मध्यप्रदेश में अक्टूबर में रबी का सीजन शुरू होते ही होगी खाद की किल्लत, यूरिया की 28 प्रतिशत और डीएपी की 44 प्रतिशत तक कम सप्लाई

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Rahul Sharma
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मध्यप्रदेश में अक्टूबर में रबी का सीजन शुरू होते ही होगी खाद की किल्लत, यूरिया की 28 प्रतिशत और डीएपी की 44 प्रतिशत तक कम सप्लाई

Bhopal. खरीफ सीजन खत्म होने को है। किसान 10 अक्टूबर से रबी सीजन की तैयारियों में लगने वाला है और इसी के साथ शुरू होने वाली है खाद की किल्लत। प्रदेश में वर्तमान में जो खाद का स्टॉक है उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि रबी सीजन में किसानों को खाद संकट से गुजरना होगा। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार पिछले साल 1 अप्रैल 2021 से 30 सितंबर 2021 में जितनी खाद बेची गई उससे अधिक खाद का स्टॉक हर जिले में कर दिया गया। जबकि पिछले साल ही इसी अवधि में डिमांड से 28% कम यूरिया और 44% कम डीएपी का विक्रय हुआ था। यानी यह कमी अभी भी है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में 2 लाख 54 हजार मैट्रिक टन यूरिया और 2 लाख मैट्रिक टन डीएपी का स्टॉक है। जबकि रबी सीजन शुरू होते ही सरकारी कागजों के अनुसार ही अक्टूबर में यूरिया की डिमांड 6 लाख मैटिक टन और डीएपी की डिमांड 4 लाख मैट्रिक टन पर पहुंच जाएगी।




चंबल, मालवा और निमाड़ में खाद के लिए मारामारी शुरू



खाद की डिमांड का सीधा सा फार्मूला है, जिस एरिए में फसल जल्दी कटेगी...वहां दूसरी फसल की तैयारी जल्त शुरू होगी और खाद की डिमांड भी शुरू हो जाएगी। प्रदेश में खरीफ की फसल सबसे पहले चंबल फिर मालवा और उसके बाद निमाड़ क्षेत्र में कटती है..जो लगभग कट भी चुकी है। यही कारण है कि चंबल, मालवा और निमाड़ क्षेत्र में अभी से खाद के लिए मारामारी शुरू हो गई है। खाद की यह किल्लत विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में अक्टूबर एंड तक देखने को मिलेगी।




दिखने लगी है खाद संकट की तस्वीरें



मुरैना के आसपास के इलाकों में किसान खाद के लिए अभी से रतजगा करने लगे हैं। कारण है...इन इलाकों में खाद की किल्लत शुरू हो गई है। हाल ही में कृषि मंत्री कमल पटेल के गृहजिले हरदा में भी खाद नहीं मिलने को लेकर किसानों और समिति कर्मचारियों के बीच बहस हुई। जानकार बताते हैं कि यह घटनाएं अब तेजी से बढ़ने वाली है। रबी की फसलें यानी गेहूं, चना, सरसों अक्टूबर में बोई जाती हैं और फरवरी-मार्च में इनकी कटाई होती है। बुआई के साथ ही अक्टूबर से ही खाद की जरूरत महसूस होने लगेगी। एक पानी, दो पानी के साथ खाद लगेगी। जिन किसानों की अगली फसल की तैयारी पूरी है, उन्हें हर हाल में खाद चाहिए। यही कारण है कि खाद को लेकर किसान अभी से बैचेन है और खरीदी केंद्र पर किसानों की भीड़ उमड़ रही है।




आंकड़ों में समझे प्रदेश के खाद संकट ​को



बीते दो—तीन सालों के आंकड़ों पर नजर डाले तो पता चलता है कि रबी सीजन के शुरूआती तीन महीने में ही यूरिया की 36% और डीएपी की 44% कमी रहती है। जानकारों का मानना है कि यह कमी इस बार भी रहेगी। यूरिया की अक्टूबर में 6 लाख, नवंबर में 7 लाख और दिसंबर में 5 लाख मैट्रिक टन डिमांड रहने वाली है। वहीं डीएपी की बात करें तो अक्टूबर में 4 लाख, नवंबर में 2 लाख और दिसंबर में 1.25 लाख मैट्रिक टन की डिमांड रहती है, पर इतनी सप्लाई हो नहीं पाती। गेहूं में यूरिया दो बार देना होता है। पहली बार 15-20 दिन पर और फिर दूसरी बार 40-45 दिन के बीच। एक एकड़ की बात करें तो गेहूं में डीएपी 50 किलो तक लगता है। जबकि यूरिया डेढ़ से दो क्विंटल लग जाता है।  




डिफाल्टर 15 लाख किसान होंगे कालाबाजारी का शिकार



इस बार सिर्फ नगद में ही किसानों को खाद मिल रही है। प्रदेश में 80 लाख किसानों में से करीब 15 लाख किसान डिफाल्टर है। अब तक ऐसी कोई नीति सामने ही नहीं आई कि ये डिफाल्टर किसान खाद कहां से और कैसे खरीदने वाले हैं। जाहिर सी बात है रबी सीजन सामने है...ऐसे में ये 15 लाख किसान बाजार के भरोसे रहेंगे और कालाबाजारी के शिकार होंगे। भोपाल के गुराड़ी घाट के एक किसान ने बताया कि खाद का संकट हर साल आता है। वह 11मील के किसान से खाद लेता है। कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले में किसान 1 महीने से खाद के लिए परेशान है, हर रोज लाइन में लग रहे हैं, लेकिन उन्हें खाद मिल नहीं रहा है। किसानों का कहना है कि यदि खाद समय पर नहीं मिलती है तो फसल प्रभावित होगी।




स्टॉक है तो वितरण की परमीशन क्यों नहीं दे रही सरकार



किसान नेता केदार सिरोही का कहना है कि यदि यह दावा किया जा रहा है कि यूरिया का 2.54 लाख मैट्रिक टन और डीएपी का 2 लाख मैट्रिक टन स्टॉक है तो फिर सरकार वितरण की परमीशन क्यों नहीं दे रही। केदार सिरोही के अनुसार रबी सीजन के लिए 4 लाख मैट्रिक टन अग्रिम भण्डारण होना चाहिए था जो कि नहीं है। इससे आने वाले समय में किसानों को और दिक्कतें होने वाली है।  




 


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