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संजय गुप्ता, Indore. 'हम क्लस्टर नीति( clusters policy) लेकर आए हैं, इसमें एसपीवी यानि स्पेशल परपज व्हीकल बनाकर उद्योगपतियों को सीधे जमीन देंगे और एक साल में क्लस्टर तैयार हो जाएगा।' यह वादे और दावे किसी और के नहीं, बल्कि प्रदेश के एमएसएमआई मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा(MSMI Minister Omprakash Sakhlecha) के हैं, जो उन्होंने लगभग तीन साल पहले किए थे। दूसरी ओर विभाग के अधिकारी भी मंत्री के वादों और दावों को लगातार दोहराते आ रहे हैं। मगर बड़ा सवाल यह है कि आखिर जमीन कब मिलेगी, कब काम शुरू होगा, कब फैक्ट्री लगेगी, लोगों को कब तक रोजगार मिलेगा और कब शुरू होगी इडंस्ट्री जब द सूत्र की टीम इन क्लस्टर्स में पहुंची तो दावे और हकीकत में बेहद अंतर नजर आया। कहीं आधी अधूरी बिल्डिंगें, कहीं बिजली का कनेक्शन नहीं तो कहीं जमीन का पेंच। जिन तीन क्लस्टर्स को शुरू किया जाना था उसमें होना क्या था और हुआ क्या? इसे लेकर द सूत्र ने विशेष पड़ताल की, जिसमें निकलकर आया कि फिलहाल सब हवाहवाई है। अभी अधिकारी भी सही तारीख नहीं बता पा रहे हैं... कन्फेक्शनरी क्लस्टर में जमीन लेने वाले उद्योगपतियों की पूंजी फंसी हुई है। यही हाल फर्नीचर क्लस्टर और टॉय क्लस्टर के हैं। इधर, सरकार और प्रशासन की लेटलतीफी और हवाहवाई दावों-वादों के चलते उद्योगपतियों ने भी निवेश करने से साफ इनकार कर दिया...
अब तक न तो कोई फैक्ट्री शुरू हुई और न ही किसी को रोजगार मिलने के आसार
क्लस्टर नीति के तहत एक साल में फैक्ट्री खड़ी कर बेरोजगारों को रोजगार देने का भरोसा दिलाया गया था। वह भी आज से दो साल पहले... सरकार ने तीन तरह के क्लस्टर- कन्फेक्शनरी क्लस्टर, टॉय क्लस्टर और फर्नीचर क्लस्टर तैयार करने का वादा किया था। मंत्री ने इसके लिए अच्छी खासी रकम लगाने की बात भी कही थी, लेकिन आलम यह है कि अब उद्योगपति भी पीछे हटने लगे हैं। उन्होंने प्रोजेक्ट करने से साफ इनकार कर दिया है। मंत्री ने यहां तक कहा था कि ऐसी पहल प्रदेश में पहली बार हो रही है। मंत्री की बातों में आकर उद्योगपति मोटी रकम लगाकर विदेशों से मशीन तक ले आए और रिस्क उठाकर निर्माणाधीन संरचनाओं में रखवा रहे हैं, लेकिन क्लस्टर में अब तक न तो कोई फैक्ट्री शुरू हुई और न ही किसी को रोजगार मिलने के आसार नजर आ रहे हैं। फर्नीचर क्लस्टर से जुड़े उद्योगपति हरीश नागर और कन्फेक्शनरी क्लस्टर में जमीन लेने वाले सनी नागर सरकार की लेटलतीफी से खासे नाराज हैं। वह तो प्रोजेक्ट से विड्रॉ करने का मन बना चुके हैं।
क्या कहते हैं उद्योगपति
