BHOPAL : पुरानी फाइल को कैसे दबाएंगे मेयर मालती राय और पार्षद पप्पू विलास,सूद की टिप्पणी बनेगी परेशानी 

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The Sootr CG
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BHOPAL : पुरानी फाइल को कैसे दबाएंगे मेयर मालती  राय और पार्षद पप्पू  विलास,सूद की टिप्पणी बनेगी परेशानी 

BHOPAL. दो साल के बाद राजधानी के नगर निगम में राजनीति की रौनक के लौटते ही सियासी चहलकदमी भी शुरू हो गई है। इसके साथ ही अपनाए जाने लगे हैं सियासी पैंतरे। इन पैंतरों की पहली शिकार बन रही हैं मेयर मालती राय। चार दिन पहले ही शपथ लेने वालीं मेयर मालती पर भ्रष्टाचार में भागीदारी के आरोप लगे हैं। आरोप भी उस दौर से जुडे़ हैं, जब वे पार्षद थीं। इस मामला 17 साल पुराने मामले में लोकायुक्त के उस आदेश पर अमल होता है तो वर्तमान परिषद के दो ही चेहरे निशाने पर आ सकते हैं। इनमें एक हैं महापौर राय और दूसरे पार्षद पप्पू विलास।





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जानकारी के अनुसार उस समय कांग्रेस की ओर से लोकायुक्त में शिकायत कर बीजेपी के पार्षदों की लंबी परेड कराई गई थी। इसके बाद लोकायुक्त ने पार्षदों को अयोग्य घोषित करने को कहा था। जबकि संभागायुक्त ने सभी को दोषमुक्त कर दिया था। उस परिषद के केवल दो ही चेहरे वर्तमान में जीतकर नगर निगम में पहुंचे हैं। इनमें एक निर्दलीय पार्षद पप्पू विलास हैं जो बीजेपी से बगावत कर जीते हैं तो दूसरी महापौर हैं। इसलिए अब जो भी असर होगा, ये दोनों ही प्रभावित होंगे। लोकायुक्त ने सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार से जुड़े एक पुराने मामले पर लोकायुक्त ने फिर से जांच शुरू कर दी है। यह मामला 2005 का है, जो राजधानी में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले एमपी नगर के वार्ड से जुड़ा था। इसमें बीजेपी पार्षदों पर ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए 85 लाख का अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालने का आरोप लगा था। कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने इस मामले को पूरी ताकत से उठाते हुए लोकायुक्त को मामले से जुड़े दस्तावेज भी उपलब्ध कराए थे। लंबी उठापटक और दौड़धूप के बाद बीजेपी पार्षदों ने भी अपने जवाब प्रमाण सहित लोकायुक्त को दिए थे। मगर करीब आठ साल के बाद यह मामला अब फिर सुर्खियों में आ गया है। अबकी बार खास यह है कि जिन 47 तत्कालीन बीजेपी पार्षदों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, उनमें नव निर्वाचित मेयर मालती राय भी शामिल थीं। उनकी ताजपोशी के तत्काल बाद ही यह मामला गर्मा गया है। मामले में लोकायुक्त की कार्रवाई के साथ ही मेयर राय के फैसलों पर भी इसका असर दिखेगा। वहीं नगर निगम में विपक्षी दल कांग्रेस को भी बैठे बैठाए बड़ा मुद्दा मिल गया है, जो आगे भी मेयर और बीजेपी को घेरने में हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।





ये है पूरा मामला और अभी तक हुई कार्रवाई





- वर्ष 2005 में एमपी नगर की एक सड़क को लेकर एक कंपनी ने टेंडर दिया था, लेकिन रेट कम होने से उसने कदम पीछे खींच लिये थे। इसी कंपनी ने हमीदिया रोड की सड़क भी बनाई थी। 



- बीजेपी पार्षदों ने इस मामले में ठेकेदार का पक्ष लेते हुए टेंडर निरस्त का दबाव बनाया। साथ ही बहुमत के आधार पर टेंडर निरस्त भी कर दिया गया।



- एमपी नगर के वार्ड 48 की सीसी सड़क का निर्माण 5 करोड़ 45 लाख 70 हजार रुपए की लागत से होना था। कम्पनी ने एसओआर से 7.2 फीसदी बिलो पर ऑफर दिया था। 2 मार्च 2005 को नगर निगम परिषद की बैठक में बहुमत के आधार पर बीजेपी पार्षदों ने टेंडर निरस्त करा दिया। 



- तत्कालीन महापौर सुनील सूद ने इस टेंडर को निरस्त कराने पर अड़े बीजेपी पार्षदों को लेकर अपनी टिप्पणी दर्ज कराई थी कि आप लोग ठेकेदार से मिले हैैं, ठेकेदार चाहता है कि टेंडर निरस्त हो, क्योंकि उसका नफा नहीं हो रहा है। इसकी जिम्मेदारी भी आप लोगों की होगी। 



- नगर निगम ने 10 मई 2005 को इसी कंपनी का टेंडर 8.38 फीसदी अधिक के ऑफर पर  मंजूर कर दिया। इस नए टेंडर से ठेकेदार को तो फायदा हो गया, लेकिन नगर निगम के खजाने को 85 लाख रुपए का अतिरिक्त भार सहना पड़ा। 



- अपने समर्थक पार्षदों की आपत्ति पर कांग्रेस विधायक आरिफ अकील इस मामले को लोकायुक्त में ले गए। लोकायुक्त ने जांच में दोनों पक्षों के पार्षदों से जवाब मांगा। साथ ही मामले में अपनी रिपोर्ट भी तत्कालीन संभागायुक्त को भेज दी।



