टेंडर में फर्जीवाड़ा: 1Cr टर्नओवर की शर्त में अयोग्य एजेंसी 2 करोड़ के लिए पात्र?

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Aashish Vishwakarma
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टेंडर में फर्जीवाड़ा: 1Cr टर्नओवर की शर्त में अयोग्य एजेंसी 2 करोड़ के लिए पात्र?

भोपाल। प्रदेश के जनसंपर्क विभाग (department of public relation) के टेंडर में बड़ा फर्जीवाड़ा करने का मामला सामने आया है। मामला 2020 का है जिसका खुलासा आरटीआई (RTI) से प्राप्त दस्तावेजों से हुआ है। द सूत्र (the sootr) के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार विभाग ने 2020 में फ्लेक्स, पोस्टर, बैनर, कैलेंडर, प्रचार रथ, प्रदर्शनी और दीवार लेखन (wall penting) कार्य के लिए प्राइवेट एजेंसियों का पैनल बनाने के लिए टेंडर बुलाए थे। इन टेंडर (e tender) के लिए वो ही एजेंसी पात्र मानी गईं, जिनका पिछले तीन साल का औसतन टर्नओवर (turnover) 1 से 2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष तक था। टर्नओवर की ये शर्त अलग-अलग टेंडर के लिए अलग-अलग निर्धारित की गई थी। विभाग में इम्पैनलमेंट के लिए भोपाल की श्रीराम एड एजेंसी (shriram advt agency) ने भी सभी टेंडर डाले। बीते तीन साल का टर्नओवर 1 से 1.5 करोड़ रुपए औसतन प्रतिवर्ष नहीं होने से श्रीराम एड एजेंसी 3 टेण्डर से बाहर हो गई। लेकिन महज एक महीने बाद ही एक अन्य टेंडर जिसमें 3 साल का औसतन टर्नओवर 2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष मांगा गया था, उसके लिए वो पात्र मान ली गई। इससे जनसंपर्क विभाग में टेंडर की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।





प्रदर्शनी कार्य के इम्पैनलमेंट के लिए पात्र हुई एजेंसी: श्रीराम एड एजेंसी प्रदर्शनी कार्य के इम्पैनलमेंट के लिए पात्र पाई गई। इसमें पिछले 3 सालों का औसतन टर्नओवर 2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष मांगा गया था। इसका टेंडर 11 सितंबर 2020 को खुला था। वहीं, प्रचार रथ के इम्पैनलमेंट के लिए 3 सालों का टर्नओवर 1.5 करोड़ (हर साल) एवं दीवार लेखन कार्य व फ्लेक्स, पोस्टर, बैनर, कैलेंडर कार्य के लिए 3 वर्षों का टर्नओवर 1 करोड़ प्रतिवर्ष मांगा गया था, जिसमें एड एजेंसी अपात्र हो गई। ये सभी निविदा (टेंडर) अगस्त 2020 में खोली गई थी। अपात्र होने का कारण 2019-20 की प्रोविजनल ऑडिट रिपोर्ट संलग्न नहीं होने के साथ-साथ टर्नओवर सर्टिफिकेट एवं ऑडिट रिपोर्ट के फिगर में मिलान नहीं होना बताया गया था। 





ये है सबसे बड़ी आपत्ति: बड़ा सवाल यह है कि सभी टेंडर में टर्नओवर के लिए वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 ही निर्धारित किए गए थे। ऐसे में जब श्रीराम एड एजेंसी इन 3 सालों में प्रतिवर्ष औसतन टर्नओवर 1 से 1.5 करोड़ तक नहीं दिखा पाई तो वो एक महीने बाद ही इन्हीं तीन सालों में प्रतिवर्ष औसतन 2 करोड़ की शर्त कैसे पूरी कर सकती है? कैसे सिर्फ एक महीने के अंदर ही टर्नओवर सर्टिफिकेट और ऑडिट रिपोर्ट के फिगर का भी मिलान हो गया?





संस्कृति विभाग का फर्जी लेटर बनाया: टेंडर हासिल करने के लिए श्रीराम एड एजेंसी ने फर्जी दस्तावेज भी लगाए। संस्कृति संचालनालय की ओर से एजेंसी को एक पत्र जारी किया गया। इसमें 14 जनवरी 2018 को होने वाले एक आयोजन के लिए चाही गई सामग्री की डिटेल थी, लेकिन पत्र जारी करने की तारीख ही कार्यक्रम के बाद 18 जनवरी 2018 लिखी गई थी। वहीं, इसमें संस्कृति विभाग के उपसंचालक के साइन 17 जनवरी 2018 को किए गए।





