Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण मामले में चौथे दिन भी अंतिम स्तर की बहस जारी रही। इस दौरान ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण दिए जाने के फैसले के खिलाफ दलीलें पेश की गईं। जिनमें कहा गया कि हर हाल में 50 फीसद आरक्षण की लक्ष्मण रेखा का पालन होना चाहिए। आज भी 63 याचिकाओं पर आगे की बहस होगी। प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ के समक्ष गुरूवार को अधिवक्ता सुयश मोहन गुरू, श्रेयस पंडित और ब्रम्हेंद्र पाठक ने अपनी-अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं। उन्होंने अपनी दलीलों कहा कि ओबीसी आरक्षण पहले की तरह 14 फीसद रखना ही न्यायसंगत होगा।
जिरह के दौरान बताया गया कि इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी व मराठा आरक्षण मामले में दिए गए फैसले नजीर हैं। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 1963-64 में एमआर बालाजी के मामले में कहा था कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से कम होना चाहिए। इसके बाद 1992 में इंदिरा साहनी के मामले में भी उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि किसी भी परिस्थिति में कुल आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसके बाद 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण में सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद फैसला दिया था और आरक्षण की लक्ष्मण रेखा 50 फीसद तय की थी।
अधिवक्ता पाठक ने कहा कि शिक्षक भर्ती में तो ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण का नियम लागू ही नहीं होता क्योंकि उसकी प्रक्रिया 2018 में शुरू हो गई थी। हाईकोर्ट ने सभी तर्क सुनने के बाद 26 अगस्त को भी सुनवाई जारी रखने के निर्देश दिए। शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, उपमहाधिवक्ता आशीष बर्नार्ड और विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह उपस्थित हुए। ओगीसी आरक्षण के समर्थन में उदय कुमार साहू और परमानंद साहू भी पक्ष रखने हाजिर रहे।