खाद के लिए मारामारीः समय पर नहीं भेजी सही डिमांड, रैक आए तो जांच के नाम पर अड़ंगे लगाए

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खाद के लिए मारामारीः समय पर नहीं भेजी सही डिमांड, रैक आए तो जांच के नाम पर अड़ंगे लगाए

भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में डीएपी (DAP) के बाद अब यूरिया खाद (Urea Fertilizer) के लिए मारामारी मची हुई है। कई जिलों में किसान यूरिया के लिए कृषि सेवा सहकारी समितियों (krshi seva sahakari samitiyon) के बाहर रात-रात भर जागकर घंटों लाइन में लगने को मजबूर हैं। भीड़ में अव्यवस्था होने पर उन पर लाठियां भांजी जा रही हैं और किसानों (Farmers) के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज की जा रही है। लेकिन इन घटनाओं के बाद भी सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि प्रदेश में खाद की किल्लत है। राजधानी में बुधवार, 8 दिसंबर को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने खाद की समीक्षा करते हुए जिलों के कलेक्टर (Collector) से कहा कि प्रदेश में खाद पर्याप्त मात्रा में है लेकिन वितरण ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि यदि प्रदेश में खाद की कमी नहीं है तो फिर इसके लिए मारामारी क्यों हो रही है ? द सूत्र ने खाद की उपलब्धता को लेकर सरकार के दावों की पड़ताल की तो हकीकत अलग ही नजर आई। आइए आपको बताते हैं मैदानी हकीकत सरकार के दावों से कितनी अलग है।

कृषि सेवा केंद्र में यूरिया का 267 रु. का बैग 380 रु.में, डीडीए को पता ही नहीं

इंदौर (Indore) जिले के देपालपुर में एक कृषि सेवा केंद्र पर यूरिया का एक बैग 267 रूपए की जगह में 380 रूपए तक बेचने की बातचीत का वीडियो 2 दिसंबर को सोशल मीडिया में सामने आया। इस वीडियो में सेवा केद्र का संचालक इमरान खान (Imran Khan) एक किसान लाखन डाबी (Lakhan Dabi) से स्पष्ट कहते सुनाई दे रहा है कि उसे ही यूरिया की एक बोरी बड़ी मुश्किल से 360 रूपए में मिली है। डाबी ने खाद के ज्यादा दाम वसूले जाने की शिकायत तत्काल क्षेत्र के सीनियर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर (Senior Agriculture Development Officer)  मधूपसिंह तोमर (Madhup Singh Tomar) से की। लेकिन उन्होंने इसे अनसुना कर दिया। द सूत्र (The Sutra) के रिपोर्टर ने जब इस बारे में जिले के कृषि उप संचालक शिव राजपूत (Agriculture Deputy Director Shiv Rajput) से पूछताछ की तो उन्होंने मामले की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। जब उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी गई तो उन्होंने कहा वे इसके बारे में एसएडीओ तोमर से पूछेंगे कि उन्हें शिकायत की जानकारी क्यों नहीं दी गई।  
घंटों लाइन में लगने पर खाद नहीं पुलिस की लाठियां मिलीं उज्जैन में 25 नवंबर को किसानों के द्वारा खाद लूटने पर पुलिस ने लाठियां चलाईं। जिले की तराना तहसील की कृषि उपज मंडी में किसान कई घंटों से खाद के लिए लाइन में खड़े थे। इसके बाद भी जब खाद नहीं मिली तो किसानों ने सोसायटी में रखी यूरिया की बोरियों को लूटना शुरू कर दिया। इस घटना का वीडियो 1 दिसंबर देश भर में चर्चा का विषय बना। 

