विजय मांडगे, भोपाल. एमपी में आरक्षण फाइल्स, द कश्मीर फाइल्स की तरह ही विवादों में है। बवाल मचा है। कोर्ट में तमाम सारी याचिकाएं लगी हुई हैं, जिन पर सुनवाई चल रही है। हम आपको दिखा रहे हैं कि आरक्षण फाइल्स का एक ऐसा पन्ना, जो सामान्य वर्ग के हितों को चोट पहुंचा रहा है। ये मामला एमपी पीएससी भर्ती नियम 2015 से जुड़ा है। सरकार ने साल 2015 में इस नियम में संशोधन कर सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए प्रतिस्पर्धा को बहुत ज्यादा कठिन बना दिया है। एमपी पीएससी इस नियम का मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर रही है, जबकि हाईकोर्ट आदेश दे चुका है कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश सरकार नियमों और पॉलिसी के खिलाफ जाकर कोर्ट के आदेश को अनदेखा करके मनमानी कर रही है।
इस तरह सामान्य वर्ग के साथ हो रही नाइंसाफी
असल में 2015 के पहले तक रिजर्व्ड कैटेगरी के किसी कैंडिडेट को पर्याप्त नंबर आने पर जनरल कैटेगरी में जम्प करने का मौका तीसरे चरण यानी फाइनल स्टेज पर मिलता था। फाइनल स्टेज यानी इंटरव्यू के बाद बनने वाली सूची। लेकिन 2015 में मध्यप्रदेश सरकार ने इस नियम में संशोधन कर दिया। इसके बाद से रिजर्व्ड कैटेगरी के कैंडिडेट को प्रारंभिक यानी प्रीलिम्स की परीक्षा के बाद से ही जम्प करने का मौका मिलने लगा। प्रीलिम्स, मैन्स और फिर फाइनल स्टेज पर रिजर्व्ड कैंडिडेट को जम्प करने के मौके मिलने लगे। इसे व्यवस्था से जनरल कैटेगरी के कैंडिडेट्स को सीटों का भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
तीन चरणों में होती है पीएससी की परीक्षा
पीएससी की परीक्षा तीन चरणों में होती है। पहला चरण है- प्रारंभिक परीक्षा। दूसरा चरण है- मुख्य परीक्षा और तीसरा यानी अंतिम चरण होता है- साक्षात्कार (इंटरव्यू)। इन तीनों चरणों में कैंडिडेट्स को शार्टलिस्ट किया जाता है। गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक जितने खाली पद होते हैं या यूं कहा जाए कि जितने पदों के लिए विज्ञापन निकाला जाता है, प्रीलिम्स में उससे 20 गुना कैंडिडेट्स का सिलेक्शन किया जाता है। अगर 100 पदों के लिए विज्ञापन निकला है तो 2000 कैंडिडेट्स का प्रीलिम्स में सिलेक्शन होगा। एग्जाम होने के बाद कैंडिडेट सिलेक्शन में सबसे पहले अनरिजर्व यानी अनारक्षित या जनरल कैटेगरी का कट ऑफ निर्धारित किया जाता है। इसके बाद रिजर्व यानी आरक्षित कैटेगरी के ऐसे कैंडिडेट्स जिन्होंने निर्धारित कट ऑफ से ज्यादा या बराबर अंक हासिल कर लिए हैं। उन्हें अनरिजर्व कैटेगरी में जम्प करवा दिया जाता है। दूसरी सूची बनती है, रिजर्व कैटेगरी की। यानी SC, ST, OBC और EWS की, जिन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है।
भर्ती नियमों में इतना आरक्षण
नियम के मुताबिक जो आरक्षण है वो इस तरह से है। sc- 16%, St- 20%, obc- 14%, Ews-10%, UR- 40% यानी कुल 100 फीसदी। इसके बाद तीन और सूची बनती है। महिलाएं, भूतपूर्व सैनिक और दिव्यांगजनों की। यानी प्रिलिम्स में सिलेक्टेड कैंडिटेड्स की कैटेगरी के हिसाब से 5 सूचियां बनती हैं और इन पांचों सूचियों की एक कंबाइन्ड सूची बनाई जाती है। मेन्स के लिए क्वालिफाइड कैंडिडेट्स का रिजल्ट डिक्लियर्ड किया जाता है।
सामान्य वर्ग से अन्याय
मान लीजिए कि प्रीलिम्ल में 2000 कैंडिडेट्स का सिलेक्शन हुआ। इसमें कैटेगरी के हिसाब से देखें तो 40 फीसदी अनरिजर्वड कैंडिडेट होंगे। 14 फीसदी ओबीसी, 16 फीसदी एससी, 20 फीसदी एसटी, 10 फीसदी ईडब्लूएस और बाकी महिलाएं, भूतपूर्व सैनिक और दिव्यांगजन। यानी 2000 में से 800 कैंडिडेट्स अनारक्षित होंगे। ओबीसी- 280, एससी- 320, एसटी- 400 और 200 ईडब्लूएस कैंडिडेट्स होंगे। लेकिन रिजर्व कैटेगरी के कुछ कैंडिडेट्स के मार्क्स यदि अनरिजर्व कैटेगरी के कैंडिडेट्स के मार्क्स के बराबर या कट ऑफ के बराबर हैं, तो वो जम्प करके जनरल यानी अनरिजर्व्ड कैटेगरी में शामिल हो जाएंगे। अब मान लीजिए कि रिजर्व्ड कैटेगरी के 150 कैंडिडेट्स ऐसे हैं, जिनके मार्क्स जनरल की कट ऑफ के बराबर हैं, तो वो सभी 150 कैंडिडेट जम्प करके अनरिजर्व या सामान्य कैटेगरी में शामिल हो जाएंगे और ऐसा करने से जनरल यानी अनरिजर्व्ड कैटेगरी के 150 कैंडिडेट्स मैरिट लिस्ट से बाहर हो जाएंगे। या सीधे शब्दों में कहें, तो यदि अनरिजर्व कैटेगरी के 800 छात्रों का प्रीलिम्स में सिलेक्शन होना था, तो सिलेक्ट होंगे केवल 650।
