भोपाल। आज कवर स्टोरी में हम आपको सरकार की एक ऐसी बहुप्रचारित योजना की जमीनी हकीकत से रूबरू कराएंगे जिसका उद्देश्य किसानों और छोटे उद्यमियों के खास उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग कर उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करना है। योजना का नाम है एक जिला-एक उत्पाद यानि ओडीओपी (One district-One product)। लेकिन प्रदेश में इस योजना को लागू होने के एक साल बाद भी प्रोडक्ट के चुनाव (सिलेक्शन) को लेकर ही कलेक्टर और संबंधित विभागों में तालमेल नहीं हो पा रहा है। ऐसे में जिलों के विशेष उत्पादों को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए जरूरी ब्रांडिंग और मार्केटिंग तो अभी दूर की कौड़ी है। हालत यह है कि कई जिलों में कलेक्टर किसी प्रोडक्ट पर फोकस कर रहे हैं तो जिम्मेदार विभाग किसी दूसरे प्रोडक्ट को पहचान दिलाने में जुटे हैं।
CM की अपेक्षा दुनियाभर में हो जिलों के प्रोडक्ट की डिमांड: प्रदेश में योजना पर अमल का मैदानी हाल बताने से पहले आपको बता दें कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj on odop) इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हर जिले के विशेष उत्पाद को विज्ञान से जोड़कर नया उत्पाद तैयार किया जाए। हाल ही में इस योजना के संबंध में उन्होंने सभी कलेक्टर से कहा है कि एक जिला-एक उत्पाद योजना के तहत चुना गया प्रोडक्ट इतना गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए कि देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी उनकी मांग हो। इससे जिलों में रोजगार (One district-One product scheme Employment) के नए अवसर भी बढ़ने चाहिए।
भोपाल में पहले अमरूद को चुना अब जरदोजी वर्क पर जोर: आइए आपको सबसे पहले सरकार की नाक के नीचे यानि भोपाल जिले में ODOP योजना पर अमल का हाल बताते हैं। प्रदेश में जनवरी 2021 को ओडीओडी प्रोडक्ट की जारी लिस्ट (one district one product scheme porduct list) के अनुसार भोपाल के लिए अमरूद का चयन हुआ है। इसके लिए उद्यानिकी विभाग (Horticulture Department) का अमला अमरूद उगाने वाले किसानों की ट्रेनिंग कराने के दावे कर रहा है लेकिन जिले के प्रशासनिक मुखिया और कलेक्टर अविनाश लवानिया जरी-जरदोजी वर्क के हैंडीक्राफ्ट्स पर फोकस कर रहे हैं। इस उलझन के कारण न तो अमरूद की ब्रांडिंग और मार्केटिंग हो पा रही है और न ही जरी-जरदोजी से बने हैंडीक्राफ्ट आइटम की। योजना के तहत एक साथ दो-दो प्रोडक्ट पर तैयारी किए जाने से भोपाल जिले में पिछले एक साल में इनकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग को लेकर कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी है। जबकि योजना के अनुसार एक जिले में एक उत्पाद का ही चयन कर पूरा फोकस उसकी प्रोसेसिंग यूनिट, ब्रांडिंग और मार्केटिंग (Food processing unit) पर किया जाना था।
किसानों को ट्रेनिंग का दावा लेकिन बंद पड़ी है प्रोसेसिंग यूनिट: उद्यानिकी विभाग के स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि बीते एक साल में योजना के तहत जिले में अमरूद की खेती को बढ़ावा देने के लिए पर 250 से 300 किसानों को ट्रेनिंग दी गई है। ट्रेनिंग के बाद के प्रयासों के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना है कि आगे किसानों को अमरूद के विभिन्न खाद्य उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। विभाग के सहायक संचालक बुद्धेश सिंह कुशवाह ने बताया कि अमरूद से जेली, मुरब्बा, जूस जैसे अन्य प्रोडक्ट बनाने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट के लिए