अतिक्रमण को बचाने धर्म की आड़ः कलियासोत के ग्रीनबेल्ट में बड़ी संख्या में बना दिए मंदिर

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अतिक्रमण को बचाने धर्म की आड़ः कलियासोत के ग्रीनबेल्ट में बड़ी संख्या में बना दिए मंदिर

राहुल शर्मा, भोपाल। कलियासोत (Kaliyasot River) के कत्ल की इस कड़ी में हम आपको बता रहें कि शहर की इकलौती नदी की छाती पर अतिक्रमण (Encroachment) कर पैसे बनाने के लिए शहर के बिल्डर (Builder) किस हद तक गिरे हैं। उन्होंने अपनी अवैध इमारतों को कानून के हथौड़े से बचाने के लिए धर्म की आड़ लेने से भी परहेज नहीं किया है। अगस्त 2014 के बाद अचानक ही नदी के किनारे मंदिर बनना शुरू हो गए। सवाल खड़ा होता है कि ऐसा क्या हुआ कि अचानक इतनी बड़ी संख्या में नदी के किनारे मंदिर बनना शुरू हुए। दरअसल इसी समय एनजीटी (NGT) का जजमेंट आया था। उसने नदी के ग्रीनबेल्ट का सीमांकन और चिन्हांकन कर अतिक्रमण हटाने के निर्देश शासन-प्रशासन को दिए थे। उनके अतिक्रमण का साम्राज्य सुरक्षित रहे इसलिए अधिकतर बिल्डर्स धर्म की आड़ लेकर खेल खेला और नदी किनारे बड़ी संख्या में मंदिर खड़े कर दिए।

आकृति से लेकर सेज बिल्डर ने बनाए मंदिर 

- आकृति बिल्डर (एजी-8 ग्रुप) ने अपनी हाईराइज मल्टीस्टोरी  में नदी के ग्रीन बेल्ट की ओर मंदिर बनाया। मंदिर के ठीक पीछे सोसाइटी की मल्टी बनाई गई है। 

- दानिश कुंज में भी बावड़िया कला की ओर नदी के ग्रीन बेल्ट पर मंदिर बनाया गया है। 

- मंदाकिनी कॉलोनी और शिर्डीपुरम में भी नदी की ओर मंदिर का निर्माण कराया गया है। 

-  कोलार के सागर प्रीमियम प्लाजा में भी एक मंदिर परिसर के अंदर  और एक बड़ा मंदिर नदी के ग्रीनबेल्ट की जमीन पर  अतिक्रमण कर बनाया गया है।  

आखिर क्यों खेला गया नदी के ग्रीनबेल्ट में मंदिर बनाने का खेल

याचिकाकर्ता सुभाष पांडे ने बताया कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं, वे नदी पर कब्जा करने के लिए आड़ ढूंढते हैं। इसके लिए धर्म की आड़ लेना सबसे सरल व सस्ता है। इसीलिए कलियासोत के किनारे अधिकतर कॉलोनाइजर औऱ बिल्डर्स ने अतिक्रमण को बचाने के लिए मंदिर बना दिए।  मई 2014 में जब याचिका लगाई गई थी तब तक इक्का-दुक्का ही मंदिर थे। अब 36 किमी के दायरे में करीब 100 मंदिर बना दिए गए हैं। एक-एक कॉलोनी के पास दो से तीन मंदिर बनाए गए हैं। इस मकसद के साथ कि मंदिर बन जाने के बाद उन्हें शासन-प्रशासन की सहानुभूति मिल जाएगी।   

वास्तु शास्त्र के अनुसार मध्य में होना चाहिए मंदिर 

वास्तुविद् पं. अरविंद पचौरी ने बताया कि मंदिर को ब्रह्म या वृत का स्थान कहा जाता है। एक वित होता है एक वृत होता है। दोनों को देखा जाए तो मंदिर कॉलोनी के मध्य स्थान में होना चाहिए क्योंकि इसे ब्रह्म का स्थान माना गया है। यह माना जाता है कि कालोनी के अग्र भाग या मुख्य द्वार पर मंदिर बनाने से वहां संपूर्ण दोषों का नाश हो जाता है।  लेकिन कोशिश यह होनी चाहिए कि मंदिर कालोनी के मध्य भाग में हो क्योंकि वास्तु शास्त्र के अनुसार यही श्रेष्ठ स्थान माना गया है।  

अतिक्रमण के लिए मंदिर का निर्माण धर्मशास्त्र के विरुद्ध

पचौरी स्पष्ट करते हैं कि मंदिर सिर्फ शुद्ध, पवित्र और पुनीत जगहों पर ही बनना चाहिए। निजी स्वार्थ के लिए अतिक्रमण कर या गंदगी भरी जगहों के आसपास मंदिर बनाना धर्म के विरुद्ध है। ऐसा करने वाले और इसमें साथ देने वाले सभी लोग अधर्म और पाप के भागीदार होते हैं। इनका विरोध होना चाहिए। ऐसे मंदिरों के निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए और देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को अच्छी और पवित्र जगह पर शिफ्ट किया जाना चाहिए। 

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