BHOPAL. मध्यप्रदेश में 17 जून से सरकारी स्कूलों के साथ-साथ सूबे में 274 सीएम राइज स्कूल भी ओपन हुए। वैसे तो दावा प्राइवेट स्कूलों की तरह ही इन स्कूलों में सभी सुविधाएं मिलने का था, पर 1 महीने पहले जब ये सीएम राइज स्कूल खुले तो आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शुरू हो गए। जिस हो—हल्ले के साथ इन स्कूलों को शुरू करने की बात कही गई थी, वे जमीनी स्तर पर कोरी घोषणाएं ही निकली। सरकार का सीएम राइज स्कूल ड्रीम प्रोजेक्ट है और शासन इन स्कूलों को लेकर कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात ये लगाया जा सकता है कि एक महीने बाद भी सीएम राइज स्कूलों की सूरत नहीं बदल सकी है।
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1 महीना बीत जाने के बाद द सूत्र की टीम राजधानी के उसी सीएम राइज स्कूल पहुंची, जहां स्कूल ओपन होने पर 17 जून को द सूत्र ने जमीनी हकीकत जानी थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक महीना बीत जाने पर भी स्कूल की सूरत नहीं बदल सकी। भोपाल के बर्रई सीएम राइज स्कूल में आज भी वही समस्या है जो पहले थी। 17 जून को भी इस स्कूल में पानी की समस्या थी, आज भी है। स्टूडेंट घर से भरकर पानी ला रहे हैं। स्टूडेंट अभी भी पुरानी यूनिफॉर्म पहनकर ही स्कूल आ रहे हैं, जबकि दावे 1 महीने के अंदर नई यूनिफॉर्म दिए जाने के थे।
नर्मदा लाइन आने तक घर से ही लाना होगा पानी
सीएम राइज स्कूल की जो गाइडलाइन है उसके अनुसार बच्चों को आरओ ड्रिकिंग वॉटर दिया जाना है, पर भोपाल के बर्राई स्कूल में तो स्थिति ही उलट है। स्कूल की ओर से नगर निगम आयुक्त से पत्राचार हो गया है, 20 हजार रूपए भी जमा हो गए, लेकिन अब तक पानी की व्यवस्था नहीं हो सकी। जब तक नर्मदा पाइप लाइन नहीं आएगी तब तक तो स्टूडेंट को पीने का पानी अपने-अपने घरों से ही लाना होगा।
इंग्लिश का टीचर नहीं, साइंस के 4 पहुंच गए
बर्रई स्कूल में जिस टीचर ने सीएम राइज के लिए क्वालीफाई किया, उसने अब तक ज्वाइनिंग ही नहीं दी। वहीं इस स्कूल में साइंस के 4 टीचर पहुंच गए। दरअसल ऐसे टीचर जो पहले से ही सीएम राइज स्कूलों में पढ़ा रहे थे, यदि वे क्वालीफाई करते तो उन्हें उसी स्कूल में रखना था। बर्राई स्कूल के पुराने साइंस टीचर क्वालीफाई करने से वहीं रहे, लेकिन शासन की ओर से 3 और साइंस के टीचर को स्कूल में ज्वाइनिंग दे दी। अब स्थिति यह है कि इन साइंस के टीचर्स से अन्य विषय पढ़वाए जा रहे हैं।
ग्राउंड से एक पत्थर तक नहीं हटा
ये बात सही है कि सीएम राइज स्कूलों में ओडिटोरियम, जिम, अत्याधुनिक लैब, स्विमिंग पुल जैसी व्यवस्थाएं होनी है, जो नई बिल्डिंग बन जाने के बाद ही स्टूडेंट को मिल सकेंगी। 274 स्कूलों में से जिन स्कूलों के कैंपस में नई बिल्डिंग बनाने की जगह हैं ऐसे 160 स्कूलों की डिजाइन तैयार कर ली गई है। पर ऐसी सुविधाएं जिनका बिल्डिंग से कोई लेना देना नहीं वे भी अभी इन स्कूलों से स्टूडेंट को नहीं मिल रही है। न तो यहां खेल प्रशिक्षक है, न ही खेल सामग्री। मैदान के समतलीकरण की बात छोड़िए, एक महीने में यहां एक पत्थर तक हटाया नहीं जा सका है। बर्राई स्कूल के ग्राउंड में जगह-जगह झाड़ियां लगी है। बच्चों ने बताया कि पूरे मैदान में जगह-जगह पत्थर निकले हुए हैं, जिसके कारण खेलते समय कई बार चोट भी लग जाती है।
स्टूडेंट को लाने कब घूमेंगे बसों के पहिए!
सीएम राइज स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट के लिए फ्री बस सेवा भी दी जाना है, पर लोक शिक्षण संचालनालय की कड़ी शर्तों के कारण मामला फस गया है। स्टूडेंट को घरों से लाने ले जाने के लिए इन बसों के पहिए कब घूमेंगे इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। बच्चे फिलहाल अपनी व्यवस्थाओं से ही स्कूल आ रहे हैं। बसों के लिए पहले डीपीआई से टेंडर निकाले गए थे, जिनमें किसी भी एजेंसी ने हिस्सा ही नहीं लिया था। बाद में अपर संचालक डीएस कुशवाह ने जानकारी दी थी कि अब जिला स्तर पर ही बसों के लिए टेंडर जारी किए जाएंगे। इसके बावजूद यह सुविधा अब तक शुरू नहीं हो सकी है।
अब भी रंगरोगन पर ही जोर
स्कूल का सीएम राईज होने का मतलब सिर्फ बिल्डिंग का रंगरोगन ही समझा जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि बाकी तो वही पुरानी लचर व्यवस्था ही नजर आ रही है। राजधानी भोपाल के बर्रई स्कूल में एक महीने पहले भी पूरा जोर बिल्डिंग के रंगरोगन पर ही दिया गया था। अब भी जब सुविधाओं के बारे में स्कूल की प्राचार्य सबीहा अली से बात की तो उन्होंने कहा कि स्कूल में वॉल पेटिंग कराई जा रही है, जिससे स्टूडेंट को जानकारियां और प्रेरणा भी मिल सकेगी। हालांकि जब अन्य सुविधाओं के बारे में पूछा गया तो वह ठीक से जवाब नहीं दे पाई।