शिवाषीश तिवारी, INDORE. मध्य प्रदेश (MP) के इंदौर शहर में करीब 97 साल पुराने कृषि अनुसंधान (agricultural research) की बेशकीमती जमीन (prized land) को हथियाने की कोशिश हो रही है। मीडिया के मुताबिक मध्यप्रदेश सरकार (Government of Madhya Pradesh) इंदौर कृषि कॉलेज (Indore Agricultural College) की जमीन कॉरपोरेट (corporate) को देना चाहती है, ताकि इस जमीन पर बहुमंजिला इमारत (multi-storey building) और सिटी फॉरेस्ट (city forest) बनाया जा सके। इस जमीन की कीमत करोड़ों रुपए में बताई जा रही है। सरकार और प्रशासन (Administration) के इस कदम का कृषि महाविद्यालय के वर्तमान और पूर्व छात्र पुरजोर तरीके से विरोध (student performance) कर रहे हैं।
#INDORE: प्रशासन द्वारा एग्रीकल्चर कॉलेज की जमीन बेचने की कोशिश की जा रही है। इसके खिलाफ छात्रों, कांग्रेस नेताओं ने प्रदर्शन किया। @MPArunYadav भी शामिल हुए। जमकर नारेबाजी हुई। @IndoreINCMP @BJP4Indore @anandpandey72 @harishdivekar1
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— TheSootr (@TheSootr) July 24, 2022
हाल ही में शासन के निर्देश पर जिला प्रशासन (district administration) ने कॉलेज की जमीन का अवलोकन कर महाविद्यालय प्रशासन से सारी जानकारी भी मांगी है। लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (Public Asset Management Department) के प्रमुख सचिव अनिरुद्ध मुखर्जी (Aniruddha Mukherjee) इस सिलसिले में इंदौर गए थे। उन्होंने इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh) सहित संभागायुक्त कार्यालय के अन्य अधिकारियों के साथ बैठक भी की।
इंदौर कृषि महाविद्यालय कृषि के क्षेत्र में प्रदेश का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर है , मेरे पूज्य पिताजी ने भी यहां पर अध्ययन किया है | यह संसथान देश में ही नहीं विश्व में भी अपनी पहचान रखता है |
यह सिर्फ जमीन की बात नहीं है , बल्कि हमें इस विश्व प्रसिद्ध विरासत को भी बचाना है | pic.twitter.com/UhCrO6zrVc
— Arun Subhash Yadav ???????? (@MPArunYadav) July 24, 2022
कॉलेज का गौरवशाली इतिहास
इस कॉलेज का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। करीब 97 साल पहले 1925-26 में होलकर महाराज (Holkar Maharaj) ने जमीन उपलब्ध कराई और वर्ष 1948-49 तक इस जमीन पर ब्रिटिश विज्ञानियों (British scientist) ने कृषि अनुसंधान कार्य (agricultural research work) किया। 1935 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने इस संस्थान में बन रहे जैविक खाद निर्माण कार्य (organic fertilizer manufacturing) की तारीफ की थी। देश के आजाद होते ही एमपी राज्य का गठन हुआ। इसके बाद साल 1959 में इस संस्थान को शासकीय कृषि कॉलेज (Government Agricultural College) बना दिया गया। इसके बाद से हजारों की संख्या में छात्रों ने यहां पर पढ़ाई की। लेकिन अब इस कॉलेज पर संकट के बादल दिखाई देने लगे हैं। इस ऐतिहासिक संस्थान के अनुसंधान और शिक्षण कार्य को बंद तैयारी हो रही है। सरकार इस कॉलेज की करीब 300 एकड़ जमीन बेचना चाहती है। इसके लिए लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग जमीन की जानकारी जुटा रहा है। सूत्रों की मानें तो जल्द ही इस जमीन की नीलाम हो सकती है। इसके लिए कॉलेज प्रशासन (college administration) से जमीन की जानकारी मांगी गई है।
जिन वैज्ञानिक की मेहनत और लगन से मप्र का क़ृषि उत्पादन बड़ा और मप्र के मुख्यमंत्री जी क़ृषि क्रमण अवार्ड प्राप्त करते है उस संस्था को नष्ट करने की तैयारी#कृषि_बचाओ#इंदौर_प्रशासन @IndoreCollector @CMMadhyaPradesh
— Office Of Dr Anand Rai (@anandrai177) July 20, 2022
छात्र कर रहे हैं प्रदर्शन
