Bhopal. बीजेपी में कितनी और बीजेपी। वैसे बीजेपी के संदर्भों में ये सवाल कम ही सुनने को मिलता है। पार्टी विथ डिसिप्लीन और पार्टी विथ डिफरेंसिस का स्लोगन बुलंद करने वाली बीजेपी अक्सर गुटबाजी (factionalism) से इंकार करती रही है और बहुत चतुराई से ये इल्जाम कांग्रेस (Congress) पर शिफ्ट करती रही है। कांग्रेस तो कई सालों से गुटबाजी को लेकर बदनाम है। लेकिन बीजेपी के हालात भी कुछ जुदा नहीं हैं। पार्टी विथ ए डिफरेंस वाली पार्टी में आपसी डिफरेंसेस कम नहीं है। ये बात अलग है कि बीजेपी में अनुशासन की डोर इतनी मजबूत रही है कि अब तक ये गुटबाजी खुलकर सामने नहीं आ सकी। लेकिन अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं अलग-अलग खेमे साफ दिखाई देने लगे हैं। शिव के राज में महाराजा की एंट्री के बाद से कई समीकरण बदले हैं। शिव के सामने अब विष्णु भी सिर उठाए खड़े हैं। खुद शिवराज का राज तो चलना ही है। तीनों दिखते एक हैं लेकिन अंदर खानों का माहौल कुछ अलग है। जो ये बताता है कि निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक टिकिट तय करने में जोरदार रस्साकशी होने वाली है। खासतौर से निकाय चुनाव में जो ज्यादा दम दिखाएगा और जीत दिलाएगा धाक तो उसकी जमनी ही है। इसलिए ये तय मान लीजिए कि निकाय चुनाव प्रत्याशी से पहले दिग्गज नेताओं के लिए बड़ा इम्तिहान साबित हो गए हैं।
विधानसभा चुनाव की तैयारी
सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद ये तय हो गया है कि मध्यप्रदेश में अब स्थानीय निकाय चुनाव कभी भी हो सकते हैं। जिस ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) को लेकर बीजेपी अब तक अड़ी रही। वही ओबीसी आरक्षण अब इस चुनाव की नैयार पार लगाएगा। अरसे से टल रहे निकाय चुनाव आखिरकार होने वाले हैं। लेकिन टाइमिंग बड़ी गजब की है। इधर राजनीतिक दल निकाय चुनावों से निपटेंगे उधर विधानसभा चुनाव (assembly elections) की तैयारियों में जुट जाएंगे। अगले साल नवंबर तक मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने की पूरी संभावना है।
अंडर करंट का तापमान बहुत बढ़ा
इन चुनावों की सुगबुगाहट के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस में टिकिट को लेकर जमावट होनी शुरू हो गई है। खासतौर से बीजेपी में, जिसमें ऊपर से सब कुछ शांत नजर आ रहा है। लेकिन अंडर करंट का तापमान बहुत बढ़ा हुआ है। राजनीतिक दलों के लिए ये सिर्फ चुनाव हैं। लेकिन बीजेपी के दिग्गज नेताओं के लिए परीक्षा की घड़ी है। इन्हें खुद को इस इम्तिहान में साबित करना है। पंद्रह साल तक बखूबी सत्ता पर राज कर चुके शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को भी इस इम्तिहान से गुजरना है। शिव को परीक्षा देनी होगी तो बचेंगे विष्णु भी नहीं। चुनावी अग्नीपरीक्षा की दहक का सामना उन्हें भी करना है। बीजेपी में शामिल हुए दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक बार फिर ये साबित करना होगा कि प्रदेश न सही कम से कम ग्वालियर चंबल में महाराजा का इकबाल अब भी बुलंद है। क्योंकि इसी परीक्षा के नतीजे ये तय करेंगे कि बीजेपी में किसका सिक्का चलेगा।
खेमे के अंदर खेमा, उस खेमे का भी खेमा
