GWALIOR : मेयर के चार्ज लेने के पहले ही अफसरों ने पेयजल व्यवस्था निजी हाथों में देने का निर्णय ले लिया,जानिए क्या बोली मेयर

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Dev Shrimali
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GWALIOR : मेयर के चार्ज लेने के पहले ही अफसरों ने पेयजल व्यवस्था निजी हाथों में देने का निर्णय  ले लिया,जानिए क्या बोली  मेयर

GWALIOR .  ग्वालियर नगर निगम में 57  वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। साढ़े पांच दशक बाद यहाँ कांग्रेस की मेयर बनी है।  नयी मेयर और परिषद अपना कार्यभार संभाल भी पाती इससे पहले ही अधिकारियों ने मिलकर शहर की पेयजल व्यवस्था भी ठेके पर उठाने का फैसला कर लिया । अब इस मामले को लेकर नयी परिषद् और अधिकारियों के बीच टकराव की नौबत भी आ सकती है। निगम आयुक्त इसे फायदे का सौदा और अनुबंध का हिस्सा बता रहे हैं जबकि नव निर्वाचित मेयर ने कहाकि परिषद् में देखेंगे।  अगर कोई <परिवर्तन नहीं हुआ तो ग्वालियर शहर  में हो रही अब  पेयजल सप्लाई का काम आने वाले दिनों में प्राइवेट कंपनी के हाथों में होगा। ग्वालियर नगर निगम के अफसरों  ने इसकी पूरी तैयारी भी कर ली है। जल्द ही प्राइवेट कंपनी पेयजल सप्लाई के संचालन और संधारण का काम देखेगी। इसके एवज में नगर निगम द्वारा प्राइवेट कंपनी को एक  लगभग ढाई करोड़ भी हर साल अदा की जाएगी।



राजस्थान की पुगलिया कम्पनी को दिया ठेका



नगर निगम ने राजस्थान की पुगलिया कम्पनी को पेयजल व्यवस्था का ठेका दिआ है जिसमें सभी प्रकार के संधारण और डिस्ट्रीब्यूशन शामिल है।  अनुबंध के अनुसार तिघरा से लाकर पानी को पीने योग्य बनाने वाले मोतीझील प्लांट का सञ्चालन और संधारण सब इसी कम्पनी के पास रहेगा। इसको लेकर नगर निगम के पीएचई अफसरों और पुगलिया कम्पनी के कारिंदो की एक बैठक नगर निगम आयुक्त के सामने संपन्न भी हो चुकी है जसिएक आधार पर अनुबंध का मसौदा भी फायनल हो चुका है। अनुबंध पत्र तैयार होते ही यह व्यवस्था कम्पनी के सुपुर्द हो जाएगा।  इस कम्पनी के संचालक विष्णु प्रकाश पुगलिया है।



हर तीन माह में करना होगा ढाई करोड़ का भुगतान




इस अनुबंध के अनुसार शहर की पेयजल व्यवस्था संभालने वाली पुगलिया कम्पनी को नगर निगम द्वारा हर तीन माह बाद लगभग ढाई करोड़ रुआपये भुगतान करना पडेगा। हर दो वर्ष बाद इस राशि में दो फीसदी का इजाफा भी किया जाएगा। एक मौते अनुमान के अनुसार कम्पनी  को हर साल नगर निगम की तरफ से 9 करोड 45 लाख का भुगतान किया जाएगा। इस तरह कुल 5 सालों में नगर निगम की तरफ से कंपनी को कुल ₹47 करोड़ 25 लाख का भुगतान किया जाएगा। इसके साथ ही उपभोक्ताओं से हर महीने पानी के बिल की वसूली ही  नगर निगम का अमला ही करेगा।



मॉनिटरिंग और शिकायतों का निराकरण नगर निगम का रहेगा जिम्मा प्राइवेट कंपनी द्वारा शहर में वाटर सप्लाई का संचालन और संधारण किया जाएगा, लेकिन वाटर सप्लाई से संबंधित शिकायतों के निराकरण का काम नगर निगम का अमला ही करेगा। इसके अलावा वाटर सप्लाई की मॉनिटरिंग का काम भी नगर निगम के अमले द्वारा किया जाएगा। यदि वाटर सप्लाई में कोई समस्या आती है तो उपभोक्ता को नगर निगम में ही शिकायत दर्ज करानी होगी।




