सिखों की दीवाली में ग्वालियर का क्या है ख़ास रिश्ता , ग्वालियर के कारण ही अमृतसर के गुरुद्वारे में मनाई गयी थी पहली दीवाली

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Dev Shrimali
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सिखों की दीवाली में ग्वालियर का क्या है ख़ास रिश्ता , ग्वालियर के कारण ही अमृतसर के गुरुद्वारे में मनाई गयी थी पहली दीवाली

GWALIOR. पूरा देश आज दिवाली का त्यौहार मना रहा है और पूरी दुनिया में बसे भारतवंशी भी आज शाम को आपने -अपने घरों में दीप जलाकर दीवाली मना रहे हैं।  यह दीवाली भगवान् राम के वनवास से अयोध्या में लौटने ख़ुशी में मनाई जाती है लेकिन आज सिख समाज भी पूरी दुनिया में अपने घरों पर दीप प्रज्ज्वलित करते हैं लेकिन उन्हें दीवाली मनाने का अवसर ग्वालियर से मिला। ग्वालियर के किले में हुई घटना के बाद ही सिखों ने अमृतसर के गुरुद्वारे पर सबसे पहले दीवाली पर दीप जलाकर खुशियां मनाई थी और संयोग से यह दिन भी दीवाली का ही था और तभी से सिख समाज भी अपने घरों में दीवाली मनाने लगा। 



ग्वालियर किले सेजुड़ी है सीखो की दीवाली की कहानी 



पूरे भारत में दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है सिर्फ हिंदू ही नहीं दीपावली का त्यौहार सभी बड़े धर्म हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं। इसके पीछे उनकी अपनी वजह और मान्यता भी है। सिख धर्म भी दीपावली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाता है सिख धर्म की दीपावली से ग्वालियर का गहरा रिश्ता रहा है सिखों की दीपावली शुरू होने के पीछे एक बड़ी ही महत्वपूर्ण कहानी और से जुड़ा घटनाक्रम है। इसका रिश्ता ग्वालियर के किले से है जिस पर अब एक भव्य गुरुद्वारा बना दिया गया है।  इसकानाम है गुरुद्वारा दतबंदी छोड़।  बस इसके नाम में ही छुपी है सिखों एक दिवाली मनाने की कहानी। ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक दुर्ग पर अनेक प्रागैतिहासिक इमारते तो हैं ही लेकिन सबको चङाकती है सी मौजूद एक भव्य गुरुद्वारा। चौंकने की बात  इसलिए भी है कि ग्वालियर अञ्चल में पहले सिख धर्मालम्बियों की संख्या नगण्य थी लेकिन यह  गुरुद्वारा कोई सामान्य नहीं है बल्कि उनका सबसे बड़ा तीर्थस्थल है।  यह  ऐतिहासिक गुरुद्वारा है दाता बंदी छोड़। 



दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा की कहानी 



गुरुद्वारे की पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है।  यह ग्वालियर के किले पर स्थित है और यहीं से सिख समाज द्वारा देशभर में दीपावली मनाने की शुरुआत की गयी थी। बताते हैं  कि जब सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुगल शासक जहांगीर ने सिखों के छठवें गुरू  हरगोबिंद सिंह   साहिब को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया था लेकिन किले में पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे। गुरु हरगोबिंद सिंह जी जब जेल में पहुँचे तो सभी राजाओ ने उनका स्वागत किया। इस बीच जहांगीर का स्वास्थ्य ख़राब होने लगा।  कोई दवा असर नहीं कर रही थी। तो जहाँगीर को बताया गया कि वे ग्वालियर किले में कैद सिख गुरु   हरगोबिंद सिंह   जी को रिहा कर दो नहीं तो  मर जाओगे। 



52 हिन्दू राजाओं को ऐसे कराया आज़ाद 



जहांगीर ने उनको छोड़ने का फैसला लिया, लेकिन गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से इनकार कर दिया। गुरू हरगोविंद साहिब जी ने अपने साथ कैद सभी 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा करने की शर्त रखी। शर्त को स्वीकरते हुए जहांगीर ने भी एक शर्त रखी कि कैद से गुरू जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे जो, सीधे गुरू जी का कोई कपड़ा पकड़े हुए होंगे। जहांगीर की इस चालाकी देखते हुए गुरू जी ने एक विशेष कुरता सिलवाया, जिसमें 52 कलियां बनी हुई थीं। इस तरह एक- एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा कैद से आजाद हो गये। 52 राजाओं को इस दाता बंदी छोड़ ने एक साथ छुड़ाया गया था।इसलिए इस गुरूद्वारे को दाता बंदी छोड़ भी कहा जाता है। यहां लाखों की तादाद में सिख धर्म के अनुयायी अरदास करने आते हैं। दाता बंदी छोड़ सिखों के प्रमुख अरदास केंद्र के रूप में शुमार है।



वह दीवाली का ही दिन था 



 गुरु हरगोविंद साहिब ने कार्तिक की अमावस्या यानी दीपावली के दिन 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ जेल से बाहर निकाला था, तभी से सिख धर्म के लोग दिवाली मनाते हैं और कार्तिक माह की अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस भी मनाया जाता है। सेवादार सुक्खा सिंह बताते हैं कि यहाँ से रिहा होने की ख़ुशी में सबसे पहले अमृतरसर पहुंचे तो वहां दीवाली मनाई गयी इसके बाद दीवाली को हर गुरुद्वारा और हर पंजाबी के यहाँ भी दीप जलाकर दीवाली मनाने की यह परम्परा शुरू हुई। 




Diwali of Sikhs Guru Hargobind Sahib was released by Jahangir 52 Hindu kings were released from Jahangir's jail that's why it was said to leave Databandi why is Hargobind Sahib called Databandi गुरु हरगोबिंद साहब को जहांगीर ने छोड़ा 52 हिन्दू राजाओं को जहांगीर की जेल से रिहा कराया इसलिए कहे गए दाताबंदी छोड़ हरगोबिंद साहिब को क्यों कहा जाता है दाताबंदी