राजीव उपाध्याय, JABALPUR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल अग्निकांड के मामले पर सख्ती दिखाई है। चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार से पूछा कि जिन डॉक्टर्स को अग्निकांड का दोषी पाकर सस्पेंड करने का प्रस्ताव है, उन्हें ही निजी अस्पतालों की जांच टीम में क्यों शामिल कर लिया गया ? कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी कर कहा कि संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो मामला सीबीआई के सुपुर्द करने पर विचार किया जाएगा। अगली सुनवाई 22 अगस्त तक जवाब मांगा गया है।
3 अस्पतालों के लाइसेंस रद्द
मध्यप्रदेश लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएसन के अध्यक्ष अधिवक्ता विशाल बघेल की ओर से जनहित याचिका दायर की गई। इसमें कोरोना काल में जबलपुर में खोले गए नियम विरुद्ध अस्पतालों का मसला उठाया गया। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता भरत सिंह ने जवाब पेश करते हुए बताया कि याचिका में उठाए गए बिन्दुओं पर कार्रवाई की जा रही है। 3 अस्पतालों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं। 1 अगस्त को न्यू लाइफ अस्पताल में हुई आगजनी की घटना से 8 लोगों की जलकर मौत और 18 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने के मामले में धारा-304 के तहत एफआईआर दर्ज कर दोषियों पर कार्रवाई की जा रही है। जिले के सीएमएचओ को भी निलंबित कर दिया गया है।
NOC खत्म होने के बाद भी रद्द नहीं किया पंजीयन
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आलोक वागरेचा ने कोर्ट को बताया कि सरकार की ओर से पेश किए गए जवाब में 2 अगस्त की एक नोटशीट प्रस्तुत की गई है। इसमें कहा गया है कि न्यू लाइफ मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल जबलपुर का भौतिक निरीक्षण कर कमेटी के सदस्य डॉ. एलएन पटेल, डॉ. निषेध चौधरी ने अनफिट भवन को सही बताकर लाइसेंस जारी करने की अनुशंसा की थी। तत्कालीन नर्सिंग होम शाखा प्रभारी डॉ. कमलेश वर्मा ने अस्पताल की फायर एनओसी की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी उसका पंजीयन निरस्त नहीं किया था।
तीनों डॉक्टरों को किया जाना है सस्पेंड
डॉ. एलएन पटेल, डॉ. निषेध चौधरी और डॉ. कमलेश वर्मा की लापरवाही से अग्निकांड जैसी दुखद घटना हुई। इसलिए तीनों को सस्पेंड करने का प्रस्ताव है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वहीं दूसरी ओर अग्निकांड हादसे के बाद जबलपुर के समस्त अस्पतालों की जांच के लिए बनाए गए 43 सदस्यीय निरीक्षण दल में भी तीनों डॉक्टरों को शामिल कर लिया गया, जिन्हें इस घटना का दोषी माना जा रहा है। तर्क सुनने के बाद हाईकोर्ट ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस मामले में जिन व्यक्तियों को दोषी मानकर निलंबित किया जा रहा है, उन्हीं व्यक्तियों को अस्पतालों की जांच कमेटी में रखा गया।
हाईकोर्ट ने सरकार को फटकारा और जवाब मांगा
हाईकोर्ट ने इस रवैये पर सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए ऐसा किए जाने के संबंध में जवाब मांगा। सरकार से ऐसा किए जाने के संबंध में जबाब मांगा। कोर्ट ने तीनों निरीक्षणकर्ताओं के निलंबन की वस्तुस्थिति पूछी। इस पर शासन की ओर से संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर युगलपीठ ने जनजीवन से जुड़ी इतनी बड़ी घटना पर हुई लापरवाही की कड़ी निंदा की। कोर्ट ने इस घटनाक्रम के संबंध में सोमवार तक शपथ पत्र में जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि यदि सोमवार तक संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो मामले की जांच सीबीआई को भी सौंपने के निर्देश दिए जा सकते हैं।