अमित शाह आज भोपाल में, 7 महीने में दूसरे दौरे में भी केंद्र में आदिवासी, जानें

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Atul Tiwari
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अमित शाह आज भोपाल में, 7 महीने में दूसरे दौरे में भी केंद्र में आदिवासी, जानें

Bhopal. गृह मंत्री अमित शाह 22 अप्रैल को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आ रहे हैं। बीते 7 महीने में उनका ये दूसरा मध्य प्रदेश दौरा है। इससे पहले वे 18 सितंबर 2021 को जबलपुर आए थे। बड़ी बात ये कि तब भी मुद्दा आदिवासी ही था, इस बार केंद्र में आदिवासी हैं। वजह साफ है- 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव। आदिवासी वोट बैंक को लेकर बीजेपी खासी सतर्क नजर आ रही है। इस वर्ग को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। शाह का दौरा इसी की बानगी कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर 2021 को भोपाल आए थे। उनके दौरे में भी आदिवासी वर्ग को तरजीह दी गई थी। तभी मोदी ने आदिवासी रानी कमलापति के नाम पर बने स्टेशन (पहले हबीबगंज स्टेशन) का उद्घाटन किया था। आइए समझते हैं कि बीजेपी की इस सारी कवायद का मकसद क्या है...





आदिवासियों को बीजेपी इसलिए जरूरी मानती है





सन 2000 के आसपास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने मध्य प्रदेश के आदिवासियों और वनवासियों को जोड़ने के लिए ताकत झोंकी। 2002 में झाबुआ में हिंदू संगम हुआ। दो से ढाई लाख आदिवासी जुटे और पूरा खेल पलट गया। 10 साल से सत्ता में काबिज दिग्विजय सरकार को 2003 चुनाव में कुर्सी गंवाना पड़ी। ये आदिवासी वोट बैंक को साधने का नतीजा था कि BJP धुआंधार तरीके से सरकार में आ गई। 2008 और 2013 के चुनाव में भी आदिवासी वोट बैंक BJP से जुड़ा रहा, लेकिन 2018 में स्थिति उलट गई। मुख्यमंत्री के रूप में 3 पारी खेल चुके शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों का मूड भांपने में चूक गए और सत्ता गंवाना (18 महीने के लिए) पड़ी। प्रदेश की 2 करोड़ आबादी आदिवासी है। 230 विधानसभा सीटों में से 87 पर आदिवासी वोटर अपना प्रभाव रखते हैं।







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15 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल आए थे। तब भी आदिवासियों का ही कार्यक्रम था।







आदिवासी सीटों पर बदलते रहे समीकरण





1. 2003 विधानसभा चुनाव (2003 MP election) में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसमें कांग्रेस (congress) केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) ने 2 सीटें जीती थी। जबकि 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था। BJP का सक्सेस रेट 92% रहा।



2. 2008 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। BJP का सक्सेस रेट 66% रहा।



3. 2013 के असेंबली इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीतीं। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं। BJP का सक्सेस रेट 66% रहा।



4. 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली, एक निर्दलीय के खाते में गई। BJP का सक्सेस रेट 34% रहा।





शिवराज ने आदिवासियों को ऐसे साधा





मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों-वनवासियों को साधने के लिए कई नारे गढ़े। वे कहते थे- चाहे मुर्गा-मुर्गी, चूजा-चूजी कुछ भी हो, इसकी भरपाई की जाएगी। उनका यही अंदाज आदिवासियों को रास आया। नतीजतन दो-दो मुख्यमंत्रियों (उमा भारती, बाबू लाल गौर) को बदलने के बावजूद 2008 में शिवराज ने सरकार बचा ली। वे 230 में से 143 सीटें लाए। 2008 के बाद शिवराज ने खुद को साबित करने के लिए महिला, लाड़ली, किसान और बुजुर्गों के साथ आदिवासियों का खजाना खोल दिया। नतीजा- वे 2013 में 2003 जैसी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। 2013 में शिवराज ने बीजेपी को 165 सीटें दिलाईं (2003 में उमा भारती 173 सीटें लाई थीं)।





