भोपाल. कमला नेहरू अस्पताल की आग (Kamla Nehru Hospital Fire) में अब तक 7 बच्चों की मौत की खबर है लेकिन सरकार की ओर से 4 बच्चों की मौत की पुष्टि की गई है। ये हादसा नहीं था बल्कि लापरवाही थी। इसका खुलासा अस्पताल में मौजूद एक चश्मदीद (Eye witness) ने किया है। द सूत्र को पता चला कि अस्पताल प्रशासन को आधा घंटे पहले शॉर्ट सर्किट की जानकारी मिल गई थी, लेकिन प्रशासन ने यह कहकर टाल दिया था कि ये तो होता रहा है। सीहोर (Sehore) के आरिफ खान ने बताया कि वार्ड (Children Ward Fire) में ऊपर की लाइन में फॉल्ट बन रहा था। लाइन में धीरे-धीरे स्पार्क हो रहा था। मैंने मैडम को घटना से आधे घंटे पहले बताया था कि इस शॉर्ट सर्किट से आग लग जाएगी। उन्होंने शॉर्ट सर्किट होते हुए देखा भी था लेकिन किया कुछ नहीं। वे बोलीं- यहां ऐसा होता रहता है।
लापरवाही देख दूसरे अस्पताल में बच्चे को भर्ती कराया
आरिफ के भांजे को डेंगू (Dengue) हुआ है। इसके इलाज के लिए उन्होंने अपने भांजे को अस्पताल में भर्ती कराया था। जब ये हादसा हुआ, तब आरिफ वार्ड में ही मौजूद थे। उन्होंने बताया कि हमने आधे घंटे पहले बता दिया था कि वार्ड में आग लगेगी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सबसे पहले हम लोग होशियार हो गए थे। हमने अपने बच्चे को जबर्दस्ती निकालकर दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया था।
दो महीने पहले की घटना से नहीं सीखा सबक
अस्पताल की कुछ नर्सों ने द सूत्र को बताया कि शॉर्ट सर्किट के कारण ये हादसा हुआ है। इससे दो महीने पहले भी AC में शॉर्ट सर्किट के कारण इसी वार्ड में हादसा हुआ था। लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) भी कमला नेहरू अस्पताल पहुंचे। उन्होंने घटना के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि शॉर्ट सर्किट के कारण इतना बड़ा हादसा, फायर सिस्टम क्या कर रहा था? जिम्मेदारी फिक्स होनी चाहिए। एक हाईकोर्ट के जज इसकी जांच करें। जांच वो लोग कर रहे हैं जो शायद खुद दोषी हों।
आग से बचाने के कोई इंतजाम नहीं थे
8 मंजिल के इस अस्पताल में आग से बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं थे। शॉर्ट सर्किट से आग का विकराल होना फायर सेफ्टी सिस्टम (Fire Safety System) की पोल खोलता है। अस्पताल में ऑटोमेटिक हाइड्रेंट भी खराब पड़ा था। खास बात ये है कि करीब 6 महीने पहले ही नगर निगम (BMC) ने अस्पताल और बड़ी इमारतों का ऑडिट करवाया था, जो सिर्फ कागजों में ही हुआ था।
कमला नेहरू अस्पताल में आग: 7 नवजातों की मौत खबर, पर पुष्टि नहीं; कांग्रेस का हंगामा
भोपाल के हॉस्पिटल में आग: 12 साल बाद गूंजी किलकारी, घर के चिराग को लील गईं लपटें
CPA ने नहीं कराया फायर सिस्टम का मेंटेनेंस
अस्पताल में आग लगने और समय रहते काबू न पाने की सबसे बड़ी वजह जिम्मेदारों की लापरवाही है। हमीदिया और कमला नेहरू में इलेक्ट्रिकल और फायर हाईडेंट के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी केपीटल प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन (CPA) की गैस राहत विंग की है। अगर फायर सिस्टम ठीक होता तो आग पर काबू पाया जा सकता था। लेकिन सीपीए के अधिकारियों ने इसका मेंटनेंस नहीं कराया। इस आपराधिक लापरवाही के लिए अधीक्षण यंत्री देवेंद्र तिवारी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई। लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
मैनेजमेंट सिस्टम फेल
हमीदिया और कमला नेहरू अस्पताल के मैनेजमेंट (Hospital Management) के लिए मैनेजर नितिन अग्रवाल, असिस्टेंट मैनेजर महेंद्र सोनी और बायोमेडिकल इंजीनियर वैभव जैन की नियुक्ति की गई है। शुरुआती जांच में सामने आया है कि कमला नेहरू में आग वेंटिलेटर जलने या वार्मर फटने की वजह से लगी है। मशीनों के मेंटेनेंस की सामूहिक जिम्मेदारी इन तीनों अधिकारियों की है। सूत्रों ने बताया कि खास तौर पर वैभव जैन को वेंटिलेटर की ही जिम्मेदारी दी गई है। बता दें कि इन तीनों अधिकारियों की सैलरी करीब 50 से 60 हजार रुपए है।
डीन और अधीक्षक जिम्मेदार
हमीदिया, सुल्तानिया और कमला नेहरू तीनों ही अस्पताल गांधी मेडिकल कॉलेज (Gandhi Medical College) से संबंधित है। अस्पतालों के संचालन और सुपर विजन का काम डीन डॉ. जितेन शुक्ला के ऑफिस से ही होता है। लेकिन डीन ऑफिस ने भी समय रहते व्यवस्थाओं का ऑडिट नहीं किया। दूसरी तरफ सीपीए की तरफ से बयान सामने आ रहा है कि कमला नेहरू में इलेक्ट्रिकल से संबंधित मेंटेनेंस GMC प्रशासन देख रहा था। हादसे से अधीक्षक डॉ. लोकेंद्र दवे की लापरवाही भी सामने आई है। बार-बार आगजनी की घटनाएं होने के बावजूद डॉ. दवे ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए।