शिवराज सरकार की 1 लाख नौकरियों की घोषणा: आधी हकीकत, आधा फसाना, युवा आंदोलन पर आमादा

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Arun Dixit
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शिवराज सरकार की 1 लाख नौकरियों की घोषणा: आधी हकीकत, आधा फसाना, युवा आंदोलन पर आमादा

BHOPAL. सीएम की अगले एक साल में एक लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा तालियां तो बटोर सकती है लेकिन वोट बटोरने के लिए सरकार को बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने युवाओं को अगले एक साल में एक लाख नौकरी देने का ऐलान कर बड़ा चुनावी दांव खेला है। दांव भले ही चुनावी हो लेकिन अच्छी बात ये है कि यदि सरकार अपना ये वादा पूरा करती है तो कम से कम एक लाख युवाओं के खाली हाथों में रोजगार आ जाएगा। हालांकि प्रदेश की माली हालत को देखते हुए सीएम की इस घोषणा को पूरा करना इतना आसान नजर नहीं आता। यही कारण है कि सीएम सरकारी नौकरी के साथ स्वरोजगार की बात भी कर रहे हैं।





93 हजार से ज्यादा पद खाली 





सीएम ने सभी विभागों से खाली पदों की जानकारी भी जुटा ली है। अब तक की जानकारी के अनुसार सरकार के पास 21 विभागों में 93 हजार 681 पद खाली हैं। कर्मचारियों की कमी में 45 हजार शिक्षक, 14 हजार डॉक्टर और चिकित्सा कर्मचारी और आदिवासी कार्य विभाग में 8 हजार रिक्तियां शामिल हैं। यानि खाली पदों की अधिकतम संख्या ज्यादातर शिक्षा, स्वास्थ्य और आदिवासी कल्याण विभागों में है जो राज्य सरकार की प्राथमिकता वाले क्षेत्र रहे हैं। सरकार जो एक लाख पदों पर भर्ती करेगी उसमें बीस फीसदी पद संविदा कर्मचारियों के लिए आरक्षित रहेंगे। हालांकि, ऐसा नहीं है कि ये 20 फीसदी आरक्षित पदों के लिए सविंदा कर्मचारियों की सीधी नियुक्ति कर ली जायेगी। बल्कि सविंदा कर्मचारियों को भी नियमों के अनुसार सरकारी पदों के लिए भर्ती परीक्षा से होकर गुजरना पड़ेगा। राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा ने भी द सूत्र से बातचीत करते हुए पुष्टि की है कि सरकार द्वारा घोषित भर्ती अभियान के निर्देश के अनुसार नियमित पदों होने वाली 1 लाख भर्तियों पर संविदा कर्मचारियों के लिए निश्चित आरक्षण रहेगा। चयन प्रक्रिया के दौरान परीक्षाओं में संविदा कर्मचारियों को इसके लिए कोटा मिलेगा।





बेरोजगारी बड़ा चुनावी मुद्दा  





मध्यप्रदेश में बेरोजगारी और संविदा कर्मियों के नियमितीकरण की मांग हमेशा से एक बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। विपक्ष भी प्रदेश में बेरोजगारी को मुद्दा बनाता रहा है। सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों को भरने की मांग लिए बेरोजगार युवा उड़ीसा, हरियाणा, पंजाब,और हिमाचल प्रदेश की तर्ज़ पर खुद को नियमित करने के मांग लेकर सड़क पर निकल चुके हैं। 



प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 26 लाख रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं। इसके अलावा 72 हज़ार संविदाकर्मियों की संख्या है जो सालों से नियमितिकरण की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर करते रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि इन बेरोजगार युवाओं और संविदाकर्मियों का गुस्सा आने वाले विधानसभा चुनावों में भारी पड़ सकता है। चुनावी साल में इसी समस्या से निबटने के लिए ही सीएम ने हाल ही में ये ऐलान किया कि अगले एक साल में एक लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। 







