GWALIOR: हाईकोर्ट बेंच में जज ने ADG वर्मा से पूछा- गुना-ग्वालियर में कितने थाने?अफसर बोले- करीब.., कोर्ट ने कहा- लगभग नहीं चलेगा

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The Sootr CG
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GWALIOR: हाईकोर्ट बेंच में जज ने ADG वर्मा से पूछा- गुना-ग्वालियर में कितने थाने?अफसर बोले- करीब.., कोर्ट ने कहा- लगभग नहीं चलेगा

देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में एक सुनवाई के गजब मामला सामने आया। यहां जज ग्वालियर एडीजी डी श्रीनिवास वर्मा ग्वालियर से पूछते हैं कि आपके क्षेत्र (ग्वालियर) में कितने जिले है। फिर उनसे पूछा कि गुना जिले में कितने थाने हैं? इस पर वर्मा ने लगभग (Approx) कहते हुए जवाब दिया। इस पर बेंच ने कहा- एप्रॉक्स में नहीं चलेगा। 

 

ये था मामला



दरअसल एडीजी वर्मा को हाईकोर्ट बेंच ने 2017 में गुना से दर्ज एक मामले को तलब किया था। इसमें एक नाबालिग लड़की के बारे में पुलिस इन्वेस्टिगेशन को लेकर आपत्ति की गई थी। फरियादी पक्ष के वकील अनिल कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 2017 में गुना जिले के एक गांव से एक नाबालिग बच्ची गायब हो गई थी। इसमें परिजन ने एक युवक पर शक जताया था। पुलिस ने युवक को गिरफ्तार भी किया, लेकिन उसकी बात पर भरोसा कर मान लिया कि लड़की को वह लेकर नही गया। वह छूट गया। इसके बाद परिजन ने ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच में याचिका दायर की।



क्या कहते हैं वकील?



एडवोकेट श्रीवास्तव कहते हैं कि इस मामले की सुनवाई के दौरान मामले की जांच में कई गंभीर लापरवाही और गड़बड़ियां सामने आईं। चालान और अदालत में पेश जबाव में भी यही विसंगतियां थीं। इस बीच आरोपी बरी हो गया। पुलिस ने बताया कि एक व्यक्ति को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने बताया था कि वह बच्ची को बहला-फुसलाकर ले गया था। उसने रेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी। खास चौंकाने वाली बात ये कि पुलिस ने उसे भी आरोपी बनाकर गिरफ्तार नहीं किया। 



श्रीवास्तव का कहना है कि इन तथ्यों के प्रकाश में आने के बाद हाईकोर्ट बेंच ने ग्वालियर के एडीजी को तलब किया था। इसमें वे गुना और ग्वालियर जिले के थानों की संख्या तक नही बता पाए। अब कोर्ट ने 20 जुलाई की तारीख लगाई है और कहा कि मामले से जुड़े सभी ऑन और ऑफ द रिकॉर्ड लेकर आएं।



थानों की संख्या पता ना होने पर ये बोले 3 पूर्व अफसर



मध्य प्रदेश के पूर्व डीजीपी एनके त्रिपाठी ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को सामान्यत: अपने थानों की जानकारी होनी चाहिए। अमूमन ऐसा होता भी है। लेकिन कोर्ट को भी ऐसे सवाल नहीं पूछने चाहिए, जो मामले से संबंधित ना हों। गंभीर मामलों के इन्वेस्टीगेशन में पुलिस अधिकारियों की नजर होनी चाहिए।  



रिटायर्ड डीजी आरएलएस यादव के मुताबिक, ये कोई इतना गंभीर मामला नहीं है। पुलिस अधिकारियों का अलग-अलग जिलों में तबादला होता रहता है, इसलिए जिलों के थानों की संख्या याद नहीं रहती। हालांकि क्राइम इन्वेस्टीगेशन पूरी गंभीरता और तत्परता से होना चाहिए। गंभीर मामलों में तो अधिकारियों की निगरानी होनी चाहिए। 

                                   

पूर्व स्पेशल डीजी मैथिलीशरण गुप्त ने बताया कि उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए योग्यता की बजाय पॉलिटिकल अप्रोच को तवज्जो दी जा रही है। यहीं वजह है कि ऐसी बानगी देखने को मिली। अधिकारी अपनी ऊर्जा बेहतर पुलिसिंग में लगाने की बजाय कुर्सी पर बने रहने और उच्च पद पर नियुक्त होने के लिए जोड़तोड़ में लगाते है।


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