नगर निगम का कहना ये फायदे का सौदा



नगर निगम  आयुक्त का कहना है कि यह निजीकरण जैसी चीज नहीं है और न ही हमने कोई नया निर्णय लिया है यह अमृत योजना का ही एक हिस्सा है।  अमृत योजना के तहत ही ग्वालियर नगर की पेयजल व्यवस्था को  ठीक करने के लिए अनेक टंकियों का निर्माण किया गया है और लाइनों का दुरस्तीकरण से लेकर पेयजल सप्लाई का दायरा बढ़ाने के लिए नयी लाइनें भी बिछाही गयीं है। जब अमृत योजना के तहत ठेके हुए थे तो उसमें पांच वर्षों तक इनके संधारण का जिम्मा भी उनका था।  ये उसी का हिस्सा है। नगर निगम में पीएचई के अधीक्षण यंत्री आरएलएस मौर्य का कहना है कि यह अमृत योजना का वैसे ही हिस्सा है जैसा नेशनल हाइवे ,स्टेट हाइवे आदि की बनने वाली सड़कों को लेकर अनुबंध होता है की पांच साल तक उनका संधारण ठेकेदार ही करेगा।  ठीक इसी तरह अमृत योजना की भी इसी ारः की शर्त थी।  मौर्य कहते हैं कि यह नगर निगम क लिए फायदे का सौदा भी है।  अभी निगम संधारण पर हर वर्ष 15 से 20 करोड़ रुपये खर्च करती है और अब इस अनुबंध के तहत ठेकेदार को बमुश्किल दस लाख रूपये का ही भुगतान करना होगा। इसमें पूरा सिस्टम उन्हें संभालना पडेगा।



पहले भी असफल हुए है निजीकरण के प्रयास



ग्वालियर नगर निगम में इससे पहले भी निजीकरण के प्रयास किये जा चुके हैं। नगर निगम ने ग्वालियर शहर की सफाई और कचरा प्रबंधन के लिए इको ग्रीन नमक कम्पनी को ठेका दिया था लेकिन यह कम्पनी शहर को साफ़ करने के मामले में एकदम फिसड्डी साबित हुई और आखिरकार अपना बोरिया बिस्तर समेटकर भाग गयी। इससे सबक न लेते हुए अब निगम ने पाना पेयजल सम्बन्धी काम ठेके पर दे दिया। इसकी बजह है अनुभव की कमी। ीको ग्रीन कम्पनी के पास भी उस काम का कोई ज्यादा जमीनी अनुभव नहीं था जबकि पुगलिया कम्पनी के पास भी ऐसा कोई अनुभव है ,इसका पता अफसरों को नहीं है।  वे कहते हैं की इस कम्पनी ने राजस्थान,गुजरात आदि में पेयजल स्ट्रक्चर को निर्माण में काफी काम किया है लेकिन संधारण और वितरण का अनुभव क्या है ? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। दूसरा सवाल यह कि पीने के पानी का सम्बन्ध सीधे जान से है और इसमें कोई लापरवाही होती है तो नियंत्रण कैसे होगा ? इस सवाल का भी उत्तर किसी के पास नहीं है। अधीक्षण यंत्री कहते है ये सब हम लोग देखेंगे।



मेयर बोली करेंगे विचार



ग्वालियर नगर निगम की नव निर्वाचित मेयर डॉ शोभा सिकरवार ने शपथ लेने के बाद अपनी प्राथमिकताये बताई।  जब उनसे पेयजल व्यवस्था ठेके पर देने के मामले पर पूछां तो उन्होंने स्पष्ट कहाकि इसे पार्षद में देखेंगे। इससे साफ़ जाहिर है कि इस मामले को लेकर आगे परिषद् में टकराव होना तय है।    



पहले फेल हो चुका है निजीकरण का प्रयोग



 सफाई का काम भी प्राइवेट हाथों में सौंपा था, यह काम ईको ग्रीन कम्पनी को सौंपा गया था जो पूरी तरह विवादास्पद रहा आखिरकार कंपनी रातों रात अपना सामान समेंटकर भाग निकली


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