Gwalior. सुरेश पचौरी के जरिए राजनीति में कदम रखने वाले प्रवीण पाठक अंचल से कांग्रेस के तकरीबन सबसे कम उम्र के विधायक है। वे प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने दिल्ली गए थे, लेकिन नेताओं की संगत ने उन्हें राजनीति में खींच लिया। उनकी खास बात है- लीक से अलग हटकर काम करने की उनकी शैली। वे अपने हर काम से चौंकाते है, जो चर्चा का विषय बन जाता है। 2018 में जब विधानसभा चुनाव होने थे, तब कोई उन्हें दावेदार मानकर नहीं चल रहा था, लेकिन उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सरीखी अपनी बोली पेंटिंग पूरे क्षेत्र में करवा दी थी। कांग्रेसी तक इसका मजाक उड़ाते थे, लेकिन जब कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो सब चौंक पड़े। कांग्रेस ने ग्वालियर दक्षिण से प्रवीण को ही प्रत्याशी बनाया था।
प्रवीण भावनाओं में बहे या फिर कुछ और?
प्रवीण ने द सूत्र से कहा- डॉ. नरोत्तम मिश्रा मेरे अग्रज है और राजनीति में भी वरिष्ठ इस नाते उनका सम्मान करना मेरा दायित्व भी है और मेरे संस्कार भी। मैं आदरभाव के समय राजनीतिक नजरिया नही देखता। लेकिन मेरा मानना है कि नरोत्तम मिश्रा के साथ अन्याय हुआ है। कमलनाथ सरकार बनने के बाद जोड़तोड़ कर फिर भाजपा सरकार (पेड़) बनाने के लिए सारी मेहनत नरोत्तम जी ने की। अब जब पेड़ पर फल लग गए तो चूस कोई और रहा है।
पाठक ये भी कहते है कि नरोत्तम मिश्रा में अनुभव और योग्यता की कोई कमी नहीं है। जब वे हर क्राइटेरिया में फिट बैठते है तो पार्टी नेतृत्व को उनके बारे में सोचना चाहिए। मैंने यह बात राजनीतिक नहीं, सामाजिक मंच पर कही थी, क्योंकि समाज यही चाहता है। मैंने दलीय राजनीति से दूर सिर्फ सामाजिक लोगों की भावनाओ को उजागर किया था और कहा था कि वे ही समाज के गृह मंत्री है, वे ही डीजीपी और वे ही सीएम।
नरोत्तम के लिए नई पैरवी
ग्वालियर से कांग्रेस MLA @PRAVEENPATHAK13 का बयान @drnarottammisra में योग्यता, क्षमता,अनुभव की कोई कमी नहीं। समाज चाहता है कि वे मप्र के मुख्यमंत्री हों, इसमें बुराई क्या है? जिसने पेड़ लगाया,फल कोई और चूस रहा।
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— TheSootr (@TheSootr) May 24, 2022
अपराजेय को हराया
टिकट पाना तो खैर अलग बात थी, लेकिन जिस सीट से प्रवीण को टिकट मिला, वह जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी का गढ़ रही है। देश आजाद हो जाने के बाद से इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ 2 बार जीत पाई थी। पाठक का मुकाबला भी बीजेपी के एक अपराजेय प्रत्याशी नारायण सिंह कुशवाह से था, जो लगातार दो चुनाव जीत चुके थे और मंत्री भी थे। जातिगत समीकरण ऐसे थे कि सब जानते थे कि जीत बीजेपी की होगी, लेकिन पाठक ने इतिहास रच दिया। उन्होंने नारायण को कड़ी टक्कर ही नहीं दी, बल्कि मामूली अंतर से ही सही लेकिन बीजेपी का यह अपराजेय दुर्ग ढहा दिया।
विधायक पाठक की कई खासियतें
पाठक अलग तरह से राजनीति करते है। कहते हैं कि बीजेपी के युवकों में उनकी पैठ है। वे हर घटना दुर्घटना के समय पर सड़क पर होते हैं। कोरोना में ऑक्सीजन के की कमी के समय उन्होंने अपने निजी कॉन्टैक्ट से ओडिशा से तीन टैंकर ऑक्सीजन मंगाकर चौंकाया। वहीं, देश ने टैंकर के लिए रोड साफ कराते हुए उसके आगे दौड़ता उनका वीडियो पूरी दुनिया ने देखा। वे बच्चो के लिए पुस्तक बैंक चलाते है तो कभी एक छोटी कद काठी वाले युवा को नौकरी देने के लिए संपर्क करने के लिए चर्चा में आते है। उनके क्षेत्र के निवासी कमल माखीजानी को बीजेपी ने जिलाध्यक्ष बनाया तो वे बधाई देने उनके घर पहुंचे और खुद उनका स्वागत करते फोटो सोशल मीडिया पर डालकर सबको चौंका दिया। कभी वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफ करते हैं तो चर्चा हो जाती है और कांग्रेसी और भाजपाई दोनो के कान खड़े हो जाते है। जब सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में गए तो पाठक खुलकर कांग्रेस के साथ खड़े हो गए।
चौंकाने वाला बयान दिया
22 मई को ग्वालियर में ब्राह्मण समाज का बड़ा जलसा था। इसमें ब्राह्मण समाज की रैली के बाद आयोजित सभा मे प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक मौजूद थे। प्रवीण को जब भाषण देने बुलाया तो संबोधन शुरू करते ही उन्होंने नरोत्तम की तारीफ में कसीदे गढ़ दिए। कहा- सरकारें आतीं है, सरकारें जातीं है। मंत्री पद आते हैं, विभाग बदलते रहते हैं, लेकिन लंबे समय से पिछले 3-4 दशक से हमारे ब्राह्मण समाज का गृह मंत्री हैं- आदरणीय नरोत्तम दादा। मैं उनको प्रणाम करता हूं। मैं बोलना चाहता हूं कि अपने समाज का मंत्रालय कभी नही बदलने वाला। मैं ये भी बोलना चाहता हूं कि ये (नरोत्तम दादा) अपने गृह मंत्री भी है। डीजीपी भी यही हैं और अपने मुख्यमंत्री भी यही हैं। पाठक का यह भाषण सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो कई चर्चाएं चल पड़ीं।