Bhopal: प्रदेश में दो बड़े सरकारी अस्पताल गांधी मेडिकल कॉलेज से संबंधित हमीदिया अस्पताल और इंदौर का महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज से संबंधित एमवाय अस्पताल हैं। दोनों ही अस्पतालों में अव्यवस्था ऐसी है कि आम आदमी परेशान हो रहा है। हमीदिया में ब्लट टेस्ट की जांचे ही नहीं हो रही। हमीदिया अस्पताल के पास जांच किट ही नहीं है तो इंदौर के एम वाय अस्पताल में पिछले दो सालों से हिप और KNEE रिप्लेसमेंट सर्जरी बंद है क्योंकि अस्पताल के पास इंप्लांट ही नहीं है इसका टेंडर ही कोई ले नहीं रहा।
हमीदिया जांच किट का टोटा
हमीदिया हॉस्पिटल में ब्लड टेस्ट की जांचे नहीं हो रही हैं। जरूरी जांचों के लिए मरीजों को प्रायवेट पैथोलॉजी में जाना पड़ रहा है। हमीदिया में सेंट्रल पैथ लैब का संचालन गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) का बायोकेमेस्ट्री विभाग करता है। लेकिन जीएमसी प्रशासन जांच किटे ही उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। सूत्रों का कहना हैं कि बजट की कमी के चलते जीएमसी प्रशासन जरूरी जांच किटों और केमिकल की खरीदी नहीं कर पा रहा है।
कमी छिपाने का तरीका...सैंपल ही कलेक्ट मत करो
हमीदिया हॉस्पिटल में होने वाली कुल 25 जांचों में से 8 जांचे हो ही नहीं रही है। लेकिन इन जांचों को कराने कोई भी मरीज सेंट्रल पैथ लेब नहीं पहुंचता। द सूत्र ने जब इसकी वजह की पड़ताल की तो पता चला कि जीएमसी प्रशासन ने कमी को उजागर न करने का तोड़ ढूंढ़ लिया है। जीएमसी प्रशासन विभिन्न विभागों के एचओडी को पत्र जारी कर देता है। इस पत्र में लिखा होता हैं कि जांच किटे उपलब्ध नहीं है। लिहाजा जांच के लिए मरीजों का सैंपल ही कलेक्ट न किया जाए। जिससे मरीज लैब में पहुंचे ही नहीं।
बोर्ड पर 41 जांचों के नाम, जीएमसी का डाटा 25 का
सेंट्रल पैथ लेब के सामने लगा बोर्ड बताता हैं कि यहां 41 तरह की जांचे होती है। लेकिन जीएमसी प्रशासन का ये पत्र बता रहा हैं कि 25 जांचे ही की जाती है। यानी यहां भी फर्जीवाड़ा है।
महीनों से नहीं हो रही ये 8 जांचे
- ट्रोपोनिन आई – हार्ट से संबंधित – निजी पैथोलॉजी में 1100 रुपए में होती है
हमीदिया में पहुंचने वाले और भर्ती मरीजों में से कम से कम 200 मरीजों को इन जांचों की जरूरत पड़ती है। लेकिन उन्हें निजी पैथ लेब में जाना पड़ता है। हमीदिया अस्पताल में मरीजों के लिए समाजसेवा करने वाले बीपी सराठे का कहना हैं कि निजी पैथलेब संचालकों को फायदा पहुंचाने के लिए जानबूझकर जांचे नहीं की जाती। हमेशा ही जांच किटों की कमी बताई जाती है। वहीं जीएमसी के डीन अरविंद राय का कहना हैं कि जल्द ही केमिकल और किटों की कमी को पूरा कर लिया जाएगा।
एमवाय अस्पताल में दो साल से टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हो रही
इधर इंदौर के एमवाय अस्पताल में पिछले दो साल से नी और हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी बंद है, क्योंकि अस्पताल के पास इनके लिए जरूरी इम्प्लांट ही नहीं हैं। जिम्मेदारों का दलील ये है कि इम्प्लांट के लिए कोई टेंडर नहीं भर रहा। जबकि एमवाय में हर महीने 8 से 10 मामले आते हैं जिन्हें प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट कर दिया जाता है। प्राइवेट अस्पतालों में ये ऑपरेशन एक से तीन लाख खर्च होता है जबकि सरकारी में 85 हजार रु. और साढ़े तीन महीने पहले मंत्री के सामने ये समस्या रखी जा चुकी है लेकिन जस की तस बनी है।