प्रचार रथ की मीटर रीडिंग में भी फर्जीवाड़ा: जनसंपर्क संचालनालय ने श्रीराम एड एजेंसी को 31 जुलाई 2018 को एक पत्र जारी करते हुए 15 अगस्त से 15 सितंबर तक एक माह के लिए आलीराजपुर, झाबुआ, सिंगरौली और सीधी जिले में 20 प्रचार रथ चलाने की स्वीकृति दी। जिलों के जनसंपर्क अधिकारी ने जो प्रमाण पत्र जारी किए, उनके प्रचार रथ वाहनों की जो मीटर रीडिंग दिखाई गई, उसमें काफी हेरफेर है। जैसे झाबुआ के मेघनगर में गाड़ी नंबर एमपी 09 जीएफ 5464 की ओपनिंग मीटर रीडिंग 3254 किमी, क्लोजिंग मीटर रीडिंग 2286 किमी और टोटल मीटर रीडिंग 5540 किमी दिखाई गई है। प्रचार रथ की मीटर रीडिंग में यह गोलमाल प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा किए जाने का स्पष्ट प्रमाण है। 





टेंडर पाने के लिए एक दर्जन दस्तावेजों पर सवाल: श्रीराम एड एजेंसी ने टेंडर पाने के लिए विभाग में जो दस्तावेज लगाए थे, उनमें से एक दर्जन दस्तावेजों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इनमें कृषि, जनसंपर्क, संस्कृति विभाग के कार्य शामिल है। वहीं, इन कामों को देने वाली एजेंसी जनसंपर्क और माध्यम हैं। इसके अलावा पटेल ग्रुप, आरकेडीएफ, टीआईटी और टॉप-एन-टाउन ग्रुप के भी जो सर्टिफिकेट लगाए गए हैं, उन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। 





जिम्मेदारों का गैर जिम्मेदाराना जवाब: टेंडर प्रक्रिया के लिए जनसंपर्क विभाग की ओर से एक कमेटी बनाई गई थी। इसमें जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक सुरेश गुप्ता, उप संचालक वित्त आशीष नंदनवार और सहायक संचालक ऋषभ जैन शामिल थे। जब द सूत्र ने जब इन अधिकारियों से टेंडर प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता को लेकर चर्चा करनी चाही तो इनमें से किसी ने भी ऑनकैमरा कोई बात नहीं की। अपर संचालक सुरेश गुप्ता और उप संचालक वित्त आशीष नंदनवार ने एड एजेंसी का पक्ष लेते हुए कहा कि जिन 3 टेंडर में एजेंसी अपात्र हुई, उसमें कोई डाक्यूमेंट नहीं लगाए होंगे। बाद में लगा दिए गए होंगे इसलिए वह एजेंसी पात्र हो गई। वहीं सहायक संचालक ऋषभ जैन ने कहा कि मामला बहुत पुराना है इसलिए उन्हें कुछ ठीक से याद नहीं है। सहायक संचालक केके जोशी ने तो एक अलग ही तर्क दिया। जोशी के अनुसार जिस टेंडर के लिए श्रीराम एड एजेंसी पात्र हुई है, उसमें प्रतिवर्ष क्लैरिकल मिस्टैक के कारण लिखा गया। दरअसल, तीन साल का कुल टर्नओवर 2 करोड़ मांगा गया था, जिसमें वह पास हो गई। वहीं अन्य टेंडर  में कुल टर्नओवर 3 और 4.5 करोड़ रुपए निर्धारित था, जिसके कारण एजेंसी अपात्र हुई।





बाजार से महंगी दर पर करवाए जा रहे काम: सरकार के कामकाज और योजनाओं के प्रचार-प्रसार का जिम्मा जनसंपर्क विभाग का होता है, पर जनसंपर्क विभाग बाजार से महंगी दर पर प्रचार-प्रसार संबंधी काम करवा रहा है। यह पैसा सरकार का नहीं, बल्कि आप और हम जैसे टैक्सपेयर की खून-पसीने की कमाई का है, जिसकी सब बंदरबांट करने में लगे हैं। यदि जनसंपर्क विभाग में दिए जा रहे टेंडर की निष्पक्ष जांच हो तो ऐसे करोड़ों के भ्रष्टाचार उजागर हो सकते हैं। 





जनसंपर्क विभाग के करोड़ों के भ्रष्टाचार इसलिए आप तक नहीं पहुंचते: हमने आपको जो भ्रष्टाचार का मामला बताया, यह तो सिर्फ एक बानगी है। जनसंपर्क विभाग में ऐसे ढेरों मामले हैं, जिनमें करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ, लेकिन ये आप तक नहीं पहुंचते...। कारण ये आप तक सच पहुंचाने का जिम्मा जिन मीडिया संस्थानों पर है, उन्हें इसी जनसंपर्क विभाग से करोड़ों के सरकारी विज्ञापन मिलते हैं। यही वजह है कि कोई भी मीडिया संस्थान कभी जनसंपर्क विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार या फर्जीवाड़े को लेकर खबर नहीं करता। द सूत्र निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता में विश्वास रखता है। द सूत्र किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता या सरकारी विज्ञापन नहीं ले रहा, ताकि वह अपने पाठकों और दर्शकों तक सच पहुंचा सके, बिना किसी दबाव के, निष्पक्ष और निर्भीक होकर। यही कारण है कि जनसंपर्क विभाग के कई फर्जीवाड़े की खबर आप सिर्फ द सूत्र पर पढ़ और देख रहे हैं।



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