पिछले साल की तुलना में इस साल आधा यूरिया ही उपलब्ध

प्रदेश में इस साल किसानों को यूरिया की इतनी दिक्कत का सामना क्यों करना पड़ रहा है ? इस सवाल का कारण तलाशने के लिए द सूत्र ने सबसे पहले कृषि विभाग (Agriculture Department) की आधिकारिक वेबसाइट (Website) पर खाद की उपलब्धता और खपत के सालाना आंकड़ों की पड़ताल की। वेबसाइट की जानकारी के अनुसार प्रदेश में रबी सीजन 2019-20 में 17.88 लाख मीट्रिक टन की खपत हुई थी। वहीं रबी सीजन 2020-21 के लिए 2 नवंबर 2020 तक 20 लाख मीट्रिक टन यूरिया किसानों को उपलब्ध कराया गया था। लेकिन रबी सीजन 2021-22 के लिए  30 नंवबर 2021 तक प्रदेश में यूरिया की कुल उपलब्धता डिमांड के मुकाबले  महज 10.02 लाख मीट्रिक टन ही रही है। 

जानिए, इस साल क्यों हुई खाद की दिक्कत

पिछले साल की तुलना में इस साल 30 नवंबर तक यूरिया की उपलब्धता आधी रही है। मतलब सरकार ने रबी सीजन के लिए न तो पर्याप्त स्टॉक करके रखा और न ही समय पर यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित की। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी 8 नवंबर को खाद की समीक्षा बैठक में कृषि विभाग के अफसरों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब हर सीजन में रबी फसलों की बुवाई का रकबा बढ़ जाता है तो उस हिसाब से खाद की मांग क्यों नहीं की जाती। आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए।

सही समय पर खाद की सही डिमांड ही नहीं की गई

कई जिलों की कृषि सहकारी संस्थाओं ने समय पर खाद की डिमांड भेजी ही नहीं कि हमारी इतनी मांग है। मतलब इस साल कृषि विभाग  की ओर से खाद के लिए सही समय पर सही डिमांड जारी नहीं की गई। प्रदेश में खाद के लिए मारामारी के हालात खड़े होने पर अतिरिक्त डिमांड जारी की गई तो खाद आने में समय लग रहा है।

कंपनियों को भुगतान में देरी से भी बढ़ी खाद की किल्लत

किसान नेता केदार सिरोही का कहना है कि कंपनियों को भुगतान में देरी और उन्हें बिना वजह परेशान किए जाने के कारण बड़ी कंपनियां अब मध्यप्रदेश को खाद देना नहीं चाहतीं। उन्हें पेमेंट करने या मनाने में भी समय खर्च होता है, जिससे खाद की किल्लत बढ़ जाती है।  

समय से पहले बोवनी के कारण भी बढ़ी खाद की मांग

रबी की फसलें यानी गेहूं, चना, सरसों, आलू, मटर आदि. रबी की फसलें अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं और फरवरी-मार्च में इनकी कटाई होती है। बारिश होने से किसानों ने समय से थोड़ा पहले खेत तैयार कर लिए और बुआई के साथ ही अक्टूबर से ही खाद की जरूरत महसूस होने लगी। जिन किसानों ने पहले फसल की बोवनी कर दी है, उन्हें हर हाल में खाद चाहिए, नहीं तो फसल खराब हो सकती है। यही कारण है कि खाद को लेकर किसान बैचेन है और रैक का पता चलते ही किसानों की भीड़ उमड़ पड़ती है।  

अभी 4 लाख मीट्रिक टन यूरिया की और जरूरत

बुवाई हो चुकी है, मतलब यूरिया की डिमांड बढ़ गई है। गेहूं में यूरिया दो बार देना होता है। पहली बार 15-20 दिन पर और फिर दूसरी बार 40-45 दिन के बीच। एक एकड़ की बात करें तो गेहूं में डीएपी 50 किलो तक लगता है। जबकि यूरिया डेढ़ से दो क्विंटल लग जाता है। विभाग के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस सीजन के लिए अभी प्रदेश को 4 लाख मीट्रिक टन यूरिया की और जरूरत है। मतलब जल्द यूरिया की व्यवस्था नहीं हुई तो आने वाले समय में समस्या औऱ गहरा सकती है। 