प्रदेश में 26 लाख बेरोजगार 





आंकड़ों के अनुसार एक अप्रैल 2022 तक प्रदेश में 25.8 लाख से अधिक बेरोजगार हैं। इसमें सबसे अधिक संख्या ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों की है। इसके बाद सामान्य वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है। ये दो वर्ग मध्य प्रदेश के युवा बेरोजगारों का 70 फीसदी हैं। 1 लाख 55 हजार बेरोजगारों की संख्या के साथ ग्वालियर टॉप पर है। दूसरे नंबर पर भोपाल है, जहां रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 1 लाख 31 हजार हैं। इसके बाद रीवा में 1 लाख 09 हजार बेरोजगारों की संख्या है। वहीं, आर्थिक राजधानी इंदौर में बेरोजगार युवकों की संख्या 1 लाख 02 हजार है। मुरैना में भी बेरोजगारों की संख्या करीब इतनी ही है। जातिगत समीकरणों के हिसाब से देखा जाए तो प्रदेश में बेरोजगार ओबीसी युवाओं की संख्या करीब 10 लाख है और 8 लाख 11 हजार सामान्य वर्ग के युवाओं की संख्या है। वहीं, अनुसूचित जाति के 4 लाख 35 हजार और अनुसूचित जनजाति के युवाओं की संख्या 3 लाख 36 हजार है।





प्रदेश में 72 हजार संविदा कर्मचारी 





अब आपको बताते हैं संविदा पर सालों से काम कर रहे कर्मचारियों की स्थिति क्या है। मध्यप्रदेश में 72 हजार कर्मचारी संविदा पर काम कर रहे हैं। ये लगभग 15 सालों से प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यालयों जैसे शिक्षा,स्वास्थ, सहकारिता, पीडब्ल्यूडी, पीएचई, जलसंसाधन,राजस्व, वन, कृषि, पंचायत विभाग समेत अलग—अलग निगम/ मंडलों में काम कर रहे हैं। संविदा कर्मचारियों को नियमित करने  की मांग करते हुए कई बार विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। हाल ही में उड़ीसा, हरियाणा, पंजाब,और हिमाचल प्रदेश सरकार के अपने-अपने संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का कदम उठाया है। इसके बाद ये मांग मध्यप्रदेश में तेज़ हो गई है। मप्र संविदा अधिकारी—कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रमेश राठौर कहते हैं कि संविदाकर्मियों को वरिष्ठा के आधार पर नियमित करना चाहिए न कि कोई परीक्षा लेकर। 





एक लाख सरकारी भर्तियों में पेंच 





पहला पेंच ये है कि घोषणा के अनुसार सरकार द्वारा दी जाने वाली एक लाख नौकरियों में मौजूदा संविदा कर्मचारियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण शामिल होगा। इसका मतलब हुआ कि बेरोजगारों के लिए अब जो भी ताज़ा भर्तियाँ होंगी वो 1 लाख नहीं बल्कि बची हुईं 80 हजार पदों पर की जाएगी। यानी पहले ही राज्य के 26 लाख से अधिक बेरोजगार युवाओं के हिसाब से 1 लाख पद भी कम ही थे और अब वो और भी कम होकर 80 हज़ार पद ही रह गए। वहीं दूसरा पेंच ये है कि 1 लाख सरकारी भर्तियों में 20 फीसदी पद संविदा कर्मचारियों के लिए आरक्षित तो कर दिए हैं लेकिन भर्ती की जो प्रक्रिया रहेगी उसमें जो नियम हैं उनके अनुसार कोई भी विभाग सभी श्रेणियों में कुल स्वीकृत पदों में से सिर्फ पांच फीसदी पद ही कर्मचारी चयन बोर्ड या एमपीपीएससी से भर सकता है। जबकि पांच फीसदी से ज्यादा भर्तियों के लिए वित्त विभाग की मंजूरी आवश्यक होगी। यानी सरकारी विभाग को पांच फीसदी से ज्यादा खाली पदों पर भर्ती के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को लिखना होगा और जीएडी इसे मंजूरी के लिए वित्त विभाग के पास भेजेगा। अब ये मंजूरी कब मिलेगी, कितने वक़्त में फ़ाइल आगे बढ़ेगी,ये साफ़ नहीं है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक ये काम जल्दी भी हो सकता है और इसमें वक्त भी लग सकता है।



 



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