Chhindwara. Ashish Thakur. छिंदवाड़ा के पांढुर्ना में परंपरागत गोटमार मेले के आयोजन में पांढुर्ना और सावरगांव के लोगों के बीच जमकर पत्थर चले। पारंपरिक पत्थरबाजी में इस साल करीब 330 लोग मामूली रूप से घायल हुए हैं जिनमें से 3 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए जिन्हें इलाज के लिए नागपुर ले जाया गया है। छिंदवाड़ा के इन दो गांवों में पोला पर्व के दूसरे दिन नदी में बांधे गए झंडे को तोड़ने के लिए हर साल यह खूनी खेल खेला जाता है जो गोटमार मेले के नाम से प्रसिद्ध है।
शनिवार को चंडी माता की पूजा अर्चना के साथ शुरू हुए मेले में पांढुर्ना और सावरगांव को अलग करने वाली जाम नदी में झंडे को मजबूती से गड़ा दिया गया। इसके बाद सुबह 11 बजे से पत्थरबाजी का दौर शुरू हो गया जो शाम तक चला। हालांकि करीब साढ़े 3 बजे ही पांढुर्ना गांव के लोगों की ओर से चलाए गए पत्थर में झंडे को तोड़ा जा चुका था। हालांकि मेले की समाप्ति की घोषणा शाम को हुई।
घायलों के लिए लगाए गए थे शिविर
मेले के दौरान पत्थरबाजी में घायल लोगों के लिए शिविर लगाए गए थे, जिनमें बड़ी संख्या में घायल इलाज के लिए पहुंचे। बता दें कि सालों से चली आ रही इस परंपरा में अब तक 13 लोगों की जान जा चुकी है और हजारों घायल हो चुके हैं। मानवाधिकार संगठन इस कुरीति के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की मांग भी कर चुके हैं लेकिन बावजूद इसके लोगों की मान्यता के कारण यह मेला हर साल आयोजित किया जाता है।
शुक्रवार शाम से ही हो चुकी थी शुरूआत
वैसे तो गोटमार मेला दिन में शुरू होता है लेकिन प्रशासन की रोकटोक के चलते कुछ युवकों ने शुक्रवार शाम से ही पत्थरबाजी की शुरूआत कर दी थी। हालांकि पुलिस ने नदी के आसपास से सारे पत्थर हटवा दिए थे लेकिन ग्रामीणों ने तत्काल खुद ही पत्थरों की व्यवस्था कर ली। इस मेले के दौरान मौके पर 3 एडीशनल एसपी, 11 डीएसपी और 16 टीआई के साथ भारी तादा द में पुलिस बल मौजूद था। लेकिन परंपरा के आगे सब नतमस्तक दिखाई पड़े।
ड्रोन से भी रखी गई नजर
प्रशासन ने मेले के दौरान गोफन चलाने के इतर और कोई अनैतिक गतिविधि को रोकने ड्रोन के जरिए मेले की मॉनीटरिंग कराई। वहीं इस दौरान शहर के 18 रूट पर नाकेबंदी भी कराई गई।
प्रेमी-युगल की कहानी से जुड़ा है मेला
किंवदंती है कि सदियों पहले पांढुर्ना गांव के एक युवक ने सावरगांव की युवति के साथ प्रेम किया था और वह उसे भगाकर पांढुर्ना ला रहा था। इसी दौरान दोनों गांवों के रहवासियों ने उन पर पत्थरों की बरसात कर दी थी, जिसमें प्रेमी जोड़े की मौत हो गई थी। तभी से पांढुर्ना में गोटमार मेले के आयोजन की परंपरा बन गई जो आज की सदी में भी जारी है।