करीब 75 किसानों ने आवेदन दिए थे। विभाग की जिला समिति ने कुछ मामले बैंक को प्रस्तुत किए हैं। वहां से मंजूर होने पर यूनिट शुरू की जाएगी। फिलहाल ईंटखेड़ी के फल अनुसंधान केंद्र की प्रोसेसिंग यूनिट चालू है जिसमें सिर्फ किसानों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। लेकिन हकीकत (one district one product scheme ground reality check) इससे उलट है। सहायक संचालक के दावे की सच्चाई जानने जब द सूत्र की टीम ईंटखेड़ी पहुंची तो यहां फल अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डॉ. आरके जायसवाल ने बताया कि अभी प्रोसेसिंग यूनिट की शुरूआत नहीं हुई है।
कलेक्टर बोले, अमरूद नहीं जरदोजी को किया है टेकअप: कलेक्टर अविनाश लवानिया का कहना है कि हमने ओडीओपी के तहत अमरूद नहीं भोपाल के खास और लोकप्रिय जरी-जरदोजी वर्क (zari zardozi work) के हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट को टेकअप किया है। राग भोपाली के नाम से इसकी ब्रांडिंग की जा रही है। इससे कई स्वसहायता समूह की महिलाएं जुड़ी हुई है। शहर में नवंबर महीने में इन प्रोडक्ट की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।
यह है नैफेड और ट्राईफेड की जिम्मेदारी: वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना में प्रत्येक उत्पाद की ब्रांडिंग और मार्केटिंग की जिम्मेदारी सहकारी संस्था NAFED यानि नेशनल एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और TRIFED यानि ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया को दी गई है। कृषि व बागवानी उत्पादों में अनानास, बाजरा आधारित उत्पाद, धनिया, मखाना, शहद, रागी, बेकरी, ईसबगोल, हल्दी और चेरी की ब्रांडिंग और मार्केटिंग नैफेड करेगी। जबकि ट्राइफेड को इमली, मसाले, आंवला, दालें, अनाज, कस्टर्ड सेब, जंगली मशरूम, काजू, काला चावल और जंगली सेब की ब्रांडिंग और मार्केटिंग करना है।
नैफेड के ऑनलाइन बाजार पर MP का एक भी प्रोडक्ट नहीं: नैफेड के ऑनलाइन बाजार (Nafed online market) पर ओडीओपी के ऑप्शन का चयन करने पर वहां सिर्फ एक प्रोडक्ट दिखाई देता है जो दिल्ली की एक बैकरी का टोस्ट है। जबकि कृषि और बागवानी के उत्पादों की मार्केटिंग भी इसी के जरिए की जानी है। जब इस संबंध में द सूत्र ने नैफेड के एमपी हेड अमित तनेजा से बात की तो उन्होंने इस बारे में दिल्ली बात करने का सुझाव दिया। जब नैफेड बाजार की वेबसाइट पर दिए गए नंबर 8510056107 पर बात कि तो उन्होंने रितुराज सिंह से 9999602819 पर संपर्क करने के लिए कहा पर ये मोबाइल बंद मिला।
खरगोन में मिर्च को चुना लेकिन ट्राइफेड को पता ही नहीं: भोपाल के अमरूद के बाद अब आपको बताते हैं खरगोन जिले में ओडीओपी के तहत चुनी गई लाल मिर्च की ब्रांडिंग और मार्केटिंग का हाल। खरगोन (Khargone red Chilly Branding) में प्रदेश की 30 फीसदी मिर्ची का उत्पादन होता है। निमाड़ अंचल (Nimar Zone) की लाल मिर्च की अपने खास तीखेपन के कारण पाकिस्तान, चीन, मलेशिया और साउदी अरब तक डिमांड है। यही कारण है कि केंद्र की एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत खरगोन में मिर्ची को चुना गया। लेकिन हालत यह है कि अब तक न तो इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए जिम्मेदार ट्राइफेड के अधिकारियों को इसकी कोई जानकारी है और न ही राज्य के उद्यानिकी विभाग के स्थानीय अधिकारियों को।
