मां बगुलामुखी चतुर्भज रूप में विराजमान, विश्व कल्याण के लिए होती है तंत्र साधना

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rahulk kushwaha
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मां बगुलामुखी चतुर्भज रूप में विराजमान, विश्व कल्याण के लिए होती है तंत्र साधना

निशांत, दतिया. ऐसी विधा और तंत्र साधना जो प्रतिद्वंदी को रोककर सफलता दिला दे। शत्रु को परास्त कर दे। ऐसी विधा को बगुलामुखी तंत्र कहा जाता है, ये विधा मनोवांछित फल भी देती है। इस तंत्र की देवी मां बगुलामुखी देवी हैं, इन्हें मां पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है। इस तंत्र साधना का देश में सबसे बड़ा और प्राचीन धार्मिक स्थल मध्यप्रदेश के दतिया में है। जिसे पीताम्बरा मंदिर तांत्रिक शक्ति पीठ कहा जाता है। मां पीताम्बरा मंदिर के ब्रम्हलीन पीठाधीश्वर श्री स्वामी जी महाराज द्वारा इस तंत्र को लिपिबद्ध कर रखा गया है। संकट के समय भगवान ने भी इस विधा का प्रयोग करके सफलता हासिल की थी। अब राजतंत्र और सत्ता हासिल करने के लिए इस विधा का प्रयोग हो रहा है।





सबकी मुरादें पूरी करती हैं माई





दतिया का श्री पीतांबरा पीठ मंदिर विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक स्थल के रूप में विख्यात है। यहां मां पीतांबरा बगलामुखी देवी हैं, जो चतुर्भुज रूप में विराजी हैं, जो हाथ में गदा पाश, बज्र और राक्षस की जिव्हा थामे हुए हैं। मान्यता है कि यहां जो भी भक्त अपनी मुरादें लेकर आता है, वह कभी खाली नहीं जाता है। माई सबकी मुरादें पूरी करती हैं। माई अपने भक्तों पर सदा कृपा करती हैं। मां अपने भक्तों की हर समस्या का समाधान करके उनके कष्टों को दूर करती हैं।





1935 में हुई पीतांबरा पीठ की स्थापना





श्री पीतांबरा पीठ पर स्थापित मां बगलामुखी देवी की स्थापना पूज्य पाद श्री स्वामी जी महाराज ने साल 1935 में की थी। पूज्य पाद स्वामी जी ने मंदिर में कई सालों तक तपस्या की, जिसका परिणाम है कि श्री पितांबरा पीठ एक सिद्धि तांत्रिक स्थली के रूप में जानी जाती है। मंदिर में ही 10 महाविद्याओं में से एक मां धूमावती और प्राचीन महाभारत कालीन वन खंडेश्वर महादेव यहां विराजमान हैं। इससे पहले यहां प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव घनघोर जंगल में स्थापित था और यहां महाभारत कालीन अश्वत्थामा ने मां बगलामुखी देवी की साधना की थी, जिसका मंदिर की पुस्तक में वर्णन है। मां धूमावती माई के दर्शन के लिए पट सिर्फ आरती के समय ही खोले जाते और उसी समय ही माई के दर्शन किए जा सकते हैं। जबकि मां बगलामुखी देवी और वन खंडेश्वर महादेव के दर्शन पूरे दिन सुबह की आरती से रात्रि की आरती तक लगातार होते रहते हैं।





नवरात्र में पूजा-पाठ का विशेष महत्व





मंदिर में भक्तों की होने वाली मान्यताएं पूरी होने और चमत्कारों के कारण मंदिर में वैसे तो श्रद्धालु साल भर आते रहते हैं। लेकिन नवरात्र में यहां पूजा-पाठ का विशेष महत्व माना जाता है। नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मंदिर में पूजा, जप-तप अनुष्ठान इत्यादि करते हैं। नवरात्रि में भक्त बड़ी संख्या में माई की सुबह, संध्या और रात में होने वाली आरती के लिए लालायित रहते हैं।





सत्ता की देवी हैं माता





मंदिर की ख्याति इतनी बढ़ी हुई है कि मंदिर में देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्रियों, सेना अध्यक्ष सहित बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी माता के दर्शन और पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। माता को राजसत्ता की देवी कहा जाता है, इस कारण राजनीतिक गतिविधियों और चुनाव दौरान तो राजनीतिक लोग बड़ी संख्या में माता से जीत का आशीर्वाद लेने आते हैं।





खिड़की से होते हैं माई के दर्शन





मंदिर में मां बगलामुखी के दर्शन खिड़की से होते हैं। मंदिर में मां बगलामुखी देवी की पूजा-अर्चना पुजारियों के द्वारा की जाती है। मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर सकता, सिर्फ मंदिर के पुजारी ही माई को स्पर्श कर सकते हैं। माई को पीले रंग की वस्तुएं जैसे पोशाक, वस्त्र, माला, पुष्प, प्रसाद आदि चढ़ाया जाता है। दतिया की श्री पितांबरा पीठ मंदिर विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक स्थली के रूप में विख्यात है। मां पीतांबरा ही बगलामुखी देवी हैं जो चतुर्भुज रूप में विराजी हैं, जो हाथ में गदा पाश, बज्र और राक्षस की जिव्हा थामे हुए हैं। माई अपने भक्तों पर सदा कृपा करती है। मां अपने भक्तों की हर समस्या का समाधान कर उनके कष्टों को दूर करती है।





मां धूमावती देवी का मंदिर





मंदिर प्रांगण में ही 10 महाविद्याओं में से एक मां धूमावती देवी का मंदिर है। मां धूमावती के शनिवार के दिन दर्शन करने का विशेष महत्व माना गया है। बताया जाता है शनिवार के दिन मां धूमावती माई लक्ष्मी स्वरूप में रहती हैं। इसलिए श्रद्धालु हजारों की संख्या में शनिवार को मां के दर्शन करने आते हैं। मां धूमावती को नमकीन प्रसाद और श्वेत पुष्पों की माला चढ़ाने का विधान है। इसलिए श्रद्धालु माई को वही अर्पित करते हैं।





विधवा स्वरूप में हैं धूमावती माई





धूमावती माई के दर्शन के लिए पट सिर्फ आरती के समय सुबह 8 बजे और रात 8 बजे सिर्फ 10 मिनिट के लिए ही खोले जाते हैं। वहीं शनिवार के दिन एक से डेढ़ घंटे से ज्यादा समय के लिए खोले जाते हैं। सिर्फ इसी समय में दर्शन किए जा सकते हैं। मां धूमावती विधवा स्वरूप में हैं इसलिए सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए उनका दर्शन निषेध माना गया है। 1962 में चीन-युद्ध के दौरान मां धूमावती का अनुष्ठान हुआ था। बताया जाता है कि अनुष्ठान की पूर्णाहुति के समय ही चीन की सेना वापस हो गई थी। मंदिर में राष्ट्रहित में जप-तप, अनुष्ठान स्वयं पीतांबरा पीठ ट्रस्ट समय आने पर कराता है।





बगुलामुखी तंत्र साधना जितनी गोपनीय उतनी फलीभूत





मंदिर के पुजारी चन्द्र मोहन दीक्षित ने बताया कि बगुलामुखी तंत्र साधना की विधा देवी-देवताओं से आम लोगों तक पहुंची है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि ये विधा जितनी गोपनीय रहती है, उतनी ही फलीभूत होती है।



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