Jabalpur. सिविल जज और एडीजे की भर्ती परीक्षा में पारदर्शिता की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत की गई है। याचिका में साक्षात्कार में पास होने के लिए अनिवार्य रूप से 50 में से 20 अंक प्राप्त करने वाले नियम को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध बताया गया। याचिका में यह भी कहा गया है कि अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका व्यक्तिगत नहीं है, इसे सार्वजनिक दस्तावेज बताते हुए सूचना के अधिकार में दिए जाने की मांग की गई है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई जस्टिस शील लागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ में की गई, मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत की गई है।
याचिकाकर्ता की मांग है कि प्रत्येक चयनित अभ्यर्थी की उत्तर पुस्तिका का सुप्रीमकोर्ट के फैसलों की रोशनी में सार्वजनिक किया जाना लोकहित में आवश्यक है। ताकि उक्त भर्ती प्रक्रिया पूर्णतः पारदर्शी हो सके। विगत भर्ती में भेदभाव पूर्ण चयन किए जाने के आरोप हैं। आरक्षित वर्ग के सैकड़ों पदों को नॉट फॉर सूटेबिल के नियम को आधार मानकर रिक्त छोड़ दिया गया। जिन अभ्यर्थियों को 80 से 95 फीसद अंक मिले थे उन्हें भी साक्षात्कार में फेल कर दिया गया। उक्त नियम को याचिका में मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया है।