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Bhopal. विधायक रामबाई और दमोह कलेक्टर के बीच हुए विवाद ने एक बार फिर ये बहस छेड़ दी है कि आखिर लोकतंत्र के दो पाए विधायिका और कार्यपालिका में इनती तनातनी क्यों हो रही है। इस विवाद में नेता हों या जनप्रतिनिधि दोनों अपना आपा खोकर भाषा की मर्यादा को तार—तार कर रहे हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि इस तरह की घटनाएं किसी भी लिहाज से उचित नहीं कही जा सकती। संयम की कमी और अहम के भाव ने इन लोकसेवकों को अपनी हद से बाहर कर दिया है।
प्रदेश में नेता-अफसरों में हुए प्रमुख विवाद
- दमोह जिले के पथरिया विधानसभा से विधायक रामबाई सिंह परिहार ने दमोह कलेक्टर एस कृष्ण चेतन्य को सबके सामने कहा-आंखें फूट गई क्या, कलेक्टर हो कि ढोर। उन्होंने कलेक्टर के लिए बेवकूफ और बदतमीज जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया। कलेक्टर ने विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।
अफसरों के अहम से हो रहे विवाद
पूर्व आईएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि अधिकारी अहम में रहते हैं। लोगों से मिलते नहीं हैं। जनप्रतिनिधियों को मिलने का समय नहीं देते। उनकी बातों पर रिस्पांस नहीं दिया जाता। यही कारण है कि नेताओं और अफसरों में विवाद हो जाता है। जनता के सामने नेता अपना आपा खो देते हैं और उनमें सब्र नहीं रहता। अफसरों को सरकार के चाकर बनकर काम नहीं करना चाहिए और सबको बराबर समय देना चाहिए। कम्युनिकेशन गैप ही इन विवादों की जड़ है।
अपनी हद में रहें नेता और अफसर
पूर्व आईपीएस आरएलएस यादव कहते हैं कि नेता और अफसर अपनी हद से बाहर निकलकर मार्यादा लांघ रहे हैं। दोनों की काम करने की लिमिट तय है। ऐसे मौकों पर अफसरों को संयम रखना पड़ेगा। किसी की प्रतिष्ठा पर प्रहार न करें। नेता अक्सर जनता की शिकायत लेकर ही आते हैं। अधिकारियों को यदि नेताओं से कोई आपत्ति है तो शिकायत के बहुत से फोरम हैं उन पर अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं लेकिन मौके पर उनको शालीनता बरतनी चाहिए।