संजय गुप्ता,INDORE.बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला की जोड़ी को विधानसभा चुनाव के 13 माह पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कारण बढ़ी राहत मिल गई है। नगर निगम इंदौर में 17 साल पहले हुए चर्चित पेंशन घोटाला केस में सरकार से अभियोजन मंजूरी नहीं मिलने की वजह से कोर्ट ने इसे बंद कर दिया है। बंद करते हुए कोर्ट ने कहा कि परिवादी (कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा) इतने साल में मंजूरी ही नहीं ला सकें,तो फिर केस चालू रखने का कोई मतलब नहीं है। 2005 में ये परिवाद लगा था। पक्षकार के वकील विभोर खंडेलवाल ने बताया कि कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन मंजूरी के बिना केस में कार्रवाई नहीं हो सकती है।
विशे,न्यायाधीश मुकेश नाथ की कोर्ट ने हालांकि ये जरूर कहा है कि परिवादी को अगर आगे अभियोजन की मंजूरी मिलती है तो वह फिर कार्रवाई के लिए स्वतंत्र रहेंगे। इस मामले को अभियोजन की मंजूरी के लिए राज्य सरकार और राज्यपाल के पास आवेदन गए थे, लेकिन तभी से वहीं अटके हुए हैं।
इन्हें बनाया गया था पार्टी
परिवाद में भ्रष्टाचार निवारण एक्ट के तहत तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय,रमेश मेंदोला,उमा शशि शर्मा,ललित पोरवाल,शंकर लालवानी,तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ला,नितेश व्यास,वीके जैन सहित 15 लोगों को पार्टी बनाया गया था। आरोप था का अपात्रों को करीबियों,रिश्तेदारों को पेंशन बांटी गई है।
इस साल हुआ पेंशन घोटाला
पेंशन घोटाला साल 2000 से 2005 के बीच हुआ। इसमें वृद्धावस्था पेंशन मृतकों के नाम पर डाली गई थी। तत्कालीन संभागायुक्त अशोक दास ने जांच की थी और इसमें गड़बडी मिली। हजारों हितग्राहियों का पता नहीं चला। आठ फरवरी 2008 को जांच के लिए जस्टिस एनके जैन की अध्यक्षता में आयोग बना,आयोग ने सितंबर 2012 में एक हजार पेज की रिपोर्ट दी। इसमें पाया गया कि प्रदेश में करीब सवा लाख लोग जो अपात्र थे,उन्हें पेंशन दी गई है। बाद में संस्था ने 17 लाख रुपए लौटाए भी थे। राज्य सरकार ने बीपीएल परिवारों के बुजुर्ग महिला,पुरूषों के लिए 500 रुपए प्रति माह पेंशन देने योजना शुरू की थी। इस घोटाले में कुल 33 करोड़ की राशि की गफलत के आरोप थे।
मेंदोला की समिति ने बांटी थी पेंशन
नंदानगर सहकारी साख संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष रमेश मेंदोला थे। इसी समिति के पास पेंशन वितरण का काम था। बाद में सरकार ने तत्कालीन मंत्री जयंत मलैया की अध्यक्षता में भी कमेटी बनाई। इसमें अनूप मिश्रा और नरोत्तम मिश्रा भी थे,लेकिन कुछ नहीं हुआ। वहीं फरियादी केके मिश्रा का कहना है कि शासन ने दस्तावेज देने में हमेशा टालमटोली की है। अभियोजन मंजूरी देने की जगह टालमटोली करती रही और सरकार इसपर कहती है कि भ्रष्टाचार पर हम जीरो टालरेंस नीति पर है। कानूनी सलाह लेकर आगे कार्रवाई करूंगा,मैं पीछे नहीं हटने वाला।