वसूली के लिए टेस्टिंग की आड़ में रोककर रखी खाद की रैक

खाद के बड़े संकट के बीच मध्यप्रदेश में इस बार कृषि विभाग के कर्ताधर्ताओं ने एक नया और अलग ही  प्रयोग कर दिया। जिसने खाद की किल्लत को और बढ़ा दिया। सामान्यतः विदेशों से आने वाली खाद की जांच पोर्ट पर ही होती है। लेकिन इस बार कृषि विभाग के अधिकारियों ने प्रदेश में आ रही  खाद की रैक से भी खाद के सैंपल लेना शुरू कर दिए। सूत्रों के अनुसार इस व्यवस्था के खिलाफ कंपनियों ने केंद्र के सामने अपनी नाराजगी व्यक्त की। इसका असर भी हुआ और इस तरह से खाद की जांच करने पर कार्रवाई भी हुई। हाल ही में इंदौर के  कलेक्टर मनीष सिंह ने खाद के सैंपल केंद्रों से न लेकर रेलवे रैक पर जाकर सीधे लेने पर कृषि विभाग के उर्वरक- बीज कीटनाशी निरीक्षक आरएस तोमर, एस इजारदार और सहायक रविकांत वर्मा को सस्पेंड कर दिया। वहीं दो सहायक संचालकों विजय जाट और गोपेश पाठक को शोकॉज नोटिस दिये गये है। सूत्रों की माने तो यह सब कमीशनखोरी के कारण हो रहा था, जिसके कारण कंपनियों में तो नाराजगी थी ही, साथ ही खाद वितरण में भी देरी हो रही थी। 

गुना और ग्वालियर जिले में किसान नाराज लेकिन कृषि अधिकारी संतुष्ट

गुना जिले  के कृषि उप संचालक यानि डीडीए अशोक उपाध्याय और ग्वालियर डीडीए एमके शर्मा का कहना है कि खाद वितरण की व्यवस्था से किसान संतुष्ट हैं, कहीं कोई समस्या नहीं है। जबकि हकीकत में किसानों को खाद के लिए सुबह से लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है। खाद के लिए सुबह से लाइन में लगे कोलाखेड़ी से आए किसान इस बात की पुष्टि करते हैं। वहीं गुना में भारतीय किसान संघ से जुड़े जसवंत सिंह रघुवंशी कहते हैं कि किसानों को 10 बीघा की जमीन के लिए 10 बोरी यूरिया चाहिए। यदि नहीं है तो कम से कम 5 बोरी तो मिले, पर उसे दो बोरी खाद दी जा रही है। 
इसी तरह ग्वालियर के उटीला के किसान कमल किशोर पाठक कहना है कि सरकार के दावे गलत हैं। किसानों को खाद नहीं मिल रहा और यदि मिल रही है तो वह बाजार में दोगुनी कीमत पर खरीदने को मजूबर हैं। तो फिर आखिर गुना और ग्वालियर डीडीए के इस दावे के पीछे का कारण क्या है। डीडीए अशोक उपाध्याय बताते हैं कि 90 फीसदी से अधिक बोवनी हो गई इसलिए डीएपी की जरूरत नहीं है। अब तक गुना में 25 हजार में से 24500 टन यूरिया बंट गया है। 43 हजार टन यूरिया की कुल मांग है। मतलब 60 फीसदी आपूर्ती हो गई है। शेष 40 फीसदी के लिए अभी 4 महीने का समय है। वहीं डीडीए एमके शर्मा का कहना है कि ग्वालियर जिले में  यूरिया की मांग 15, 580 मीट्रिक टन है, जिसमें से 6 दिसंबर तक 8,200 मीट्रिक टन यूरिया आ चुका है।

(भोपाल से राहुल शर्मा, इंदौर से योगेश राठौर, ग्वालियर से अंशुल मित्तल और गुना से नवीन मोदी के साथ सहयोगी योगेश लोधा की रिपोर्ट)

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