बीजेपी का हाल इन दिनों कुछ ऐसी ही उलझी हुई पहेली बना हुआ है। जहां दिग्गजों को अपनी साख मनवानी है। इसके लिए जोर आजमाइश का दौर शुरू हो चुका है या बहुत जल्द शुरू होने को है। इसमें फायदा किसका होगा और नुकसान किसका होगा। ये तय होने में तो वक्त लगेगा लेकिन ये तय है कि बात बीजेपी से ज्यादा नेताओं के खेमे की होगी। जिसका खेमा दमदार होगा पार्टी में रसूख भी उसी का कायम होगा। एक बार और बता दें ये खेमेबाजी कई लेवल में बंटी हुई है।
राजधानी में सिंधिया का दरबार
चुनावी सुगबुगाहट शुरू होने से पहले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने राजधानी भोपाल में अपना दरबार सजा लिया है। वो यहां सरकारी बंगले में रह कर ही अपना नेटवर्क मजबूत करेंगे। सीएम हाउस से बमुश्किल दो किमी की दूरी पर स्थिति उनके महलनुमा बंगले में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की भीड़ भी जुटने ही लगी है। उनका पुराना रिकॉर्ड देखकर ये अंदाजा लगाना भी आसान है कि अपने समर्थकों को बनाए रखने के लिए वो एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे।
बीजेपी के प्रमुख खेमे
दूसरी तरफ वीडी शर्मा है। अपने फैसलों से अक्सर वो सत्ता पर संगठन को हावी करने की कोशिश करते रहे हैं। निकाय चुनाव से पहले उनके समर्थक भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। तो इस बार वीडी शर्मा (VD Sharma) भी दम दिखाने से पीछे हटेंगे, ऐसा लगता नहीं है। तीसरा खेमा स्वयं शिवराज सिंह चौहान हैं। प्रदेश के मुखिया होने के नाते सबसे मजबूत खेमा और नेता कहे जा सकते हैं। लेकिन महाराज की एंट्री ने सिनेरियो में काफी हद तक बदलाव किया है। इसलिए किसकी कितनी चलती है और किस अंचल में चलती है ये देखना बहुत ही दिलचस्प होने वाला है।
खेमेबाजी इतने पर ही खत्म नहीं होती। ये कई जगह शाखाओं में भी बंटी हुई हैं। खासतौर से मालवा रीजन में। जहां कैलाश विजयवर्गीय का एकछत्र राज था। जिसमें सेंध लगाई सिंधिया समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट ने। सीएम खास शंकर ललवानी भी यहां एक अलग पावर सेंटर बन चुके हैं। यानी मालवा में भी डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से ज्योतिरादित्य सिंधिया का दखल रहेगा। पूर्व सीएम उमा भारती भी बुंदेलखंड पर थोड़ा हक तो जता ही सकती हैंय़ नरेंद्र सिंह तोमर भी बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन निगम मंडल में जिस तरह उनकी जगह सिंधिया गुट को तवज्जो मिली उसे देखते हुए लगता है कि इस बार भी उनकी दाल ज्यादा नहीं गलेगी।
किसके समर्थकों को कितनी टिकट मिलेंगी
बीजेपी ने वैसे कभी गुटबाजी की बात नहीं मानी। लेकिन इस बार खेमे साफ दिखाई दे रहे हैं। इन खेमों के दबदबे का अंदाज थोड़े वक्त में हो ही जाएगा। हर खेमे के सामने अपनी एक अलग चुनौती है। इसकी शुरूआत अपने समर्थकों को टिकट दिलाने से होगी। उसके बाद उन्हें बड़ी संख्या में जीता कर भी लाना होगा। सबसे ज्यादा जीते हुए प्रत्याशियों का नेता ही असल नेता बनने का हकदार हो जाएगा। यही इम्तिहान तय करेगा कि विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में किसका दबदबा सबसे दमदार होगा। यूं समझिए कि बीजेपी का हर बड़ा नेता एक टास्क पर निकला है। जिसमे खुद सीएम भी शामिल हैं, जो इस टास्क का सबसे बेहदरीन परफोर्मर होगा वही असली प्रमोशन का भी हकदार होगा।