मिर्च की न ब्रांडिंग और न ही मार्केटिंग: इस बारे में ट्राईफेड के सहायक प्रबंधक एके भगत से पूछताछ करने पर उन्होंने बताया कि खरगोन से अभी तक किसी किसान से कोई मिर्ची नहीं खरीदी गई और न ही कोई किसान खरगोन से हमारे पास आया है। यदि कोई आएगा तो उसे योजना से जोड़ा जाएगा। वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी पीएस बड़ोले का कहना है कि चिली प्रोसेसिंग यूनिट (chilly proccessing unit) के लिए 55 आवेदन आए थे इनमें से 35 बैंक के पास भेजे हैं। दो प्रोजेक्ट को 2 को लोन मिल गया है और एक यूनिट चालू भी हो गई है। लेकिन स्थानीय मिर्ची की ब्रांडिंग-मार्केंटिंग ट्राईफेड से करानी है ऐसी कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि जब जिम्मेदार अधिकारियों को ही कुछ नहीं पता तो खरगोन की मिर्च की ब्रांडिंग-मार्केटिंग कैसे होगी। इसके बिना ओडीओपी योजना कैसे सफल होगी और स्थानीय किसानों को कैसे आर्थिक लाभ होगा।
भिंड में पोर्टल पर बाजरा की ब्रांडिंग, खेतों में सरसों पर काम: भोपाल के अमरूद, खरगोन की मिर्च के बाद अब जानिए भिंड के बाजरा के हाल। ओडीओपी (Bhind odop ground reality check) में भिंड जिले से बाजरा का चयन किया गया था। पोर्टल पर भी बाजरा की ही ब्रांडिंग की जा रही है। लेकिन स्थानीय प्रशासन बाजरा की जगह सरसों को ODOP मानकर काम कर रहा है। इसके पीछे जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक सतीश चंद्र रूसिया तर्क देते हैं कि बाजरा का आटा ज्यादा दिनों तक नहीं चलता, खराब हो जाता है। इसका उपयोग सिर्फ ठंड के दिनों में या पशुआहार के रूप में ही किया जाता है। इसका पोटेंशियल कम होने से कलेक्टर ने सरसों को चुना है। कृषि विभाग (Agriculture Department) के सहायक संचालक राम सुजान शर्मा बताते हैं कि जिले से बाजरा के बजाय सरसों को ओडीओपी में शामिल करने का अनुरोध किया गया था, जिसकी सैद्धांतिक स्वीकृति मिल गई है। जल्द ही यह पोर्टल पर भी दिखाई देने लगेगा।
जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर किसानों को भी जानकारी नहीं: दरअसल भिंड में वर्ष 2021 में कुल 20 हजार हेक्टेयर भूमि में बाजरा की खेती की गई है। जबकि सरसों का रकबा 2 लाख 15 हजार हेक्टेयर है। रकबे और उत्पादन में काफी अंतर होने से भी जिला प्रशासन बाजरा की जगह सरसों को ODOP में शामिल करवाना चाहता है। लेकिन हकीकत यह है कि जिला मुख्यालय भिंड से सिर्फ 9 किमी दूर रहने वाले किसान को भी ODOP के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। जवासा के सरसों उत्पादक किसान बुद्धसिंह से योजना के बारे में जानकारी लेने पर उन्होंने कहा कि इस बारे में अब तक किसी ने कोई जानकारी नहीं दी है। भारतीय किसान विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीव बरूआ भी कहते हैं कि ये योजना सिर्फ कागजों में ही चल रही है। किसानों को इस योजना का लाभ तभी मिलेगा जब उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी देगा। जिले में बाजरा या सरसों उत्पादक किसानों के बीच योजना का प्रचार-प्रसार नहीं किए जाने के बारे में भिंड के कलेक्टर एस.सतीश कुमार से चर्चा का प्रयास किया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
जबलपुर से मटर का चयन लेकिन किसानों को नहीं मिलते सही दाम: जबलपुर (Jabalpur Pea) की गिनती एशिया के सबसे बड़े मटर उत्पादक जिले के रूप में होती है। लेकिन ओडीओपी के तहत मटर का चयन होने के बावजूद भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। जबलपुर कलेक्टर कर्मवीर शर्मा की माने तो जबलपुर के मटर को अब विदेशों तक भेजा जाने लगा है। मटर का उत्पादन क्षेत्र भी 27 हजार हेक्टेयर से बढ़कर अब 30 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज (matar cold storage) भी मंजूर हुए हैं। लेकिन हकीकत इससे अलग है। मटर उगाने वाले किसान मनीष कुमार और रमेश पटेल ने बताया कि यदि हम अपनी मटर प्रोसेसिंग यूनिट (Pea processing unit) तक ले जाते हैं तो यहां बाजार से आधी कीमत ही मिलती है। एक अन्य किसान भानूसिंह राजपूत बताते हैं कि प्रोसेसिंग यूनिट पर व्यापारी कम रहते हैं, तौल में भी गड़बड़ी होती है। इसलिए वे अपनी फसल मटर की प्रोसेसिंग यूनिट के बजाय बाजार में ही बेचना पसंद करते हैं।
