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रूचि वर्मा, BHOPAL. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन यानी आज 17 सितंबर को देश के दिल मध्य प्रदेश के श्योपुर के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में 8 चीतों को छोड़ा जाएगा। अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए गए ये तीन नर और पांच मादा चीते जैसे ही कूनो में एंट्री लेंगे, 1952 में विलुप्त होने के बाद देश में चीता युग एक बार फिर शुरू हो जाएगा।
पर क्या आप जानते हैं कि श्योपुर का कूनो राष्ट्रीय उद्यान (पहले वन्य प्राणी अभयारण्य) में चीता लाना मध्य प्रदेश सरकार की प्राथमिकता नहीं थी, क्योंकि कूनो को गुजरात में गिर में बसे एशियाई सिंहों के दूसरे घर के रूप में तैयार किया गया था। 1996 में यहां गिर के बब्बर शेर बसाने की बात तय हुई थी। इसके लिए बाकायदा लॉयन प्रोजेक्ट भी बनाया गया था। पर गुजरात सरकार के आनाकानी के चलते अब जब कूनो नेशनल पार्क अफ्रीकी चीतों की अगवानी के लिए तैयार है, वहां बब्बर शेरों को बसाने की 27 साल पुरानी सिंह परियोजना का चैप्टर अब क्लोज हो गया है। भारत सरकार कूनो से 8 हजार किमी दूर नामीबिया से चीते ले आई, पर वो सिर्फ 1000 किमी दूर से गिर के शेर कूनो नहीं ला पाई।
गुजरात से मप्र आने थे 6-8 शेर, इसी के लिए अभयारण्य से राष्ट्रीय उद्यान बना कूनो
- श्योपुर के जंगल के 345 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को मध्य प्रदेश सरकार ने 1981 में कूनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य डिक्लेयर किया था।
कूनो का क्षेत्रफल बढ़ाया, सिक्योरिटी की, पर शेर नहीं चीते मिल गए
राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने के साथ ही इसका क्षेत्रफल भी 345 वर्ग किलो से बढ़ाकर अब 748 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया। कूनो वनमंडल के पूरे जंगल का कुल रकबा 1200 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 24 गांवों का विस्थापन किया गया, जिनके रिहैबिलिटेशन में करीब 76.50 करोड़ की राशि खर्च की गई। शिकारियों को रोकने के लिए कुनो राष्ट्रीय उद्यान में सशस्त्र पूर्व सैनिकों की तैनाती कर दी गई।
मध्य प्रदेश सरकार की ढेर तैयारियों और कई कोशिशों के बाद भी गुजरात सरकार ने शेर नहीं दिए। थक-हारकर 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने कूनो में अफ्रीकी चीते बसाने की योजना बनाई। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को इसकी मंजूरी दी। इसके बाद 2 साल COVID-19 के रहते निकल गए, लेकिन फिर 2021 में प्रोजेक्ट ने तेजी पकड़ी और 17 सितंबर 2022 को चीते भारत आ गए।
शेरों का दूसरा घर जरूरी- अभिलाष खांडेकर
इस मुद्दे पर द सूत्र ने बाघों और पर्यावरण के जानकार वरिष्ठ पत्रकार और मध्य प्रदेश वन्य जीव बोर्ड के सदस्य अभिलाष खांडेकर से बात की। उनका कहना है कि गुजरात को अड़ियल रवैया छोड़ते हुए मध्य प्रदेश को शेर देने चाहिए थे। यह देश में शेरों के संरक्षण के लिहाज से जरूरी है कि गिर के शेरों का कोई दूसरा घर भी हो और मध्य प्रदेश इसके लिए बेस्ट है।