ग्वालियर और चंबल संभाग में यूरिया, DAP खाद की किल्लत बनी हुई है। केंद्रीय मंत्री के गृह जिले तक में लूटने की और किसानों पर लाठियां बरसाने की घटनाएं सामने आईं। किसानों को खाद नहीं मिल रही। इसकी वजह क्या है? की कमी के लिए कौन जिम्मेदार है। खाद महंगी क्यों हो रही है? एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में इफको के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के डायरेक्टर अमित प्रताप सिंह ये बातें शेयर कीं।
हर साल खाद की जितनी मांग होती है, उतनी किसानों को नहीं मिल पाती। इसकी क्या वजह है?
दरअसल, यह सरकारों का फेल मैनेजमेंट है। अफसरों से सरकार डिमांड पूछती है। अफसर दफ्तरों में बैठकर झूठे आंकड़े देते हैं, जमीनी हकीकत कुछ और होती है। सरकार भी मांग के अनुरूप खाद को नहीं खरीदती। सरकार हमेशा मांग से कम खाद खरीदती है, इसलिए हर साल समस्या होती है। इसके अलावा 70:30 के अनुपात से खाद दी जाती है। 70% खाद सरकारी संस्थान को दी जाती है, जबकि 30% निजी संस्थानों को।
खाद संकट गहराने का मुख्य कारण क्या है?
पहले से मांग का आकलन ना करना। जब कम खाद होती है तो किसान भी ज्यादा खरीदने लगते हैं। इधर, बिचौलिए भी मुनाफाखोरी के फेर में सक्रिय होते हैं, इसलिए यह समस्या बन रही है।
पिछले कुछ सालों में खाद महंगी हुई। इसकी वजह क्या है?
खाद महंगी होने के कई कारण है। विदेश से आने वाला निर्माण सामग्री का महंगा होना। कोरोना काल भी खाद महंगी होने की वजह है। डीजल पेट्रोल के दामों का असर भी खाद पर पड़ा। खाद प्रोसेसिंग में यूज होने वाला मटेरियल महंगा होने की वजह से खाद महंगी हुई। केंद्र सरकार सब्सिडी बढ़ाए तो खाद के दामों में गिरावट आएगी।
खाद की किल्लत से किसानों को कैसे बचाएं?
किसानों की खाद की मांग को किसानों के अनुरूप ही सरकारें खरीदी करें। अफसर जमीनी स्तर पर सर्वे करें। मांग से ज्यादा खाद खरीदी जाती है तो किल्लत खुद ब खुद खत्म हो जाएगी।
प्रदेश स्तर पर कितनी खाद की मांग है?
इफको से करीब 6 लाख मीट्रिक टन DAP तो 8 लाख मीट्रिक टन यूरिया की मांग बनी हुई है। इफको किसानों के हित में काम करने वाली देश की सबसे अग्रणी संस्था है। हम सरकार से सब्सिडी ना मिलने पर भी किसानों को सस्ते दामों में खाद बेच रही है।