CM का ऐलान: मिंटो हॉल का नाम होगा कुशाभाऊ ठाकरे, जानें इमारत का इतिहास

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CM का ऐलान: मिंटो हॉल का नाम होगा कुशाभाऊ ठाकरे, जानें इमारत का इतिहास

भोपाल. मिंटो हॉल का नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे (Kushabhau Thakre) होगा। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 26 नवंबर को कार्यसमिति की बैठक में इसका ऐलान किया है। कांग्रेस-बीजेपी दोनों पार्टियां इसका नाम बदलने की मांग कर रही थी। बीजेपी नेता रजनीश अग्रवाल ने मांग की थी, इसका नाम बदलकर डॉ. हरिसिंह गौर के नाम पर किया जाए। जबकि कांग्रेस की मांग की थी कि इसका नाम आदिवासी महानायक टंट्या भील के नाम पर हो। लेकिन शिवराज (CM Shivraj) ने ऐलान करके सारे कयासों पर विराम लगा दिया है। जानिए इस खूबसूरत इमारत का इतिहास और इससे जुड़े किस्से........

साल 1909 से कहानी शुरू होती है

मिंटो हॉल यानी पुरानी विधानसभा की कहानी साल 1909 से शुरू होती है। 112 साल पुरानी ये इमारत अंग्रेजी हुकूमत, नवाबी शासन और लोकतांत्रिक प्रणाली की गवाह रही है। यूं तो इसे वायसराय लॉर्ड मिंटो (Lord Minto) को खुश करने के लिए बनवाया गया था। लेकिन इसमें आजादी के बाद 40 सालों तक मध्यप्रदेश की विधानसभा संचालित हुई। अंग्रेजी इंजीनियर एसी रबेन (Minto Hall Designer AC Raben) की देखरेख में तैयार हुए इस भवन को प्रिंस ऑफ वेल्स यानी इंग्लैंड के महाराज जॉर्ज पंचम (George Pancham) के मुकुट की तरह डिजाइन किया गया था। 

इसके निर्माण की बेहद रोचक कहानी है

जॉर्ज पंचम के महाराज बनने की घोषणा 1909 में हुई। इसी साल इंडियन कांउसिल एक्ट (Indian Council Act) लागू हुआ था। इसके तहत ब्रिटिश राज्य ने रियासतों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की शुरुआत की थी। 1909 में जनवरी की शुरुआत में भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो (Lord Minto Bhopal Connection) ने भोपाल की नवाब सुल्तानजहां बेगम (Sultan Jahan Begum) को संदेश भिजवाया कि वे भोपाल आना चाहते हैं। उस समय बेगम को महसूस हुआ कि मिंटो के ठहरने लायक भोपाल में एक भी इमारत नहीं है। इस कारण उन्होंने 12 नवंबर 1909 को इसकी नींव खुद मिंटो से डलवाई थी। 

प्रिंस ऑफ वेल्स के मुकुट की तरह डिजाइन

1911 में जॉर्ज पंचम इंग्लैंड के महाराज बने। इसी साल वह अपनी पत्नी क्वीन मैरी के साथ भारत आए। उनको खुश करने के लिए 1909 में उनके मुकुट की तरह इसका डिजाइन तैयार किया गया था। हालांकि, जॉर्ज पंचम भोपाल नहीं आए थे। इस भव्य इमारत को बनाने में उस समय तीन लाख रुपए खर्च हुए थे। 

इसे बनाने में 24 साल लगे

मिंटो हॉल के निर्माण में 24 साल का समय लगा। इसके लिए बहुत सारा मटेरियल इंग्लैंड से मंगवाया गया, जिसमें रॉट आयरन की ढली हुई सीढ़ियां, फॉल्स सीलिंग थी।  नवाब हमीदुल्ला (Hamidullah Khan) ने इस इमारत का फर्श संगमरमर से बनवाया था। जिसे बाद नवाब की बड़ी बेटी आबिदा बेगम ने स्केटिंग का मैदान बना दिया था।

सेना का मुख्यालय, इंटर कॉलेज भी रहा

मिंटो हॉल भोपाल रियासत की सेना का मुख्यालय भी बना। इस हॉल में साल 1946 में इंटर कॉलेज लगना शुरू हुआ, जिसका बाद में नाम बदलकर हमीदिया कॉलेज (Hamidia College) रख दिया गया। 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश के गठन के बाद इसे विधानसभा भवन बना दिया गया था। 40 साल तक इसमें मध्यप्रदेश की विधानसभा संचालित हुई। 1996 में नया भवन बन गया और राज्य की विधानसभा को वहां शिफ्ट कर दिया गया। 

रिनोवेशन में 65 करोड़ खर्च

नई विधानसभा बनने के बाद ये खूबसूरत इमारत खाली पड़ी थी। इसका कैम्पस 15 एकड़ एरिया में है। इसमें होटल खोलने की घोषणा हुई थी लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। 2014 में संरक्षण एवं संवर्धन के लिए यह पर्यटन निगम को सौंपा गया था। इस इमारत के ऐतिहासिक और भव्य स्वरूप को बरकरार रखते हुए 65 करोड़ रुपये खर्च करके इसे सम्मेलन केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। 

कौन थे लॉर्ड मिंटो

लॉर्ड मिंटो, लॉर्ड कर्जन के बाद 1905 से 1910 ई. तक भारत के वाइसराय और गवर्नर-जनरल रहे। इनका पूरा नाम गिलबर्ट जॉन एलिएट मिंटो था। मिंटो के समय भारत में मॉर्ले-मिंटो रिफॉर्म एक्ट (1909 ई.) लागू किया था। इस एक्ट के तहत सरकार में भारतीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग इलेक्टोरल बोर्ड बनाए गए।

कौन है कुशाभाऊ ठाकरे

मध्यप्रदेश के धार जिले में ठाकरे का जन्म हुआ था। यहीं से उन्होंने अपनी शिक्षा हासिल की। साल 1942 में वे RSS के साथ जुड़े। इसके 56 साल बाद उन्हें साल 1998 में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। बीजेपी को सत्ता में लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। इमरजेंसी के दौरान ठाकरे 19 महीने तक जेल में भी रहे थे। 28 दिसंबर 2003 को ठाकरे पंचतत्व में विलीन हो गए। 

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