भोपाल. मध्यप्रदेश में गलत तरीके से प्रमोशन पाने वाले संतोष वर्मा को 11 जुलाई को 14 जुलाई तक पुलिस रिमांड पर भेजा गया। मामले में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। जिस दिन का आदेश तैयार किया गया था, उस दिन जज छुट्टी पर थे। वहीं, शनिवार को एमजी रोड थाने में बंद वर्मा रोते पाए गए। थाने में उनसे मिलने रिश्तेदार और परिचित आते रहे, लेकिन पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए किसी को नहीं मिलने दिया।
कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका पर सवाल
पुलिस के मुताबिक, कुछ कोर्ट कर्मियों के बीच की वॉट्सऐप चैटिंग भी सामने आई है। मामले में कोर्ट कर्मचारी कुश हार्डिया, महेश भाटी और नीतू चौहान के बयान भी लिए गए हैं। तीनों से कोई खास जानकारी नहीं मिली है, लेकिन हेड क्लर्क पुरोहित ने साफ कर दिया कि संतोष वर्मा ने ही नकल आवेदन पेश किया था। उसने कंप्यूटर में एंट्री की और जज विजेंद्र सिंह रावत की ओर से डायरी लेकर वर्मा को नकल दी। इसे स्पष्ट है कि फर्जी आदेश बनने में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका हो सकती है। सूत्रों की माने तो कोर्ट द्वारा जारी गए फर्जी दस्तावेज में फॉरेंसिक जांच होना बाकी है। अब अक्षरों(font) का मिलान भी किया जाएगा, इससे साफ हो जाएगा कि कोर्ट आदेश किस जगह तैयार हुआ है।
तीन दिन में भोपाल भेजा डीपीसी के लिए पत्र
सूत्रों की मानें तो 6 अक्टूबर को जज विजेंद्र सिंह रावत द्वारा यह जजमेंट दिया जाना बताया गया है, उस दिन जज छुट्टी पर थे। आदेश की सर्टिफिकेट कॉपी 7 अक्टूबर को कोर्ट से निकलना बताई गई है। 8 अक्टूबर को संतोष वर्मा ने यह कॉपी भोपाल में पेश कर दी थी।
युवती ने शिकायत में कहा- वर्मा ने ज्यादती की
इंदौर के लसूडिया थाने में एक युवती ने शिकायत की थी। उसने कहा था कि उज्जैन के अपर कलेक्टर संतोष वर्मा ने शादी का झांसा देकर उन्हें साथ रखा और ज्यादती की। उसने संतोष के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी। इसी दौरान दोस्ती हुई, जो प्रेम में बदल गई। संतोष ने इस मामले में केस खत्म होने का फर्जी आदेश तैयार करवाया था।
विवादों के वर्मा
हर्षिता अग्रवाल ने एमजी रोड पुलिस और आईजी को भी एक आवेदन दिया है। इसमें आरोप है कि उज्जैन में अपर कलेक्टर रहने के दौरान वर्मा ने एक्सिडेंट करवाकर उसे मारने की कोशिश की थी। शिकायत उज्जैन के एक थाने में दर्ज करवाई थी, लेकिन वहां भी उन्होंने अपने केस में फर्जीवाड़ा कर खुद को निर्दोष बता रखा है। यह शिकायत और थाने की चरित्र सत्यापन की रिपोर्ट भी उन्होंने आईएएस काडर लेने में छिपाई।
इसलिए बनाया फर्जी आदेश
राज्य प्रशासनिक सेवा (SAS) से भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में प्रमोट करने के अधिकारी की जांच की जाती है। मामूली अपराध होने पर आईएएस अवॉर्ड रुक जाता है। ऐसे में वर्मा के खिलाफ दो केस लंबित होने की जानकारी डीपीसी को मिलती तो उन्हें अपने सेवाकाल में कभी आईएएस अवॉर्ड होता ही नहीं। इसलिए उन्होंने फर्जी आदेश बनाकर डीपीसी के समक्ष लगा दिया।