'चंबल के गांधी' का निधन: सुब्बाराव ने माधौ, मलखान समेत 654 डकैतों का कराया था सरेंडर

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'चंबल के गांधी' का निधन: सुब्बाराव ने माधौ, मलखान समेत 654 डकैतों का कराया था सरेंडर

भोपाल. प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक पद्मश्री डॉ. एस एन सुब्बाराव (SN Subbarao) का बुधवार, 27 अक्टूबर की सुबह जयपुर (Jaipur) में निधन हो गया। 92 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से उनकी मौत हुई। चंबल (Chambal) के बीहड़ों को आतंक से आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका थी। उन्होंने चंबल के माधौ सिंह, मलखान सिंह समेत 654 डकैतों का आत्मसमर्पण (Dacoits Surrender) कराया था। सुब्बाराव ने आदिवासियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तीन बार सत्याग्रह किया। वे कई बार ग्वालियर (Gwalior) से सत्याग्रहियों के साथ पैदल-पैदल दिल्ली (Delhi) तक गए थे, उन्हें चंबल का गांधी (Chambal Gandhi) कहा जाता था। सुब्बाराव को पद्मश्री समेत देश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है। उनका जन्म कर्नाटक के बेंगलुरु में 7 फरवरी 1929 को हुआ। सुब्बाराव स्कूल के दिनों में ही महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों से प्रभावित हुए और 13 साल की उम्र में आजादी आंदोलन से जुड़ गए।

जेपी के सामने कराया था सरेंडर

डॉ. सुब्बाराव ने चंबल घाटी में कुख्यात डकैतों से सरेंडर करवाया था। उन्होंने 14 अप्रैल 1972 को गांधी सेवा आश्रम जौरा में 654 डकैतों का समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण एवं उनकी पत्नी प्रभादेवी के सामने सामूहिक सरेंडर कराया था। इनमें से 450 डंकैतों ने मुरैना (Morena) जिले के जौरा के आश्रम में आत्मसर्मपण किया है। जबकि 100 डकैतों ने राजस्थान के धौलपुर (Dholpur) में महात्मा गांधीं की तस्वीर के सामने हथियार डाले थे।

पुलिस नहीं पहुंच पाई लेकिन सुब्बाराव पहुंचे

1970 के दौर में चंबल घाटी में डाकुओं का आतंक था। ऐसे समय में वे डाकुओं के बीच में रहे। उन्होंने डाकुओं को समझाकर मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। उन्होंने घाटी के खूंखार दस्यु माधौ सिंह (Madhav Singh), मुहर सिंह और मलखान सिंह (Malkhan singh) समेत छह सौ से ज्यादा डाकुओं का सरेंडर कराकर मुख्यधारा में शामिल कराया था।

माधौ सिंह के नाम से उस समय चंबल के लोग कांपा करते थे। उसकी गैंग में 400 लोग शामिल थे। तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस डाकुओं को खोज नहीं पाई लेकिन सुब्बाराव उन तक अकेले पहुंचे। उन्होंने डाकुओं के परिजन और रिश्तेदारों से मिलकर आत्मसर्मपण करने के लिए प्रेरित किया था। 

सरेंडर के लिए रखी थी शर्त

  • सुब्बाराव ने मध्यप्रदेश सरकार से शर्त रखी कि सरेंडर करने वाले डाकुओं को खुली जेल में रखा जाएगा। जेल में वह जेल के कैदी के तरह नहीं रहेंगे। 
  • जीवनयापन करने के लिए उनको उनके गांव में ही खेती दी जाएगी, जिससे वह सम्मान पूर्वक अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें।
  • समर्पण के बाद उनके बच्चों को नौकरी दी जाएगी, जिससे वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
  • सरेंडर से पहले चंबल का लगभग 300 किलोमीटर का क्षेत्र शांति क्षेत्र घोषित किया जाए, जहां डाकू आसानी से आ-जा सकें।
  • डाकुओं पर चल अपराध को पूरी तरह खत्म किया जाए। इससे वह सम्मान पूर्वक समाज में रह सकें और समाज का हिस्सा बन सकें।

जौरा सेवा आश्रम में होगा अंतिम संस्कार

बुधवार शाम 4 बजे उनकी पार्थिव देह मुरैना पहुंचेगी, जहां अंतिम दर्शनों के लिए उनकी पार्थिव देह को रखा जाएगा। उसके बाद जौरा स्थित गांधी सेवा आश्रम में ले जाया जाएगा, जहां गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उन्होंने 70 के दशक में इस आश्रम की स्थापना की थी। इस समय विश्व के लगभग 20 देशों में गांधी आश्रम चल रहे हैं।

गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दी श्रद्धांजलि    
नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि चंबल की धरती को डकैतों के कलंक से मुक्त कराने में अहम योगदान देने वाले प्रख्यात गांधीवादी विचारक एवं समाज सुधारक डॉ. एसएन सुब्बाराव जी के निधन से मन आहत है। ईश्वर से दिवंगत पुण्य आत्मा की शांति और उनके अनुयायियों को यह गहन दुख सहने का आत्मबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं। 

सीएम गहलोत के आदर्श

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सुब्बाराव को अपना आदर्श मानते थे। उन्होंने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वयोवृद्ध गांधीवादी, भाईजी डॉ एसएन सुब्बाराव जी के निधन से मुझे व्यक्तिगत रूप से बेहद आघात पहुंचा है। 70 वर्षों से अधिक समय से देश के युवाओं से जुड़कर, लगातार अपने शिविरों के माध्यम से उन्हें प्रेरणा देने वाले देश की पूंजी गांधीवादी विचारक और प्रेरक का देहांत एक अपूरणीय क्षति है। 

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