Ujjain. सबका दुख हरने वाले भोले-भाले भोलेनाथ के रुद्र रूप की बात आती है तो सामने आता है एक भगवान शिव का पांचवां अवतार यानी काल भैरव। दुष्टों का संहार करने वाला डरावना रूप। छोटी सी गलती की तत्काल बड़ी सजा देने वाले। काले कुत्ते पर सवार। देश में काल भैरव के केवल 3 ऐतिहासिक मंदिर हैं, इनमें उज्जैन का काल भैरव मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। 9वीं से 13वीं शताब्दी में परमार काल में क्षिप्रा नदी के तट पर बने इस ऐतिहासिक जागृत मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण के अवंति खंड में भी आता है। काल भैरव उज्जैन शहर के रक्षक माने जाते हैं। यहां काल भैरव को रोजाना हजारों भक्त काल भैरव को शराब चढ़ाते हैं। यह शराब कहां जाती है, कोई नहीं जानता। इस रहस्य से वैज्ञानिक भी अचरज में हैं। आइए हम बताते हैं, इस पौराणिक महत्व के जागृत मंदिर के बारे में वो सब कुछ जो जानना चाहते हैं आप।
रविवार की पूजा का माना जाता है विशेष महत्व
काल भैरव मंदिर महाकाल मंदिर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काल भैरव मंदिर में मदिरा बाबा का विशेष प्रसाद है। ऐसा मान्यता है कि बाबा काल भैरव सारा दुख दूर कर देते है। बाबा अपने भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करते है। इनके साथ यह भी मान्यता है कि इनकी अनुमति के बगैर इनके दरबार में लगाई हाजिरी के कोई काशीवास नहीं कर सकता। इस मंदिर में रविवार की पूजा का विशेष महत्व माना गया है।
काल भैरव को शराब क्यों चढ़ाई जाती है?
मंदिर के पुजारी बाबा काल भैरव को शराब भोग लगाते हैं। मान्यता है कि बाबा काल भैरव को शराब चढ़ाने से ग्रहों के सारे दोष खत्म हो जाते हैं। बाबा काल भैरव इससे खुश होते हैं और इसका पुण्य रविवार के दिन और ज्यादा मिलता है। वहीं, कुछ अन्य लोगों की मान्यता है कि अगर कोई काम पूरा नहीं हो पा रहा तो काल भैरव मंदिर में शराब चढ़ाने से हो जाता है। कुछ लोग इस मंदिर में इसलिए भी शराब चढ़ाते है, ताकि उन्हें जिंदगी की समस्या और शारीरिक समस्या या तो खत्म हो जाए या फिर कम हो जाए। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि लोग अपने पाप, दोष और बुराइयों को खत्म करने के लिए बाबा को मदिरा चढ़ाते हैं। जैसे ही देखते ही देखते वह पात्र जिसमें शराब का भोग लगाया जाता है, खाली हो जाता है। बताया जाता है कि पहले काल भैरव को जानवरों की बलि भी चढ़ाई जाती थी। हालांकि, अब इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है।
महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय के लिए अर्पित की थी पगड़ी
भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। कहा जाता है कि 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह से हार गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी। महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान काल भैरव को अर्पित कर दी। उन्होंने शत्रुओं से जीत हासिल करने के लिए भगवान से मनोकामना की थी। इसके बाद से महादजी किसी से भी कोई भी युद्ध नहीं हारे।
भैरव की मूर्ति के सामने लगा है झूला
मंदिर में काल भैरव की मूर्ति के सामने झूला लगा है। इसमें भैरव की मूर्ति विराजमान है। बाहरी दीवारों पर अन्य भगवानों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। सभागृह के उत्तर की ओर एक पाताल भैरवी नाम की एक छोटी सी गुफा भी है।