BHOPAL : संसद में जिस गड़बड़ी का मुद्दा गूंजा, उसके लापरवाहों को एम्स प्रबंधन ने दोबारा उसी जिम्मेदारी से नवाजा

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Ambuj Maheshwari
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BHOPAL : संसद में जिस गड़बड़ी का मुद्दा गूंजा, उसके लापरवाहों को एम्स प्रबंधन ने दोबारा उसी जिम्मेदारी से नवाजा

BHOPAL. लोकसभा में मंगलवार को नर्मदापुरम सांसद राव उदय प्रताप सिंह सदन का ध्यान एम्स भोपाल की जिस लापरवाही की तरफ खींच रहे थे, उस समय इस मामले के जिम्मेदार डॉक्टर एम्स प्रबंधन के कृपा पात्र होने से वही विभाग संभाल रहे थे। जी हां, आपको आश्चर्य जरूर होगा कि जो शिकायत प्रधानमंत्री के दफ्तर तक गई हो और उसके बाद जिस पर जांच शुरू हुई उसे न केवल 3 महीने से एम्स प्रबंधन दबाकर बैठा है बल्कि कुछ दिन के लिए लापरवाहों को हटाकर दोबारा वहीं पदस्थ करने का आदेश भी 22 जुलाई को निकाल दिया है।




एम्स प्रबंधन का आदेश।

एम्स प्रबंधन का आदेश।




एम्स ब्लड बैंक की गड़बड़ियों से जुड़ा मामला



ये मामला एम्स भोपाल के ब्लड बैंक में हुई गड़बडियों से जुड़ा है। सांसद उदय प्रताप सिंह ने लोकसभा में एम्स भोपाल में हो रहीं अनियमितताओं का न केवल जिक्र किया है बल्कि केन्द्र सरकार और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया से जांच करवाने और व्यवस्थाएं दुरुस्त कराने की मांग भी की है।



लापरवाही के 3 बड़े मामले



एम्स भोपाल में एक साथ ब्लड ट्रांसफ्यूजन में लापरवाही के तीन बड़े मामले पीएमओ में शिकायत के बाद साल की शुरुआत में सामने आए थे। एक मामले में एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने से 10 साल की बच्ची की मौत तक हो गई थी। पीड़ितों ने अपनी शिकायत पहले एम्स प्रबंधन को की थी लेकिन जब उनकी सुनवाई नहीं हुई तो इस मामले की शिकायत राष्ट्रपति, पीएमओ से लेकर केन्द्र और राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को भेजी गई थी। स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल ने इस मामले में जांच भी कराई लेकिन लापरवाह अफसरों पर कोई कार्रवाई एम्स प्रबन्धन नहीं कर पाया। अब संसद में मामला उठने के बाद अधिकारी परेशान नजर आ रहे हैं।



जांच की जद में डॉक्टर फिर वहीं पदस्थ कर किया उपकृत



इस पूरे मामले में सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड एवं कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) और मप्र के खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने भी जांच में पाया था कि इस संस्‍थान में मरीजों का रिकॉर्ड ब्लड बैंक के तय मापदंडों के अनुसार संधारित नहीं किया गया है। इसके लिए औषधि प्रशासन की तरफ से एम्स को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था। यहां लंबे समय से डॉक्टरों के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से मरीजों की सुविधाएं भी प्रभावित हुई हैं। अभी तक मामला जांच में ही है इसकी रिपोर्ट भी दबा दी गई है। जांच की जद में होने के बावजूद 22 जुलाई को निकले आदेश में डॉक्टर नीलकमल कपूर और डॉ. प्रतुल सिन्हा को वापस वो ही जिम्मेदारी दे दी गई है।



