MP गजब है: हरे जंगल में हरियाली करने की योजना, 3-4 करोड़ रुपए से बनेगा नगर वन

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MP गजब है: हरे जंगल में हरियाली करने की योजना, 3-4 करोड़ रुपए से बनेगा नगर वन

भोपाल. MP गजब है, वाकई अजब है। यहां वन विभाग (Forest Department) एक अनोखा कारनामा करने वाला है। विभाग नगर वन (City ​​Forest) बनाने की तैयारी कर रहा है। इस योजना में ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट (Green India Mission) के पौने चार करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन इस योजना की सबसे हैरान करने वाली बात है कि नगर वन का निर्माण हरे जंगल में हो रहा है, जहां पहले से हजारों पेड़ और औषधीय पौधे (Medicinal Plants) लगे हुए हैं। इसके बाद भी बंजर जमीन की जगह ऐसी जगह पर नगर वन का निर्माण करना जिम्मेदार अधिकारियों के मंसूबों को उजागर करता है।

अधिकारियों के अपने तर्क

सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार के ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट के करोड़ों रुपए का खेल करने के लिए विभाग के अफसरों ने ये योजना बनाई है। यही वजह है कि भोपाल के चंदनपुरा में नगर वन (City Forest In Bhopal) बनाने की कवायद की जा रही है। इससे बाघों की टेरेटरी भी कम होगी, इस कारण इंसानों और बाघों में संघर्ष की घटनाएं सामने आ सकती है। 

पेड़ काटकर बना दी कच्ची सड़क

वन विभाग ने नगर वन बनाने की पहल भी शुरू कर दी है। इसके लिए लेटाना प्रजाति की झाड़ियों समेत अन्य पेड़ भी काटे गए हैं। साथ ही वन में चार पहिया वाहनों की आवाजाही के लिए एक कच्ची सड़क भी बनाई गई है। 

50 हेक्टेयर जमीन की परमीशन, दस्तावेजों पर कम

नगर वन बसाने के लिए 50 हेक्टेयर जमीन की परमीशन (City Forest Permission) ली गई है, लेकिन राजस्व के दस्तावेजों में यह जमीन करीब 28 हेक्टेयर ही है। द सूत्र के पास यह दस्तावेज मौजूद हैं।

क्या है नगर वन प्रोजेक्ट? 

केंद्र सरकार (Central Govt) ने 5 जून 2020 से देश के सभी राज्यों में नगर वन योजना (City Forest Plan) 2021-22 शुरू कर दी है। योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार पर्यावरण के नुकसान से बचाने के लिए शहरों वन क्षेत्रों की तादाद को बढ़ाना चाहती है, ताकि शहरों में बढ़ते हुए प्रदूषण (Pollution) की मात्रा को कम किया जा सके। इसका उद्देश्य जंगल में मनोरंजन, शिक्षा, जैव विविधता, जल और मिट्टी के संरक्षण के लिए संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण प्रदान करना है।

बाघों की टेरेटरी होगी कम

चंदनपुरा जंगल में जिस जगह पर नगर वन बनेगा वह टाइगर मूवमेंट एरिया (Tiger Movement Area) है। छह महीने पहले इसी जगह पर एक बाघ ने गाय का शिकार किया था, इसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। एक सप्ताह पहले ही यहां बाघ की दहाड़ सुनाई दी थी, जिसे सुनकर पास के खेत में काम कर रहे मजदूर भाग खड़े हुए थे। इस इलाके में नगर वन बनने से टेरेटरी कम होगी। एरिया कम होने के कारण बाघों के बीच फाइट की घटना बढ़ेगी। इंसानों और बाघों का आमना-सामना होने से अप्रिय घटनाएं भी घटित होने की संभावना है।

बाघों को लेकर भोपाल इसलिए है खास

मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट (Tiger State) का दर्ज प्राप्त है। वहीं, राजधानी भोपाल देश का ऐसा दूसरा शहर है, जहां बिल्ली प्रजाति का वन्यजीव का कॉरिडोर नगर निगम क्षेत्र में आता है। इसके अलावा महाराष्ट्र के वोरीवली में तेंदुआ नगर निगम सीमा के अंदर भ्रमण करता है। रातापानी अभ्यारण (Ratapani Wildlife Sanctuary) में 18 बाघों का मूवमेंट है जो कई बार शिकार का पीछा करते-करते सड़क तक आ जाते हैं।

द सूत्र के सवाल

1. जब नगर वन का उद्देश्य हरियाली को बढ़ावा देना है तो किसी बंजर जमीन को छोड़ इसे जंगल में ही बसाने की जिद क्यों?

2. मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट हैं। ऐसे में कॉरीडोर में नगर वन बसाकर वन विभाग टाइगरों के बीच टेरेटरी फाइट को क्यों बढ़ावा देना चाह रहा है?

3. इस जल्दबाजी के पीछे क्या एमपी सबसे पहले नगर वन बसाकर केंद्र से अपनी पीठ थपथपवाना चाहता है या दाल में कुछ काला है?

पहले से ही जंगल में नगर वन बनाना गैरकानूनी- जेटली

फॉरेस्ट एंड क्लाइमेंट चेंज के रिटायर्ड DG तेजेंदर सिंह ने नियमों का हवाला देकर बताया कि चंदनपुरा जंगल (Chandanpura Forest) में नगर वन नहीं बन सकता। वैसे भी वो नॉन फॉरेस्ट एक्टिविटी है, परमिटेड नहीं है। नियमानुसार यह नहीं कर सकते। वहीं, पर्यावरणविद् प्रभाष जेटली ने बताया कि नगर वन के लिए चंदनपुरा के जिस जगह को चिन्हित किया है। वह एरिया NGT और पर्यावरण, जंगल एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पहले से ही जंगल है। इसका गजट नोटिफीकेशन भी है। यहां नगर वन बनाना गैरकानूनी है। हम इसे लेकर एनजीटी जाएंगे।

बाघों की टेरेटरी कम की जा रही- वाइल्ड लाइफर

वाइल्ड लाइफर राशिद नूर खान ने बताया कि जिस जगह पर नगर वन बनाया जा रहा है, यह बाघ मूवमेंट एरिया है। बाघ सड़क पर न आ जाए इसलिए मेरी याचिका के बाद ही यहां जाली लगाई गई। अब जंगल के अंदर नगर वन बनाकर उनकी टेरेटरी को कम किया जा रहा है, जोकि गलत है। वहीं, सोशल एक्टिविस्ट कमल राठी ने कहा कि जंगल के बीच ग्रीनरी के नाम पर लाखों रुपए लगा देना समझ से परे हैं। जबकि इसे डीम्ड फॉरेस्ट डिक्लेयर किया हुआ है। 

जिम्मेदार अफसरों का योजना को लेकर तर्क

जब इस मामले में भोपाल DFO आलोक पाठक से बात की तो उन्होंने कहा कि जिस जगह पर सिटी फॉरेस्ट बन रहा है उस जगह पर बाघ मूवमेंट एरिया नहीं है। बाघों की मूवमेंट दूसरी ओर है। वही योजना का उद्देश्य ग्रीनरी नहीं है बल्कि एजुकेशन है। लोग प्रकृति के बारे में जान सकें इसलिए भी इस सिटी फॉरेस्ट का निर्माण किया जा रहा है। 50 हेक्टेयर के इस प्रोजेक्ट में राजस्व की 38 हेक्टेयर जमीन है बाकी जमीन वन विभाग की है।

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