अब दूसरे चरण यानी मेन्स एग्जाम की बात करते हैं। इसमें जितने पद खाली हैं, उसके हिसाब से तीन गुना कैंडिडेट्स का सिलेक्शन किया जाता है। यानी 100 पद है तो 300 कैंडिडेट्स का इंटरव्यू के लिए सिलेक्शन होगा और इस दौरान भी पांच लिस्ट तैयार होती है। इसका हमने पहले जिक्र किया। सारे नियम वो ही है, अब मान लीजिए कि 300 में से 70 कैंडिडेट्स के मार्क्स, अनरिजर्व कैटेगरी के कैंडिडेट्स के मार्क्स के या कट ऑफ के बराबर हैं, तो वो अनरिजर्व कैटेगरी में जम्प कर जाएंगे और सामान्य वर्ग के छात्रों की संख्या एक बार फिर 70 कम हो जाएगी। प्रीलिम्स के बाद सामान्य वर्ग के कैंडिडेट्स को पहले 150 सीट का नुकसान हुआ और अब मैन्स के बाद 70 सीटों का और नुकसान हो गया।
यही प्रोसेस फाइनल स्टेज यानी इंटरव्यू के दौरान भी अपनाई जाती है। इंटरव्यू के बाद भी सामान्य वर्ग के बराबर नंबर लाने वाले आरक्षित वर्ग के कैंडिडेट्स को तीसरी बार सामान्य वर्ग में जम्प करने का मौका मिल जाता है। मतलब तीन-तीन बार आरक्षित वर्ग के कैंडिडेट्स को जम्प करने का मौका दिया जा रहा है। इस लिहाज से पीएससी के पिछले कुछ परिणामों का विश्लेषण करने पर साफ पता चलता है कि मान लीजिए अगर कुल 300 पदों के लिए एग्जाम हुआ, तो फाइनल स्टेज में यानी इंटरव्यू के बाद उसमें 40 फीसदी आरक्षण के हिसाब से यानी 120 परीक्षार्थी सामान्य वर्ग के होने चाहिए। लेकिन परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस सूची में कम से कम 50 रिजर्व्ड कैटेगरी के परीक्षार्थी जम्प करके सामान्य वर्ग में आ जाते हैं। मतलब सामान्य वर्ग के चयनित परीक्षार्थियों की संख्या 120 की बजाए 70 ही रह जाती है और उधर रिजर्व्ड कैटेगरी के परीक्षार्थियों की संख्या भी 180 से बढकर 230 हो जाती है।
कानूनविदों और जानकारों से पूरा समझकर द सूत्र ने ये पूरा गणित आपके सामने रखा है। ऐसा नहीं है कि इस मामले में हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर नहीं हुई। याचिकाएं दायर हुई लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को भी दरकिनार कर दिया। इस नियम को लेकर हाईकोर्ट के वकील अंशुल तिवारी का कहना है कि सरकार ने मप्र राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में जो संशोधन किया, उसमें किसी तरह की क्लेरिटी नहीं है।
जबकि नियम 2015 के बाद हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने विशाल जैन के केस में साफ कहा था कि आरक्षण का लाभ केवल अंतिम चयन के समय दिया जाएगा न की प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के समय।
- हाईकोर्ट ने 1 फरवरी 2019 को आदेश दिया था, जिसका पालन करते हुए 17 फरवरी 2020 को सेवा भर्ती नियम 2015 में संशोधन किया गया।
आईएएस की कोचिंग देने वाले संस्थान भी इन नियमों पर सवाल खड़े करते हैं-
अब सवाल यही है कि आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए लेकिन ये नियमों के तहत मिलना चाहिए। ऐसे नियम या पॉलिसी ना हो जिससे किसी एक वर्ग का अहित हो। इस पर कोर्ट भी सरकार के खिलाफ तल्ख टिप्पणी कर चुका है-
- एमपीपीएससी परीक्षा भर्ती नियम में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर मार्च 2021 में सुनवाई करते हुए।
'सुप्रीम कोर्ट आरक्षण को लेकर अब तक इंद्रा साहनी सहित सैकड़ों फैसले कर चुका है। इसके बावजूद राज्य सरकार नियुक्तियों में आरक्षण को लेकर बार-बार गलतियां कर रही है। पीएससी परीक्षा के मामले में भी ऐसा ही होना चिंताजनक है।'
हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद भी सरकार में बैठे नुमाइंदों पर इस टिप्पणी का कोई असर नहीं पड़ रहा है। ये भी एक चिंताजनक बात है और सबसे बड़ा मसला तो सामान्य वर्ग के कैंडिडेट्स के भविष्य से जुड़ा हुआ है।
हम आपको बताना चाहते हैं कि द सूत्र आरक्षण विरोधी नहीं है लेकिन आरक्षण का लाभ नियम के मुताबिक मिले। पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि सभी वर्गों का हित हो। मगर जिस मनमाने तरीके से नियमों को लागू किया जा रहा है, वो समाज में असमानता पैदा कर रहा है। कहीं ना कहीं ये राजनीतिक फायदा लेने की भी कोशिश है। एक वर्ग को लुभाने की कोशिश भी नजर आती है क्योंकि ये तगड़ा वोट बैंक है और इसकी खातिर हाईकोर्ट के आदेशों की भी अवेहलना करने से सरकार चूक नहीं रही।