कैसे होगा महिला सशक्तिकरणः महिला आयोग में कामकाज 2 साल से ठप, सालाना खर्च 2.50Cr

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कैसे होगा महिला सशक्तिकरणः महिला आयोग में कामकाज 2 साल से ठप, सालाना खर्च 2.50Cr

रूचि वर्मा, भोपाल। मंगलवार, 8 मार्च को महिला दिवस है। इस अवसर पर महिलाओं की महिमा का बखान करते हुए उनके सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें की जाएंगी। लेकिन प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायतें सुनने और कार्रवाई करने वाले राज्य महिला आयोग सियासी खींचतान के लिए दो साल से ठप पड़ा है। आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच चल रही जंग के चलते यहां पीड़ित महिलाओं को इंसाफ मिलना तो दूर उनकी शिकायतों की सुनवाई भी नहीं हो पा रही है। इसकी वजह सालाना ढाई करोड़ रुपए के खर्च से चलने वाले आयोग के सुनवाई कक्ष में ताला पड़ा होना है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिरकार कैसे होगा महिला सशक्तिकरण। 



अध्यक्ष, सदस्यों के कमरों पर ताला, पेंडिंग शिकायतें 13 हजार: पीड़ित महिलाओं की सुनवाई कर मदद के लिए कार्रवाई की सिफारिश करने वाला मध्य प्रदेश महिला आयोग इन दिनों खुद ही असहाय नजर आ रहा है। दरअसल आयोग की अध्यक्ष और दो सदस्यों के कमरों में 2 सालों से ताला डाला हुआ है। इसकी वजह से आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ऑफिस में नहीं बैठ पा रही हैं। यही नहीं पिछले तीन सालों से (जनवरी 2019 से) मामलों की सुनवाई करने वाली महिला आयोग की संयुक्त बेंच की बैठक तक नहीं हुई है। हर साल आयोग में अलग-अलग तरह की करीब 2500-3000 शिकायतें आती हैं। शिकायतों के सुनवाई ना होने की वजह से महिला आयोग में पेंडिंग शिकायतों की संख्या बढ़कर 13 हजार से भी ज्यादा हो गई है। 



ओझा की नियुक्ति पर रोक के बाद कोर्ट में पहुंचा विवाद: राज्य महिला आयोग में सियासी विवाद का मामला यह है कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने मार्च 2020 में सरकार गिरने से ठीक पहले 16 मार्च को शोभा ओझा को महिला आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। साथ ही आयोग की सदस्य भी नियुक्त किए थे। लेकिन बाद में बीजेपी सरकार बनने के बाद इन नियुक्तियों पर रोक लगा दी गई। इसके पीछे ये तर्क दिया गया कि आयोग में नियुक्ति की एक निर्धारित प्रक्रिया होती है, जिसका उपयोग कांग्रेस सरकार ने नहीं किया। इसके बाद बीजेपी सरकार ने महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा के दफ्तर में ताला डलवा दिया। बाद में मामला कोर्ट में चला गया। हालांकि जून 2020 में हाईकोर्ट ने केस में स्टे-आर्डर देते हुए यथास्थिति बनाये रखने को कहा  ताकि आयोग में आने वाली शिकायतों की सुनवाई हो सके। लेकिन शोभा ओझा का आरोप रहा कि कोर्ट से स्टे होने के बावजूद  सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है। सरकार कोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना कर रही है।  



प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध  60 फीसदी से ज्यादा:  महिला आयोग की यह स्थिति तब है जबकि राज्य में महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)  की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध का प्रतिशत 60% से भी ज्यादा है। वहीं अगर महिलाओं के कार्यस्थल पर उत्पीड़न के बारे में बात की जाए तो इसके लिए कानून बनने के 8 साल बाद भी उत्पीड़न के मामलों का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है। ठोस डेटा ना होने की वजह से कार्यस्थल पर मानसिक एवं यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कानूनों के सही क्रियान्वयन का पता नहीं चल पाता । शायद यही कारण है कि प्रदेश में कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। 



मप्र में रोजना 6 महिलाएं दुष्कर्म की शिकार 

- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार राज्य में महिलाओं की स्थिति (2020 तक):

-2018 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध: 28942

-2019 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध: 27560

- 2020 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध: 25640 

- 2020 में महिलाओं के खिलाफ रेप केस : 2339 (यानी की राज्य में हर रोज 6 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुई)

- महिलाओं के खिलाफ अपराध का प्रतिशत: 63.3%



कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़ने के मामले बढ़े-



महिलाओं के कार्यस्थल पर उत्पीड़न का अभी तक जो छुटपुट डाटा मौजूद है उसके मुताबिक-

-2017 से 2019 (29 नवंबर) तक मध्य प्रदेश में निजी/सार्वजनिक वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न की कुल 513 शिकायतें दर्ज हुई जिसमें से 30 मध्य प्रदेश से हैं। (सोर्स: शी-बॉक्स)

-2020 में MP में निजी/सार्वजनिक वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न के 40 मामले रिपोर्ट किये गए। (सोर्स: NCRB)



महिला आयोग पर सालाना 2.50 करोड़ रूपए खर्च:  आपको बता दें कि विवाद के चलते आयोग का कामकाज जरूर ठप्प है लेकिन ऐसा नहीं है कि आयोग पर कोई खर्चा न हो रहा हो। आयोग में सात सदस्य होते हैं जिसमें से छह सदस्य अशासकीय व एक सदस्य शासकीय होता है। बाकी का सपोर्टिंग स्टाफ भी 30 के करीब होता है। इसमें से अभी 22 पद भरे हुए है एवं करीब 8 पद रिक्त हैं। आयोग पर सालाना होने वाला खर्च भी भारी भरकम है। वेतन, स्थापना एवं प्रशासनिक खर्च, मकान का किराया, यात्रा भत्ता, फर्नीचर अलाउंस, बिजली-पानी किराया, वाहन-ईंधन खर्च, फेस्टिवल अलाउंस आदि मिलाकर करीब 2.5 करोड़ रुपए आयोग पर हर साल खर्च होते हैं। 