कॉलेज के वर्तमान और पूर्व छात्र सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। छात्रों ने इस निर्णय के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन (indefinite strike movement) शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि हम एक इंच जमीन भी किसी को हथियाने नहीं देंगे। जानकारी मिल रही है कि एमपी सरकार ने कृषि कॉलेज की जमीन के बदले जिले में ही दूसरी जगह उतनी ही जमीन देने का प्रस्ताव रखा है। आंदोलन करने वाले छात्रों का कहने है कि यदि जमीन छीन ली गई तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग से चल रही अनुसंधान परियोजनाएं (research projects) ठप हो जाएंगी।
इस जमीन पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से पोषित बारानी कृषि अनुसंधान, करड़ी अनुसंधान, कपास अनुसंधान, दलहन अनुसंधान, मक्का अनुसंधान एवं ज्वार अनुसंधान फसल परियोजना के अलावा जलवायु अनुकूलन कृषि परियोजना, क्रियात्मक अनुसंधान परियोजना, लवण ग्रसित भूमि परियोजना चल रहीं हैं। साथ ही राज्य पोषित परियोजनाओं में पौध रोग परियोजना और आदिवासी उप परियोजना भी शामिल है। महाविद्यालय में दलहन का बीज उत्पादन कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। यहां से कपास, ज्वार, कुसुम करड़ी, मूंग, उड़द, चना और मटर की कई किस्में विकसित की गईं हैं। इस तरह के कई काम यहां पर चलते रहते हैं।
यहां करीब 300 एकड़ जमीन है। एक हिस्से में कॉलेज है, दूसरे में शोध सहित दूसरे काम होते हैं। कृषि कॉलेज की लगभग 30000 करोड़ की जमीन इंदौर के ना सिर्फ फेफड़े हैं, बल्कि पिछले कुछ सालों में यहां के अनुसंधान केंद्र में हजारों क्विंटल ब्रीडर सीड बने हैं जिससे किसानों को प्रामाणिक बीज मिले।
अरुण यादव ने जताया विरोध
अरुण यादव (Arun Yadav) ने कहा कि इंदौर कृषि महाविद्यालय कृषि के क्षेत्र में प्रदेश का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर है, मेरे पूज्य पिताजी ने भी यहां पर अध्ययन किया है। यह संसथान देश में ही नहीं विश्व में भी अपनी पहचान रखता है। यह सिर्फ जमीन की बात नहीं है, बल्कि हमें इस विश्व प्रसिद्ध विरासत को भी बचाना है।
इस जमीन को भू माफियाओं के हवाले प्रशासनिक और सत्ता में बैठे लोग करना चाहते है जो यहां के छात्र नहीं होने देंगे .......
— Arun Subhash Yadav ???????? (@MPArunYadav) July 24, 2022
तुलसीराम सिलावट ने सीएम को लिखा पत्र
मध्यप्रदेश कैबिनेट में जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट (Water Resources Minister Tulsiram Silavat) ने इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) को पत्र लिखा है। पत्र में लिखा है कि कृषि अनुसंधान की जमीन महाविद्यालय के पास रहने दी जाए।
यह कृषि कॉलेज की संपत्ति है
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलपति डॉ. एसके राव (Dr. SK Rao, Vice Chancellor, Rajmata Vijayaraje Scindia Agricultural University Gwalior) ने कहा कि यह कृषि महाविद्यालय की संपत्ति है। यहां 20-25 साल से अनुसंधान कार्य चल रहा है। कोई विभाग इस तरह जमीन नहीं ले सकता। यदि दबाव देकर जमीन ली गई तो सारे अनुसंधान कार्य ठप हो जाएंगे और जिन संस्थानों से वित्तीय सहायता मिल रही है, वह भी बंद हो जाएगी। हम महाविद्यालय की जमीन नहीं देंगे।
मेरे संज्ञान में नहीं है
कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव अजीत केसरी (Ajit Kesari, Additional Chief Secretary, Agriculture Department) ने कहा कि इंदौर कृषि महाविद्यालय की जमीन को लेकर लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग जानकारी क्यों जुटा रहा है, यह मेरे संज्ञान में नहीं है। कृषि विश्वविद्यालय की जमीन है। इसलिए इसके बारे में वही कुछ बता पाएगा। मैं इस मामले में कुछ नहीं बता सकता।