन (Diamond Mining) परियोजना का स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाकर विरोध हुआ था। परिणामस्वरूप बीते साल मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बक्सवाहा जंगल में हीरा खनन पर रोक लगा दी है। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल की ही तरह बक्सवाहा जंगल में भी रॉक पेंटिंग पाई गई हैं, जो पाषाण युग के मध्यकाल की बताई जा रहीं हैं। हीरा खनन से इन पेंटिंग को नुकसान पहुंच सकता है। जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से खनन पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए हैं। हाईकोर्ट हीरा खनन पर रोक लगा सकती है तो पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बांध का निर्माण कैसे संभव है? यहां के जंगल में प्राचीन रॉक पेंटिंग तो है ही यह बाघों और विलुप्त हो रहे गिद्धों का घर भी है।





परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगी हैं याचिकाएं





इस बहुचर्चित परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लगी हैं, जिनका अभी निराकरण नहीं हुआ। परियोजना के डीपीआर को दोषपूर्ण बताते हुए पन्ना के समाजसेवी इंजी. योगेन्द्र भदौरिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका लगाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इस याचिका में पर्यावरणीय क्षति व बाघों के रहवास को होने वाले नुकसान के साथ परियोजना के डीपीआर पर सवाल उठाये गए हैं। सबसे अहम बात यह है कि पुनर्विचार याचिका लगाने वाले इंजी योगेन्द्र भदौरिया आरएसएस और बीजेपी से जुड़े व्यक्ति हैं। यही वजह है कि इस याचिका ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है। भदौरिया ने केन-बेतवा रिवर लिंकिंग परियोजना की डीपीआर को चैलेंज करते हुए कोर्ट से अनुरोध किया है कि परियोजना को दोबारा रिव्यू कर उसकी कमियों को दूर किया जाए। हाईकोर्ट द्वारा याचिका को केन परियोजना से संबंधित दूसरे मामलों के साथ सुनवाई करने का निर्देश दिया गया है। भदौरिया ने बताया कि यह परियोजना की डीपीआर तकनीकी रूप से दोषपूर्ण है तथा क्रियान्वयन योग्य नहीं है। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में जलभराव, निर्माण योजना तथा सिंचाई क्षेत्र के बढ़त संबंधी आंकड़े तथा विवरण गलत हैं।





सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु







  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के अंतर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।



  • सीईसी (CEC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिए 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है, बल्कि बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बंट जाएगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।


  • परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई में 44.983 लाख रुपए व्यय आएगा। यदि स्थानीय स्तर पर गांव के पानी को गांव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाए तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है, बल्कि जंगल, बाघ और वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।


  • सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिए सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुए कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।


  • सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में द्रढ़ता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाए। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों के हित में हैं और न ही लंबे समय तक समाज के हित में है।






  • देश और दुनिया में सफलतम बाघ पुनर्स्थापना के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो बाघों का मुख्य रहवास है, वहां बांध के निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने कई सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) ने 30 अगस्त 2019 को सौंपी विस्तृत रिपोर्ट में कई बुनियादी सवाल उठाए थे, जिन पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में बड़ा प्रश्न यह है कि कोर्ट में विचाराधीन मामलों पर निर्णय होने से पहले केन बेतवा लिंक परियोजना पर काम कैसे शुरू हो सकता है?



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