JABALPUR:प्राकृतिक खाद और कीटनाशक से किसान कर रहे बीमार मिट्टी का उपचार, 150 ने की शुरूआत हजार ने कराया पंजीयन

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Rajeev Upadhyay
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JABALPUR:प्राकृतिक खाद और कीटनाशक से किसान कर रहे बीमार मिट्टी का उपचार, 150 ने की शुरूआत हजार ने कराया पंजीयन

Jabalpur. जबलपुर में प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। सिंथेटिक खाद और कीटनाशकों से लगातार होती मिट्टी की उर्वर क्षमता और धीरे-धीरे बंजर हो रही जमीन से त्रस्त किसानों ने कैमिकल मुक्त खेती करने की इच्छा भी जाहिर की है। शुरूआती तौर पर करीब 150 किसानों ने प्राकृतिक तत्वों से कृषि करना शुरू कर दिया है तो हजार से ज्यादा किसान इस प्रकार की खेती के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। 



हरितक्रांति में नवाचार की पहल



प्राकृतिक खेती किसान पहले भी करते थे। लेकिन ज्यादा फसल के चक्कर में उन्होंने इस पद्धति को छोड़ दिया है। वहीं श्रमिकों की बढ़ती मजदूरी ने फसल कटाई और गहाई के बजाय हार्वेस्टर का प्रयोग मजबूरी बन चुका है। अंधाधुंध रसायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से कैंसर और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों के रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। इसलिए ऐसी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें कैमिकल का उपयोग नहीं किया जाए। बीज से लेकर फसल को उपजाऊ बनाने के लिए सभी तत्व प्राकृतिक हों। 



जबलपुर में सातों विकासखंड में किसानों ने प्राकृतिक खेती के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। सबसे ज्यादा संख्या बरगी, शहपुरा और कुंडम ब्लॉक में है। इनमें भी आदिवासी समाज के कृषकों का रुझान इस तरह की खेती की तरफ ज्यादा दिखाई दे रहा है। कई किसान ऐसे भी हैं जो एक या दो एकड़ के रकबे में इस प्रकार की खेती कर रहे थे। 



बीजामृत का निर्माण



बीज जनित और मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज शोधन प्रक्रिया बीजामृत कहलाती है। इससे बीज के अंकुरित होने की क्षमता बढ़ती है। वे जल्दी एवं अधिक मात्रा में उगते हैं। इसे तैयार करने में भी गाय का गोबर, गोमूत्र, मेड़ की मिट्टी और चूने का उपयोग किया जाता है। 



नीमास्त्र के जरिए कीटों का नाश



प्राकृतिक खेती में कीटनाशक भी प्रकृति में मौजूद चीजों से बनाए जाते हैं। इसमें नीम की पत्तियां, गोमूत्र, नीम की खली, देशी गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है। वहीं ब्रम्हास्त्र में गोमूत्र, सीताफल, धतूरा, बेल, करंज और अरंडी की पत्ती का उपयोग होता है। 



प्राकृतिक खेती का होता है प्रशिक्षण



उप परियोजना संचालक आत्मा उमेश कटारे ने बताया कि प्राकृतिक खेती के लिए बाहर से कुछ नहीं लेना होता है, सारी चीजें आसपास से जुटानी पड़ती हैं। प्रकृति में यह तत्व पहले से मौजूद थे, लेकिन कैमिकल के कारण वे नष्ट होते गए। उन्होंने बताया कि जिले के हर विकासखंड में प्राकृतिक खेती के लिए 15-15 किसानों का चयन किया गया है। उनके लिए निशुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसमें अधिकारी समय-समय पर खेती के तरीके बताते हैं। इसके अतिरिक्त अलग-अलग विकासखंडों के क्लस्टर भी तैयार किए गए हैं। उन्हें रबी के सीजन के लिए प्राकृतिक खेती के लिए तैयार किया जा रहा है। भारत कृषक समाज महाकोशल प्रांत के अध्यक्ष केके अग्रवाल का कहना है कि छोटे किसानों का रकबा कम होने के कारण उनकी प्राकृतिक खेती में रुचि नहीं है। प्राकृतिक तत्वों से बने खाद व कीटनाशक का उपयोग वे कर सकते हैं।इसकी विधि सीखने उनको प्रेरित किया जा रहा है।


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