- तत्कालीन बीजेपी पार्षदों को क्लीन चिट भी मिल गई। इसके बाद आलोक संजर ने सांसद का चुनाव लड़ा तो विष्णु ख़त्री दोबार विधायक भी बन चुके हैं। वर्तमान में भी वे बैरसिया से विधायक हैं। 



- तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल ने इन पार्षदों को अयोग्य घोषित करने और 85 लाख रुपए की वसूली करने की सिफारिश के साथ यह मामला संभागायुक्त को भेजा था।





अब इसलिए खुला मामला





नव निर्वाचित महापौर मालती राय ने 6 अगस्त को ही अपने पद की शपथ ली है। जबकि अगले ही दिन यानी 7 अगस्त को ही लोकायुक्त ने मामले पर दोबारा जांच शुरू कर मामले में नगर निगम भोपाल और भोपाल संभागायुक्त को नोटिस भेजा है। इसे बीजेपी की अंदरुनी खींचतान का नतीजा माना जा रहा है। इसे बीजेपी के विधायकों और लोकल लीडर्स के बीच मतभेद से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे भी मेयर मालती राय को टिकट दिलाने से लेकर चुनाव की कमान एक विधायक के हाथ में थी। संगठन भी मेयर के पूरे चुनाव में दूरी बनाए हुए था। अब इसी गुटबाजी के चलते मामले को नए सिरे से शुरू कराने की बात सभी मान रहे हैं। जबकि कांग्रेस के तत्कालीन पार्षद और वर्तमान नेता इस मामले को भूल से गए थे।





क्या कहते हैं दोनों दलों के नेता





यह टेंडर बीजेपी पार्षद दल ने बहुमत के आधार पर निरस्त कराया था। मैंने उस समय ही अपनी बात रिकॉर्ड कराई थी कि आप लोग ठेकेदार से मिले हुए हैं। ठेकेदार चाहता है कि टेंडर निरस्त हो, क्योंकि उसे फायदा नहीं हो रहा है। बाद में बढ़ी हुई दर पर टेंडर हुआ। मामले में मेरी ओर से लोकायुक्त को उसी समय सारा रिकॉर्ड भेज दिया गया था। चूंकि मामला लोकायुक्त में है भ्रष्टाचार का मामला है तो जिम्मेदारी तय होगी ही, कब तक मामला टलेगा। इसमें केवल मालती राय नहीं, बल्कि  बीजेपी के तत्कालीन सारे 47 पार्षद आरोपी हैं। 



सुनील सूद, तत्कालीन मेयर भोपाल





गढ़े मुर्दे उखाड़ने से अब क्या होगा



2005 के इस मामले में लोकायुक्त ने जांच पूरी करने के बाद ही पार्षद पद से अयोग्य करने का आदेश दिया था। अब फिर इस मामले को उखाड़ने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता। वैसे भी जिन पार्षदों को अयोग्य घोषित किया था, उनमें से पांच का निधन हो चुका है और दो को छोड़कर कोई भी अब पार्षद नहीं है। मालती राय भी पार्षद नहीं, बल्कि मेयर हैं। उस परिषद में से केवल पप्पू विलास ही वर्तमान परिषद में पार्षद हैं। एक बात यह भी है कि उस समय संभागायुक्त भी दोषमुक्त कर चुके थे। गढ़े मुर्दे क्यों उखाड़े गए हैं, समझ नहीं आया। अलबत्ता विपक्ष जरूर मेयर के फैसलों में अड़ंगा लगाते रहेगा। 



विष्णु खत्री, विधायक बैरसिया





मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि इस मामले में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ था। जब ठेकेदार ने हमीदिया रोड पर काम किया था, तब अलग रेट थे। बाद में महंगाई बढ़ने के कारण रेट में अंतर आया था। हम पहले भी लोकायुक्त में प्रमाण दे चुके हैं। सामूहिक निर्णय हुआ था। लोकायुक्त से हमें क्लीन चिट भी मिल चुकी थी। फिर दोबारा यह मामला क्यों उठाया जा रहा है, समझ से परे हैै। गुटबाजी जैसी बात पार्टी में कतई नहीं है। फिर भी, जब लोकायुक्त बुलाएगा तो प्रमाण के साथ अपना जवाब दूंगा। 



आलोक संजर, तत्कालीन पार्षद व पूर्व सांसद भोपाल





मैंने जो आरोप 15 साल पहले जो मुद्दा उठाया था, उन पर मैं आज भी अडिग हूं। अब मामला लोकायुक्त में गया है, सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। उस समय बीजेपी पार्षदों ने भारी भ्रष्टाचार किया था। यह सीधे-सीधे निगम के खजाने को नुकसान पहुंचाने का है और मैं इसकी लड़ाई अंत तक लड़ते रहूंगा। लोकायुक्त को सारे प्रमाण मिल जाएंगे। जिन प्रमाणों को बीजेपी के तत्कालीन पार्षद झूठा बता रहे थे, उनकी सच्चाई भी अब सामने आ जाएगी। बीजेपी के लोगों को भ्रष्टाचार तो संस्कार में ही दिए जाते हैं, उन्हें तो घुटी में घोलकर भ्रष्टाचार सिखाया जाता है। इसलिए बीजेपी के लोग जहां रहेंगे, जिस पद पर रहेंगे, भ्रष्टाचार जरूर करेंगे। 



आरिफ अकील, पूर्व मंत्री व विधायक भोपाल उत्तर 



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