योगेश राठौर, INDORE. केक्स एंड क्राफ्ट के ऑनर मनीष लुल्ला की आत्महत्या से उनके परिजन के साथ ही सभी करीबी गहरे सदमे मे हैं। मनीष को जानने वाला कोई भी यह विश्वास करने को तैयार नहीं है कि उनके जैसा जिंदादिल और समय अपने वालों के साथ खड़ा होने वाला व्यक्ति ऐसा कदम उठा सकता है। मनीष और जैस्मिन की जोड़ी को लोग शहर में आदर्श कपल के रूप में देखते थे। जैस्मिन को जब कुछ साल पहले कैंसर का पता चला तो मनीष ना खुद हारे और ना ही जैस्मिन को हारने दिया। अपनी जिंदगी को बचाने के लिए मनीष ने मुंबई और इंदौर के बीच दिन-रात एक कर दिया, कहां कैसे बेहतर ट्रीटमेंट हो सकता है वह पता करा और वह कराया। हर पल जैस्मिन के साथ उम्मीद बनकर खड़े रहे कि उन्हें कुछ नहीं होगा और वही हुआ। यह विश्वास काम आया और जैस्मिन इस घातक बीमारी से विजेता बनकर उभरी और इसका पूरा श्रेय वह मनीष को ही देती रही।
नहीं मिला कोई सुसाइड नोट
पुलिस के बताए घटनाक्रम के अनुसार पत्नी जैस्मिन और उनके मित्रों ने कई बार मनीष को फोन किए लेकिन उन्होंने नहीं उठाए, वह रात करीब नौ बजे अपने फ्लैट पहुंची तो बैल नहीं बजी और ना ही दरवाजा खुला, फिर किसी को बुलाकर चाबी बनवाई और रात करीब साढे दस बजे दरवाजा खुलवाया तो देखा मनीष ने दुपट्टे से फांसी लगा ली थी। पत्नी जैस्मिन वहीं बेहोशी की हालत में आ गई। फिर भाई धीरज लुल्ल और उनके मित्रों को फोन किए गए। निजी अस्पातल ले गए लेकिन वहां मृत घोषित कर दिया गया। बुधवार शाम को रीजनल पार्क मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया गया। मनीष की पत्नी जैस्मिन के साथ एक बेटा और बेटी है।
100 आउटलेट खोलने की थी प्लानिंग
मनीष और जैस्मिन इस बीमारी से विजयी होने के बाद यहीं नहीं रूके अब उनका मिशन था अबने आउटलेट की संख्या पूरे भारत में खोलने की और कुछ ही साल में इसे 100 तक पहुंचाने की। इसी काम में दोनों पति-पत्नी जुट गए। लगातार लोगों से मिलना और बिजनेस को आगे बढ़ाने की योजना बनाना, मेहनत करना यही उनका काम था।
भैय्या, यह खाकर देखो, नया बनाया है
कुछ साल पहले खुले उनके केक्स एंड क्राफ्ट ने लोगों के दिल में जगह बनाई तो इसका सबसे बडा कारण इस जोड़ी का प्रेम था, जो भी आता तो वह नई सामग्री टेस्ट कराते, भैय्या या दीदी कहकर ही संबोधित करते और बड़े मनुहार से सामग्री टेस्ट कराते और बच्चों के लिए ऐसे ही पैक करते देते थे। डिजाइनिंग केक में उन्होंने नया मुकाम हासिल किया, क्योंकि वह इसमें केक नहीं बनाते, बल्कि पूछते थे क्या मौका है, बच्चा क्या पसदं करता है, इस आधार पर वह उसमें भावनाएं जोड़कर वह नहीं डिजाइन करते थे, जिससे वह केक नहीं रह जाता था, बल्कि पूरी भावनाएं बन जाता था।