Damoh. दमोह के स्थानीय महाकाली चौराहे पर नवरात्र में विराजमान होने वाली मां महाकाली की प्रतिमा को पिछले 75 वर्षों से सोने, चांदी के आभूषणों से श्रंगार करने की परंपरा चली आ रही है। इनकी सुरक्षा के लिए 24 घंटे बंदूकधारी पुलिसकर्मी तैनात किए जाते हैं। यहां पर प्रतिमा तो सन 1947 से स्थापित की जा रही है, लेकिन बदलते समय और चोरी की घटना को देखते हुए 22 साल से यहां पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाते हैं।
12 तोला सोना और 10 किलो चांदी से होता है श्रृंगार
महाकाली का पूरा श्रंगार सोने और चांदी के आभूषणों से किया जाता है। इन आभूषणों में सोने का हार, लाकेट, नथ, चूड़ी के अलावा चांदी का मुकुट, करधनी, पायल, छत्र और अन्य सामग्री शामिल है। 50 साल तक सराफा व्यापारियों ने इस प्रतिमा की स्थापना की , बाद में उन्होंने बकोली चौराहे के पास अपनी अलग प्रतिमा की स्थापना करना शुरू कर दिया । जिसके बाद एक नई समिति का गठन किया गया , जिसका नाम सार्वजनिक महाकाली सेवा समिति रखा गया।
55 वर्षीय ज्ञानेश ताम्रकार ने बताया कि समिति के पास करीब 12 तोला सोना और 10 किलो चांदी है । सभी आभूषणों को बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखा जाता है । जिस दिन प्रतिमा की स्थापना होती है , उससे एक दिन पहले ही लॉकर से गहनों को निकाला जाता है। पहले यहां पुलिस तैनात नहीं की जाती थी क्योंकि पहले समय इतना खराब नहीं था । धीरे-धीरे जब समय में बदलाव हुआ और चोरियां भी बढ़ने लगी । तब समिति के लोगों ने वर्ष 2000 में मिलकर फैसला लिया कि गहनों की सुरक्षा के लिए 24 घंटे पुलिस तैनात रहनी चाहिए और तभी से यहां 24 घंटे चार पुलिस के जवानों की तैनाती होने लगी।
प्रतिमा के विसर्जन के बाद समाप्त होती है पुलिसकर्मियों की ड्यूटी
दशहरा के दिन जब महाकाली की प्रतिमा को विसर्जन के लिए फुटेरा तालाब लाते हैं , तभी पुलिस सुरक्षा के बीच आभूषणों को उतारा जाता है इसके बाद पुलिस की सुरक्षा में ही गहनों को बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखा जाता है । जिसके बाद से पुलिस का दायित्व समाप्त होता है।
75 साल की परंपरा , 22 साल से तैनात हो रहे पुलिसकर्मी
महाकाली की प्रतिमा को गहने चढ़ाने का रिवाज आज से नहीं , बल्कि पिछले 75 सालों से चला आ रहा है । प्रतिमा के विसर्जन से पहले यह गहने उतार कर सुरक्षित रखे जाते हैं । जिसके बाद ही पुलिस की ड्यूटी खत्म होती है । महाकाली चौराहे के निवासी निर्गुण खरे ( 68 ) बताते हैं कि देश की आजादी के बाद 1947 में पहली बार यहां महाकाली की प्रतिमा स्थापित की गई थी । जिसे लक्ष्मीचंद असाटी , मूलचंद ताम्रकार और श्याम नारायण टंडन ने मिलकर रखा था । इस प्रतिमा की स्थापना सराफा व्यापारी मिलकर करते थे और उन्होंने ही प्रतिमा पर जेवरात चढ़ाने के रिवाज की शुरुआत की थी। पहले चांदी और कुछ सोना मां को चढ़ाया जाता था , लेकिन अब माता का पूरा श्रंगार ही सोने और चांदी के जेवरात से किया जाता है।