कंफेक्शनरी क्लस्टर में जमीन लेने वाले उद्योगपति सनी राजानी कहते हैं, हमारी पूंजी फंसे ढाई साल हो गए हैं, अभी भी कब काम पूरा होगा नहीं पता। साथी उद्योगपति तो मशीन तक ले आए हैं, हर दिन लागत बढ़ रही है। वहीं फर्नीचर क्लस्टर से जुडे उद्योगपति हरीश नागर कहते हैं, वन विभाग का मुद्दा आ गया है, नहीं तो काम शुरू हो जाता, शासन, प्रशासन कोशिश तो पूरी कर रहा है, अब इस विवाद को लेकर क्या कर सकते हैं। वहीं देरी होने के चलते कुछ उद्योगपतियों ने अब यहां निवेश करने से ही इंकार कर दिया है। उधर ट्वाय क्लस्टर को लेकर उद्योगपति कहते हैं कि जितना सोचा था उतना बड़ा तो नहीं लेकिन हां क्लस्टर में जमीन मिल गई है जल्द काम होगा, सफल होने पर फिर बडा क्लस्टर भी आएगा।
राऊ में खुलना था प्रदेश का पहला कन्फेक्शनरी क्लस्टर
प्रदेश का पहला कन्फेक्शनरी क्लस्टर राऊ में खुलना था। हालांकि इसे बनाने के आदेश तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने दिए थे और काम एमपीआईडीसी के जिम्मे था। लोगों ने प्लॉट भी ले लिए पूंजी भी लगा दी। आदेश के मुताबिक अक्टूबर 2020 में फैक्ट्री शुरू होनी थी, लेकिन ऐसा आज तक नहीं हो सका। मौके पर पहुंची द सूत्र की टीम ने देखा कि यहां-वहां रेत-गिट्टी, सीमेंट और लोहे की आधी-अधूरी संरचनाएं हैं और फैक्ट्री का नामोनिशान तक नहीं है। अब बात करते हैं टॉय क्लस्टर की, रंगवासा में बनना था इसके लिए सरकार का लंबी-चैड़ी जमीन देने का वादा था... लेकिन हकीकत में यहां सिर्फ तीन हेक्टेयर पर ही काम हो रहा है, जिसमें बमुश्किल से 10-12 फैक्ट्री ही लग पाएंगी। यानी नाम मात्र की इंडस्ट्री और महज हजार-बारह सौ लोगों के लिए रोजगार। द सूत्र की टीम ने एमपीआईडीसी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर से लेटलतीफी का कारण पूछा तो वह गोलमोल जवाब देते नज़र आए। एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर रोहन सक्सेना दावा करते हैं कि एक माह में कंफेक्शनरी क्लस्टर के सभी काम पूरे हो जाएंगे। केवल बिजली कनेक्शन बाकी है। वहीं जिला उद्योग केंद्र की प्रभारी महाप्रबंधक संध्या बामनिया कहती हैं, टॉय क्लस्टर का काम तेजी से जारी है। फर्नीचर क्लस्टर में जरूर वन विभाग का इश्यू है, उसे भी जल्द ठीक कर लेंगे।
200 करोड़ से अधिक का निवेश और 5000 से अधिक लोगों को रोजगार देने का वादा
अकेले कन्फेक्शनरी क्लस्टर में 11 हजार वर्गफीट से लेकर दो एकड़ तक के प्लॉट की बात कही गई थी। कन्फेक्शनरी एसोसिएशन ने कहा था कि इस जगह पर 200 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश हो सकेगा और मूल उद्देश्य 5000 से अधिक लोगों को रोजगार देना है लेकिन मौजूदा हाल देखकर लगता नहीं कि ऐसा कुछ हो पाएगा। अब आपको बतातें है कि आखिर ये क्लस्टर कॉन्सेप्ट क्या है। जानकार बताते हैं कि यह व्यावसायिक रूप से आवासीय क्षेत्रों का आर्थिक विकास है, जो खुले स्थानों और पर्यावरणीय संसाधनों की स्थायी रूप से रक्षा करता है। इस लिहाज से कॉन्सेप्ट तो बहुत अच्छा है लेकिन क्या हमारी सरकार इसे इसके मूल रूप में क्रियान्वित कर सकेगी। फिलहाल की प्रगति देखकर ऐसा तो नहीं लगता... इसके बावजूद अधिकारी जल्द से जल्द काम पूरा करने का दंभ भर रहे हैं।