Bhopal: राजधानी भोपाल में रेयर ब्लड ग्रुप यानी नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाले यदि किसी हादसे का शिकार हो जाएं या किसी अन्य कारण से अस्पताल में भर्ती हो जाएं तो ऐसे मरीजों को अपने ग्रुप के खून के लिए भटकना पड़ रहा है। दरअसल, मंगलवार, 14 जून को वर्ल्ड ब्लड डोनर डे पर द सूत्र को अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पता चलता है कि राजधानी में नेगेटिव/रेयर ब्लड ग्रुप वाले डोनर काफी कम है। 100% में से 20% डोनर ही रेयर ब्लड ग्रुप वाले होते हैं बाकी के 80% नार्मल ब्लड ग्रुप वाले होते हैं। इस स्थिति के बावजूद राज्य या राजधानी भोपाल में ऐसी कोई सरकारी अथवा प्राइवेट व्यवस्था नहीं हैं हैं जो विषेशतः रेयर ब्लड ग्रुप के लोगों की ब्लड की जरूरतों को पूरा करती हो। जरुरत पड़ने पर रेयर ब्लड ग्रुप यानी नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाले मरीज़ों को भी उसी तरह से ब्लड मिलता हैं जैसे किसी नार्मल ब्लड ग्रुप वाले मरीज़ों को, जबकि रेयर ब्लड ग्रुप वाले मरीज़ों को कम डोनर्स होने की वजह से दिक्कत ज्यादा होती हैं।
सबसे पहले जानिये क्या होता है रेयर ब्लड ग्रुप
हमारे शरीर में दौड़ रहा खून आठ अलग अलग ब्लड ग्रुप का बना होता है. ये ब्लड ग्रुप होते हैं- A, B, AB और O पॉजिटिव और नेगेटिव। ए नेगेटिव, बी नेगेटिव, एबी नेगेटिव, ओ नेगेटिव और RH-Null सहित जो भी ब्लड ग्रुप नेगेटिव श्रेणी में आते हैं, उन्हें रेयर माना गया है। आमतौर पर इस तरीके ब्लड ग्रुप कम लोगों में पाए जाते हैं। जरुरत पड़ने पर इन ब्लड ग्रुप का खून या डोनर आसानी से नहीं मिलते हैं। इसके अलावा ओ बॉम्बे पॉजीटिव ब्लड ग्रुप काे भी रेयर माना जाता है।
सरकार को रेयर ब्लड ग्रुप डोनर्स की स्पेशल डायरेक्टरी बनानी चाहिए: शरद सिंह कुमरे, ब्लड डोनेशन कार्यकर्त्ता
ब्लड डोनेशन के एक्टिव कार्यकर्त्ता शरद सिंह कुमरे, जिन्होंने करीब 95 बार रक्तदान किया है, का कहना है कि खून का कोई विकल्प नहीं होता। जरुरत पड़ने पर आम आदमी को एक सामान्य ब्लड ग्रुप जुटाने में परेशानी होती है तो रेयर ब्लड ग्रुप यानी की नेगेटिव ब्लड ग्रुप की जुगाड़ करने में आने वाली दिक्कतें तो और भी जयादा हैं। सरकार को इस स्थिति के लिए समीक्षा करने कि जरुरत है कैसे आम आदमी को रेयर ब्लड ग्रुप आसानी से उपलब्ध हो पाए। शरद सिंह ने सुझाव दिया की इस परेशानी से निबटने के लिए सरकार को वॉलन्टरी रेयर ब्लड ग्रुप/नेगेटिव ब्लड ग्रुप डोनर्स की स्पेशली अलग से एक डायरेक्टरी बनानी चाहिए। इस डायरेक्टरी को पब्लिक डोमेन में रखा जाना चाहिए जिससे जरुरत पड़ने पर लोग आसानी से ऐसे डोनर्स को ट्रेस कर सकें। जिस तरह से अन्य चिकित्सा सहायता के लिए 108 हेल्पलाइन चलाई जाती है उसी तरह ब्लड डोनेशन के लिए भी एक अलग से डेडिकेटेड हेल्पलाइन होनी चाहिए जिससे लोगो की जान बच सके।
10 डोनर में से 2 डोनर ही नेगेटिव यानी रेयर ब्लड ग्रुप वाले
भोपाल के रेड क्रॉस ब्लड बैंक की सुपरवाइसर रेखा सिंह बताती हैं कि नेगेटिव ब्लड ग्रुप वक़्त पर मिल जाना किस्मत कि बात है। नार्मल ब्लड ग्रुप और नेगेटिव/रेयर ब्लड ग्रुप का रेश्यो 2:10 का है। 10 डोनर में से 2 डोनर ही नेगेटिव यानी रेयर ब्लड ग्रुप वाले होते हैं। 100% में से 20% डोनर ही रेयर ब्लड ग्रुप वाले होते हैं बाकी के 80% नार्मल ब्लड ग्रुप वाले होते हैं। और उन 20% रेयर ब्लड ग्रुप डोनर में भी ए नेगेटिव, बी नेगेटिव, एबी नेगेटिव, ओ नेगेटिव ब्लड ग्रुप अलग-अलग होते हैं। ब्लड बैंक के डायरेक्टर ओ पी श्रीवास्तव ने भी डी सूत्र से बात करते हुए यही डाटा कंफर्म करते हुए बोल कि रेयर ब्लड ग्रुप डोनर सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत ही हैं। रेयर ब्लड ग्रुप यानी नेगेटिव ब्लड ग्रुप डोनर्स की संख्या कितनी कम है यह रेड क्रॉस ब्लड बैंक के 14 जून, 2022 के स्टैटिस्टिकल ब्लड स्टॉक से साबित हो जाता है:
- A+: 504, A-: 41
निगेटिव ब्लड ग्रुप की डिमांड कम
जेपी हॉस्पिटल में ब्लड बैंक में कार्यरत पैथोलॉजिस्ट शोभा खरे बताती है कि जहाँ रेयर ब्लड ग्रुप वाले डोनर की कमी है वहीँ उस हिसाब से डिमांड भी कम ही आती है। JP हॉस्पिटल के ब्लड बैंक की बात की जाए तो 25 ब्लड डिमांड्स में से 2 ब्लड डिमांड्स ही नेगेटिव ब्लड ग्रुप की आती हैं।
रेयर ब्लड ग्रुप कि जरुरत पड़े तो कैसे जुटाएं
- रेखा सिंह ने बताया कि रेड क्रॉस ब्लड बैंक में रेयर ब्लड ग्रुप/नेगेटिव ब्लड ग्रुप वालों को सुविधा दी जाती है कि उनके द्वारा बैंक में ब्लड डोनेट करने के बाद के 3 महीनों के लिए एक कार्ड दिया जाता है। यह कार्ड यह सुनिश्चित करता है कि इन तीन महीनों में अगर उन्हें कभी ब्लड कि जरुरत पड़ी तो उन्हें बिना किसी ब्लड डोनेशन हुए एक्सचेंज के ब्लड दे दिया जाएगा।