/sootr/media/post_banners/f4b7620449b88764faffffcbd994b455468723956911eb94131762fcd7c07a7c.jpeg)
INDORE. इंदौर से उज्जैन (Ujjain)के बीच आने वाले टोल नाके पर वसूली करते हुए सरकार थक गई है। अब यह टोल फ्लाजा फिर निजी कंपनी को देने की तैयारी शुरू कर दी है। करीब छह महीने पहले सरकार ने खुद ही यहां वसूली शुरू की थी क्योंकि पिछली कंपनी से विवाद होने पर उसे हटा दिया गया था।
इंदौर से महज 45 किमी दूरी पर आने वाले इस टोल प्लाजा को सालों से महाकाल टोलवेज संभाल रहा था, लेकिन करीब छह महीने पहले म.प्र. सड़क विकास प्राधिकरण (MPRDC) और कंपनी के बीच विवाद की स्थिति बन गई। एक तो उक्त फोरलेन का रख-रखाव ठीक से नहीं हो रहा था दूसरा सरकार को जो रेवेन्यू कंपनी से मिलना था वह भी नहीं चुकाया जा रहा था, लिहाजा प्राधिकरण ने कंपनी का ठेका निरस्त कर टोल का संचालन अपने हाथ में ले लिया था।
जल्दी ही होगा निजी हाथों में
टोल चलाने के लिए एक तो वहां खास किस्म का दक्ष स्टॉफ लगता है दूसरा सरकार के पास नियमित कामकाज के लिए ही स्टॉफ की कमी है, ऐसे में नया मोर्चा खोलना उसके लिए परेशानी का सबब बन गया था, फिर भी काफी समय तक सरकारी नुमाइंदों ने टोल प्लाजा संभाला। अब इसे निजी कंपनी को देने के लिए टेंडर जारी कर दिए गए हैं। बहुत संभावना है कि इसी महीने यह सरकार के हाथों से मुक्त होकर निजी हाथों में चला जाए। इस टोल से सालाना करीब 25 करोड़ ( 25 Crore) रुपए का राजस्व आता है। फिलहाल इसे साल भर के लिए दिया जाना है।
2035 तक का ठेका है
इंदौर-उज्जैन फोरलेन पर बना यह टोल 2010 में शुरू हुआ था और इसके ठेका 2035 तक का है। मतलब करीब तेरह साल और जनता को पैसा देना होगा। चूंकि यह स्टेट हाई-वे है इसलिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) द्वारा की गई घोषणा से मुक्त रहेगा। गौरतलब है कि नेशनल हाई-वे ने नई नीति के तहत 60 किमी के अंदर के सारे टोल हटाने के फैसला लिया है। इंदौर से उज्जैन की दूरी 51 किमी है और यह टोल 45 किमी पर मिलता है। इसके अलावा इसी से पाँच-सात किमी दूर शहर में एम आर-10 ब्रिज (MR-10) पर इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) का भी एक टोल है। इंदौर से बाहर के वाहन चालकों को इन दोनों ही टोल पर टैक्स देना पड़ता है क्योंकि दोनों अलग-अलग विभागों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। कई जगह 60-70 किमी पर भी टोल नहीं है। कहीं स्टेट और नेशनल हाई-वे ( National High-way) के टोल पांच-दस किमी (इंदौर जिले में राऊ और सोनवाय) पर ही आ गए हैं और दोनों जगह वसूली हो रही है। इसकी मुख्य वजह विभागों में तालमेल का अभाव है जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।
कई टोल प्लाजा घाटे में
एमपीआरडीसी के कई टोल प्लाजा घाटे में चल रहे हैं और एजेंसियों ने उन्हें चलाने में असमर्थता जता दी है। इंदौर-उज्जैन की तरह ही निमाड़ क्षेत्र की दो टोल कंपनियों ने भी प्राधिकरण को लिखकर दे दिया है कि हमें मुक्त करें। हालांकि उनकी मांग ठुकराकर कहा गया है कि टोल तो आपको ही चलाना होगा। सूत्रों के मुताबिक कई टोल में ट्रैफिक का अनुमान गड़बड़ा जाने से कंपनियां घाटे में आ गई हैं। ठेका लेते वक्त 25 साल आगे के संभावित ट्रैफिक के हिसाब से अनुबंध होता है लेकिन इन सालों में नए और वैकल्पिक मार्ग मिल जाने या अनुमान के मुताबिक ट्रैफिक नहीं बढ़ने के कारण घाटा होने लगता है जिससे कंपनी और प्राधिकरण के बीच विवाद की स्थिति बनती है। इंदौर-उज्जैन फोरलेन पर यही हुआ। निमाड़ में भी दो टोल पर यही हो रहा है।