ललित उपमन्यु, Indore. एक मेयर कोर्ट में खड़ा है। जमानत के लिए । जज कुर्सी पर है, धड़कनें तेज। अर्जी पर सुनवाई चल रही है। राजनीति के सफर में ये अजीब मौका था। तभी कोर्ट में ही मेयर के निकटतम साथी के फोन की घंटी बजी। उनसे कहिए तुरंत भोपाल पहुंचे। मंत्री पद की शपथ लेना है। ये कहानी ऐसे नेता की है जो एक साथ विधायक, मेयर और प्रदेश शासन के दो-दो मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में चार मंत्रालयों का मंत्री भी रहा। बात कैलाश विजयवर्गीय की हो रही है। वे कुल छह बार इंदौर से विधायक रहे। चौथी बार जब वे विधायक बने तो पार्टी ने उन्हें मेयर ( साल 2000) का टिकट भी दे दिया। ये वो साल था जब पहली बार मेयर के चुनाव सीधे जनता द्वारा हो रहे थे। विजयवर्गीय उस साल देश में सबसे ज्यादा वोटों (एक लाख छह हजार) से जीतने वाले मेयर बने। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री सुरेश सेठ को हराया था। उस समय मप्र में दिग्विजय सिंह की सरकार थी।
मेयर और चार विभागों के मंत्री साथ-साथ
2003 में जब मप्र में उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो विजयवर्गीय के लिए राजनीति के कई दरवाजे एक साथ खुल गए । एक तो वे इंदौर के पहले ऐसे मेयर थे जो विधायक रहते हुए मेयर बने। उमा की सरकार बनते ही उन्हें सरकार में बिजली और पीडब्ल्यूडी के केबिनेट मंत्री का पद मिला। ये भी इंदौर के इतिहास में पहला अवसर था जब कोई नेता विधायक, मेयर और प्रदेश के दो-दो महत्वपूर्ण विभागों का कैबिनेट मंत्री साथ-साथ रहा हो।
कोर्ट में आया फोन, भेजो मंत्री बनाना है
अगस्त 2004 में हुबली कोर्ट वारंट मामले में जब उमा भारती ने पद से इस्तीफा दे दिया तो बाबूलाल गौर नए मुख्यमंत्री बने। नए सिरे से मंत्रिमंडल का गठन होना था। गौर और विजयवर्गीय के राजनीतिक रिश्ते उस समय ठीकठाक नहीं थे, इसलिए यही असमंजस बना हुआ था कि वे विजयवर्गीय को मंत्रिमंडल में लेंगे या नहीं। एक मुश्किल और थी। कई विधायकों पर पुराने राजनीतिक मामलों के केस चल रहे थे जिनमें वारंट निकले हुए थे। उनके निकाल के बगैर किसी को मंत्री नहीं बनाया जा रहा था। कैलाश विजयवर्गीय पर भी पुराना कोई राजनीतिक आंदोलन का केस चल रहा था। इधर भोपाल में गौर मंत्रिमंडल का खाका तैयार हो रहा था और उसी दिन विजयवर्गीय उस मामले में जमानत के लिए कोर्ट में खड़े थे। यह भी पता नहीं था कि उन्हें मंत्रिमंडल में लिया जा रहा है या नहीं। इधर कोर्ट की कार्रवाई चली और उधर मंत्रियों के नामों को अंतिम रूप दे दिया गया।
उसी दौरान विजयवर्गीय के अभिन्न साथी के.के. गोयल के पास भोपाल से कोर्ट में ही फोन आया कि विजयवर्गीय को संदेश दें कि उन्हें तत्काल भोपाल आना है, शपथ लेने के लिए। तब शायद कोर्ट में होने के कारण विजयवर्गीय का फोन काम नहीं कर रहा था। गोयल ने यह संदेश विजयवर्गीय को दिया। हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भोपाल में पहुंचना मुश्किल था। अन्य मंत्रियों ने बड़े समारोह में शपथ ले ली। विजयवर्गीय भोपाल नहीं पहुंच पाए। अगले दिन राज्यपाल ने उन्हें अकेले शपथ दिलाई। गौर मंत्रिमंडल में वे उद्योग और संसदीय कार्यमंत्री रहे। जनवरी 2005 में जब उनका मेयर का कार्यकाल खत्म हो गया, तब तक वे मेयर रहते हुए चार विभागों
के मंत्री रह चुके थे।