2013 की जीत से उत्साहित BJP ने विकास पर फोकस किया, लेकिन आदिवासियों को जोड़े रखने की रणनीति में शिवराज सरकार चूक गई। 2018 आते-आते यह वोट बैंक फिर कांग्रेस के पास खिसक गया। जो BJP 2003 में 92% के सक्सेस रेट से आदिवासी सीटें जीत रही थीं, वह 2018 में 34% ही रह गया। वह आदिवासी वर्ग की 47 में से सिर्फ 16 ही सीट जीत पाई और सरकार गंवाना पड़ी।  एक्सपर्ट एनालिसिस में यही बात निकलकर आई कि आदिवासी ही ऐसा वोट बैंक है, जिसे साधने के लिए लगातार काम करना होगा। 





आदिवासियों के लिए बीजेपी के कई इवेंट्स





यही वजह है कि अब शिवराज सरकार 2 साल से आदिवासियों को मनाने और लुभाने के लिए लगातार इवेंट्स कर रही है। जबलपुर में गृह मंत्री अमित शाह ने सितंबर 2021 में गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम में शामिल हुए। जनजातीय अभियान की शुरुआत की। इसके बाद नवंबर 2020 में भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के लोकार्पण के साथ आदिवासियों के कार्यक्रम में PM नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया। तेंदूपत्ता संग्राहकों का तीसरा कार्यक्रम (22 अप्रैल) भोपाल में हो रहा है। 







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18 सितंबर 2021 को अमित शाह जबलपुर पहुंचे थे। यहां वे गोंड राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह से जुड़े कार्यक्रम में शामिल हुए थे।







राज्यपाल भी आदिवासी वर्ग से, संघ भी एक्टिव





बीजेपी ने आदिवासी वर्ग के मंगूभाई पटेल को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया है। इसके जरिए बीजेपी ने खुद को आदिवासी हितैषी बताने की कोशिश की है। बीजेपी को उम्मीद है कि उसके इस कदम का फायदा उसे 2023 के चुनाव में मिलेगा।





वहीं, संघ के सहयोगी संगठन वनवासी कल्याण परिषद के पदाधिकारी लगातार आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जो आदिवासियों के जरूरी मुद्दों को उठाते रहे हैं। बीजेपी को इससे भी लाभ मिलने की उम्मीद है। RSS आदिवासी क्षेत्रों में हिंदुत्व के एजेंडे पर भी काम कर रहा है।





BJP ने आदिवासियों को रिझाने के लिए ये किया







  • बिरसा मुंडा जयंती यानी 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया। 15 नवंबर 2021 को मोदी भोपाल आए थे। इसके बाद शिवराज सरकार ने जनजातीय गौरव सप्ताह मनाया।



  • 89 आदिवासी विकासखंडों में आदिवासियों को उनके गांव में उचित मूल्य पर राशन देने की व्यवस्था की गई है। 15 नवंबर 2021 को PM मोदी ने भोपाल में इस योजना के तहत राशन वितरण के लिए आदिवासी युवाओं को वाहन की चाबी सौंपी।


  • भोपाल की गोंड रानी कमलापति के नाम रेलवे स्टेशन का नाम किया।


  • आदिवासियों के हितों को संरक्षित करने के लिए मध्यप्रदेश में पेसा एक्ट लागू किया गया। इसके अंतर्गत तेंदूपत्ता बेचने का कार्य ग्राम वन समिति, ग्राम सभा को दिया जाएगा।


  • 800 ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदला जाएगा।


  • इंदौर के भंवरकुआं चौराहा और पातालपानी स्टेशन का नाम टंट्या भील के नाम पर किया।


  • मंडला में गोंड नायक रहे शंकर शाह और रघुनाथ शाह की मूर्ति लगाई जाएगी। 




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