लोकसभा में क्या बोले सांसद राव उदय प्रताप



सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने लोकसभा में कहा था कि मैं एम्स भोपाल के विषय को में संज्ञान में लाना चाहता हूं। मैं एम्स की गवर्निंग बॉडी का सदस्य हूं। एम्स भोपाल के ब्लड बैंक को संचालित करने वाले डॉक्टरों की गतिविधियों के कारण मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ा है। एम्स में ब्लड कलेक्शन और दूसरे ग्रुप का ब्लड दूसरे मरीज को चढ़ाने का मामला हो या फिर एचआईवी संक्रमित ब्लड मरीजों को चढ़ाने का मामला हो। ऐसी गंभीर लापरवाही एम्स भोपाल में की जा रही हैं। एम्स में जांच के लिए बनी कमेटियों की रिपोर्ट में तथ्य कर्मचारियों और डॉक्टरों के खिलाफ आए हैं।



प्रशासनिक ढांचे में भी बदलाव की मांग



राव उदय प्रताप सिंह ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री से संसद में कहा है कि एम्स में कई प्रकार की अनियमितताएं हो रहीं हैं। एम्स में डायरेक्टर भी डॉक्टर होते हैं और डॉक्टर को ही एम्स का प्रेसिडेंट बनाया जाता है। उदय प्रताप सिंह ने मनसुख मांडविया से कहा कि एडमिनिस्ट्रेशन एक अलग विषय है ऐसे में एम्स में डायरेक्टर और प्रेसिडेंट के लिए अनुभवी अधिकारियों की नियुक्ति करने पर विचार किया जाए।



जांच कमेटी ने नहीं सौंपी रिपोर्ट



केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने भोपाल एम्स को दिसंबर 2021 में तीन शिकायतें भेजकर रिपोर्ट मांगी थी। इनमें ब्लड बैंक पर लापरवाही के आरोप लगे थे। एक 10 साल की बच्ची को गलत तरीके से एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया। दूसरी शिकायत में एक डोनर को ब्लड स्क्रीनिंग की रिपोर्ट ही नहीं बताई गई। वो एचआईवी पॉजिटिव था और उसे इसकी जानकारी तक नहीं दी गई। इससे उसकी पत्नी भी एचआईवी पॉजिटिव हो गई। तीसरे मामले में एक मरीज को गलत ब्लड ग्रुप का खून चढ़ा दिया। इससे उसकी मौत हो गई। यह तीनों मामले साल 2017 से नवंबर 2021 के बीच के हैं।



लापरवाहों को दोबारा दी गई ब्लड बैंक की कमान



एम्स प्रबंधन ने शिकायतें मिलने पर ब्लड बैंक इंचार्ज को कुछ दिनों के लिए तो हटाकर एम्स अधीक्षक मनीषा श्रीवास्तव को चार्ज दे दिया था लेकिन अब वापस लापरवाहों को ब्लड बैंक की कमान दे दी गई है। जांच के लिए एक कमेटी बनाई। खास बात ये है कि 7 महीने बाद भी इस कमेटी की जांच रिपोर्ट एम्स प्रबंधन को नहीं मिली है। जानकारों का कहना है कि प्रबंधन पूरे मामले को दबाने में लगा था, इसलिए अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। घटना के करीब 6 महीने बाद बागसेवनिया पुलिस ने एम्स से बच्ची की मौत के मामले में हुई जांच और कार्रवाई का ब्यौरा मांगा था।



अफसर रिपोर्ट नहीं मिलने की बात कह रहे



इस मामले में मप्र एड्स कंट्रोल सोसाइटी के परियोजना संचालक केडी त्रिपाठी का कहना है कि शिकायतों पर एम्स प्रबंधन से जांच कर रिपोर्ट मांगी थी लेकिन अभी रिपोर्ट नहीं मिली है। इस मामले में एम्स प्रबंधन का कहना है कि शिकायत मिलने के बाद कमेटी बना दी गई थी। कमेटी में आंतरिक और बाहरी सदस्यों को रखा गया है, रिपोर्ट का इंतजार है।


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