जिम्मेदार अफसरों का तर्क- रिस्क लेने से बच रहे किसान: योजना की नाकामी का ठीकरा अफसर किसानों पर ही फोड़ते नजर आ रहे हैं। उद्यानिकी की उप संचालक अफसरिका आजमी का कहना है कि किसान रिस्क लेने से बच रहे हैं। जिसके चलते वे अपनी फसल प्रशासन द्वारा निर्धारित प्रोसेसिंग यूनिट के बजाय बाजार में बेच रहे हैं। वहीं किसान नेता सम्मति सैनी का कहना है कि एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत जिले में मटर का चयन तो किया गया है लेकिन इसके लिए जरूरी इंतजाम नहीं किए गए हैं। जिसके चलते मंडियों में मटर की भरपूर आवक के बावजूद भी प्रसंस्करण केंद्रों तक मटर नहीं पहुंच पा रहा है।
खंडवा में प्याज को चुना लेकिन जरूरत के मुताबिक गोडाउन नहीं: जिले का प्याज (khandwa one district on product Onion ground reality check) के उत्पादन में प्रदेश में दूसरा स्थान है। करीब 10 हजार हेक्टेयर एरिया में यहां किसान प्याज की फसल बोते हैं। इस कारण यहां की प्याज का चयन एक जिला एक उत्पाद योजना में किया गया है। प्लान यह है कि किसान अपनी प्रोसेसिंग यूनिट डालकर प्याज का पाउडर, पेस्ट और अचार बनाकर बाजार में बेचें। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि किसानों के पास फसल रखने के लिए गोडाउन की व्यवस्था नहीं है। न ही किसानों को अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध हो पाता है। उप संचालक उद्यानिकी राजु बढ़वाया ने बताया कि विकास खंड के अधिकारी किसानों को प्रोसेसिंग यूनिट (Onion proccessing unit) लगाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और कृषि सहकारी समिति के माध्यम से किसानों को अच्छी गुणवत्ता का बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
किसानों की मांग पहले अच्छा बीज दिलवाए प्रशासन: इसके विपरीत किसानों का कहना है कि उद्यानिकी विभाग के कर्मचारियों की पहुंच किसानों तक है ही नहीं। इससे किसानों की योजना के बारे में समय पर सही जानकारी नहीं मिल पाती। फसल के स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से किसानों को प्याज के सीजन में बमुश्किल 1 से 2 रुपए प्रति किलो का भाव ही मिल पाता है। इस कारण कई बार प्याज सड़कों पर फेंकने की नौबत आ जाती है। क्षेत्र के किसान नेता धर्मचंद पटेल ने बताया कि जिले में अभी तक ओडीओपी योजना जमीनी स्तर पर जीरो है। किसानों की सबड़े बड़ी समस्या उन्हें अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध नहीं हो पाना है। किसान बीज के लिए मार्केट पर निर्भर हैं। मार्केट में कई बार नकली बीज मिलता है। इससे किसानों की फसल खराब हो जाती है और उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उद्यानिकी विभाग को सबसे पहले किसानों की संस्था बनाकर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध कराना चाहिए। जिले में योजना पर अमल के बारे में खंडवा कलेक्टर अनूप सिंह ने बताया कि प्याज उत्पादक किसानों को ट्रेनिंग उपलब्ध कराकर जागरूक किया जा रहा है। किसानों के टारगेट ग्रुप को दूसरे राज्यों में भी भेजा जा रहा है।
(भोपाल से राहुल शर्मा, जबलपुर से ओपी नेमा, भिंड से मनोज जैन और खंडवा से शेख रेहान की रिपोर्ट की रिपोर्ट।)