नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, एक ग्वालियर चंबल का टाइगर है तो दूसरा शेर है. राजा महाराजाओं के टैग को फिलहाल परे रख दें तो राजनीतिक रसूख के लिहाज से कोई किसी से कम नहीं है. कांग्रेस में रह कर सिंधिया ने ग्वालियर चंबल पर एक छत्र राज किया है तो तोमर का जलवा भी बीजेपी में कम नहीं रहा. सिंधिया का दल बदलना राजनीति में ठीक वैसा ही हुआ जैसे एक शेर का अपनी सीमा छोड़ कर दूसरे की सरहद में दखल देना. जंगल में शेर या बाघ बेखौफ आपस में टकरा जाते हैं. सियासी दंगल में ये संभव नहीं. हालांकि दोनों के समर्थक नारे और हॉर्डिंग्स के जरिए ऐसी लड़ाई करते रहते हैं. बीजेपी हमेशा दावा करती रही है कि यहां गुटबाजी नहीं होती. लेकिन ग्वालियर चंबल में दो गुट पनप चुके हैं. इससे इंकार नहीं किया जा सकता. और, जो ताजा हालात हैं उन्हें देखते हुए लगता है कि कोल्ड वॉर का तापमान कभी भी बदल सकता है.