आयोग में कामकाज ठप नहीं हो रही पीड़ित महिलाओं की सुनवाई: आयोग के खस्ताहाल हालत से प्रदेश में अपराधियों की हिम्मत भी बढ़ती जा रही है। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न की बात तो छोड़ ही दीजिये, अब तो कार्यस्थल पर भी महिलाओं की हिफाज़त सुनिश्चित नहीं रह गई है। ऐसे मामलों में आरोपी खुले में घूम रहे हैं और उनके खिलाफ पीड़ित महिलाओं की सुनवाई नहीं हो प्रदेश के वन विभाग में सामने आया मामला इसका ताज़ा उदाहरण है-  



वन विभाग में सामने आया महिला उत्पीड़न का यह मामला हाल ही में बंद किए गए राजधानी परियोजना प्रशासन (CPA) का है। यहां एक महिला वनाधिकारी की जॉइनिंग रोकी गई औऱ बड़े साहब से अकेले में मिलने का फरमान सुनाया गया। इस मामले में पीड़ित महिला अधिकारी ने शिकायत की तो उन्हें सतपुड़ा भवन स्थित कार्यालय में अटैच कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने महिला आयोग में लिखित शिकायत की लेकिन उनकी अब तक सुनवाई नहीं हो पाई है। 



फॉरेस्ट में महिला अधिकारी पर CCF को खुश करने का दबाव बनाया: पीड़ित महिला की पोस्टिंग राजधानी परियोजना वन मंडल (CPA) में जुलाई -2019 में वनाधिकारी की पोस्ट हुई  थी। उक्त समय यहां वनमंडल में 4 इकाइयां थीं। पीड़ित की जॉइनिंग इकाई 4 में होनी थी इसके लिए उन्होंने अगस्त- 2019 में उपस्थिति दर्ज कराई। लेकिन उन्हें कार्यभार देने में महीनों तक लटकाकर रखा गया। बार-बार अनुरोध करने के बावजूद इकाई क्रमांक 4 में जॉइनिंग देने के बजाय महिला के बजाय किसी और की नियुक्ति कर दी गई।  पीड़ित को जॉइनिंग देने के लिए बिना शासन की स्वीकृति के स्पेशल रेंजर बना दिया गया। बकौल पीड़ित महिला अधिकारी "जब मैंने कथित गड़बड़ियां उजागर करने की कोशिश की तो मुझपर CCF को खुश करने एवं रेस्ट हाउस में जाकर उनसे मिलने का दबाव डाला जाने लगा। बाद में मुझे CPA से हटाकर हटाकर सतपुड़ा में अटैच कर दिया गया।" पीड़ित महिला रेंजर ने सब तरफ से निराश होकर राज्य महिला आयोग में शिकायत की लेकिन उस पर अब तक सुनवाई नहीं हो सकी है। 



सरकार महिलाओं के प्रति असंवेदनशील- शोभा ओझा: द सूत्र ने महिला आयोग की अध्यक्ष एवं कांग्रेस की वरिष्ठ  नेता शोभा ओझा से बात की तो उन्होंने कहा,"  महिला आयोग की स्थिति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। जहाँ प्रदेश महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में नंबर एक पर लगातार पिछले 15 सालों से बना हुआ है। वहीं महिला आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर सरकार ने ताले डालकर रखे हुए हैं। इससे महिलाओं के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता प्रदर्शित होती है। क्राइम एट वर्कप्लेस भी इस कदर बढ़ा हुआ है की पुलिस स्टेशन में FIR तो दूर, संबंधित कार्यालय में भी शिकायत करने के बावजूद पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता है। ऐसी महिलाओं को महिला आयोग की तरफ से न्याय मिल सकता था। लेकिन ये दुर्भाग्य है कि हाईकोर्ट से स्टेटस-को मिलने के बावजूद महिला आयोग में ताले डले हुए हैं और पीड़ित महिलाएं न्याय से वंचित हो रहीं हैं।"   



 आयोग के ठप्प होने से महिलाओं का अहित- उपमा राय:  राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष उपमा राय का कहना है कि महिला आयोग में कामकाज ठप्प होने का व्यापक असर होता है। महिला आयोग महिलाओं को सशक्त बनाने एवं उनकी गरिमा व सम्मान सुनिश्चत करने के लिए है। परन्तु आयोग के काम न कर पाने की वजह से महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों एवं अपराधों पर त्वरित कार्यवाही नहीं हो पा रही है। आयोग महिलाओं से जुड़ी हुई नीतियों पर सरकार को सलाह देने का काम भी करता है। आयोग ऐसा अधिकार संपन्न  निकाय है जिसकी सिफारिशों को सरकार अनदेखा नहीं कर सकती है।



 मामला कोर्ट में लंबित होने पर कुछ भी कहना उचित नहीं- सदस्य सचिव: वहीं आयोग के सदस्य सचिव शिव कुमार शर्मा ने कामकाज ठप्प होने के मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। उनका कहना है चूँकि आयोग के मुख्य सदस्यों की नियुक्ति को लेकर मामला न्यायालय में चल रहा हैं, इसलिए उनका इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं है।


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