BHOPAL. मध्यप्रदेश में जब तक शहर की सरकार नहीं बन जाती तब तक कांग्रेस और बीजेपी दोनों चैन से नहीं बैठेंगे। यूं समझिए कि कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान दोनों सुकून की सांस भी नहीं ले सकेंगे क्योंकि ये चुनाव सिर्फ 16 नगर निगमों पर अपना कब्जा जमाने की जंग नहीं है बल्कि दोनों दिग्गजों के लिए ये टीम इंडिया के सेमीफाइनल मैच की तरह है। शहरी सरकार के चुनाव पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक तमाम नजरें टिकी हुई हैं। ये देखने के लिए कि आखिर फाइनल मैच से पहले सेमीफाइनल कौन जीतता है। ये सत्ता का सेमीफाइनल है, मुकाबला तो दिलचस्प होगा ही। फर्क सिर्फ इतना है कि जीते कोई भी और हार चाहे किसी की भी हो। फाइनल का मैच भी इन्हीं दोनों टीमों को लड़ना है। दोनों टीमों में एक फर्क और है। टीम बीजेपी के पास मजबूत संगठन का साथ है लेकिन टीम कांग्रेस के पास ऐसा कोई बैकअप नहीं है। हालांकि कांग्रेस टीम के कप्तान कमलनाथ ने इस खेल में फतह पाने के लिए एक नई रणनीति तैयार की है जो बीजेपी को बीजेपी के तरीके से ही मात देगी।
कांग्रेस और बीजेपी में एक मूल फर्क
कांग्रेस और बीजेपी में एक मूल फर्क है। वैसे दोनों राजनीतिक दल हैं। देश के दो बड़े राष्ट्रीय राजनीतिक दल और सबसे पुराने भी लेकिन जो फर्क है वो है संगठन का। बीजेपी के बैकअप में हमेशा संगठन रहा है और कई बार पार्टी के मुख्य नेताओं से ज्यादा मजबूत भी। जैसा इस बार भी दिखाई दे रहा है। नगरीय निकाय के प्रत्याशी चयन से लेकर की अन्य फैसलों में संगठन पार्टी के कई सत्ताधारी नेताओं पर भारी पड़ा है। दिन पर दिन संगठन के प्रमुख वीडी शर्मा सत्ता प्रमुख शिवराज सिंह चौहान पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। महापौरों को टिकिट देते समय बैठक में जिस तरह वीडी शर्मा हावी रहे उसे देख और सुनकर यही लगता है कि आने वाले चुनाव तक संगठन ज्यादा मजबूत होगा और सत्ता पर हावी भी। अगर नगरीय निकाय चुनाव में माकूल नतीजे नहीं मिले तो शायद शिवराज की जगह पार्टी में विष्णु का ही राज नजर आ सकता है। ये बीजेपी का संगठन ही है जो आड़े वक्त में पार्टी की कमान थामता है। असंतोष को पार्टी की नीतियों पर हावी नहीं होने देता। कांग्रेस हमेशा ऐसे ही संगठन की कमी महसूस करता रहा है। खासतौर से सत्ता से बाहर आने के बाद से एक मजबूत संगठन का अभाव कांग्रेस को लगातार सत्ता से दूर कर रहा है जबकि यही संगठन बीजेपी को लाख कमियों, असंतोष के बावजूद जीत की तरफ बढ़ाता रहा है। राजनीति के हर बदलते मौसम को देख चुके कांग्रेस के सीजन्ड नेता कमलनाथ बीजेपी की इस ताकत को भांप चुके हैं। इस बार उन्होंने नगर सरकार के चुनाव से पहले ऐसा पैंतरा चुना है कि कांग्रेस संगठन न होते हुए भी संगठन की कमी महसूस नहीं करेगी।
कांग्रेस को मिल रहा कमलनाथ के तजुर्बे का फायदा
कमलनाथ के तजुर्बे का असल फायदा कांग्रेस को अब होता नजर आ रहा है। एक सीनियर नेता जो राजनीति के हर तेवर से वाकिफ हैं। उनसे जिस किस्म की रणनीति की उम्मीद होनी चाहिए वो इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी चयन और उस फैसले में दिखाई दे रही है जिसके लिए कमलनाथ ने अपना एक अलग क्राइटेरिया तैयार किया है। इसे कमलनाथ का क्राइटेरिया ही कहा जा सकता है जिसे देखकर बीजेपी का 5 राज्यों में आजमाया क्राइटेरिया यहां कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में इतनी बड़ी जीत हासिल कर चुकी बीजेपी ने 16 सीटों के महापौर तय करने के लिए लगातार 6 दिन तक सुबह-शाम बैठकें कीं। दिग्गजों ने पेंच फंसाया तो दिल्ली हाईकमान को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। न सिर्फ महापौर, पार्षदों के टिकट में भी बीजेपी का कन्फ्यूजन साफ दिखाई दे रहा है। ये कमलनाथ की चुनावी रणनीति का असर नहीं है तो और क्या है जिसमें इस बार सिर्फ बड़े नेता ही नहीं कांग्रेस कार्यकर्ता की भी फिक्र नजर आती है। हाल ही में हुई बैठक में कमलनाथ ने फिर दोहराया कि ये चुनाव विधायकों का रिपोर्ट कार्ड भी तैयार करेगा। जिन्हें मौका नहीं मिला उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां भी मिलेंगी।
कमलनाथ के लिए बड़ा इम्तिहान
ये इम्तिहान बड़ा है। कमलनाथ को ये साबित करना है कि 2018 की जीत दोहराने के लिए वो कांग्रेस की राइट च्वाइस हैं तो शिवराज सिंह चौहान को भी ये साबित करना है कि उनकी 17 साल की सरकार का रसूख फीका नहीं पड़ा है। उनका होल्ड अब भी बरकरार है। इस मिशन में जो भी चूका वो शायद अपने कंधों पर 2023 की जिम्मेदारी उठाने से चूक जाए और अगर उठाए भी तो शायद कंधों की मजबूती कुछ कर दी जाए। कमलनाथ को ये अंदाजा है कि नगर सरकार में नाकामी पार्टी में उनके बढ़ते कद पर लगाम लगा सकती है। कमलनाथ ने शायद आखिरी दांव खेला है लेकिन जोरदार खेला है। बीजेपी जब चुनावी मैदान में उतरती है तो बड़े नेताओं सहित कार्यकर्ताओं को भी अहमियत देती। कमलनाथ ने हाल ही में हुई चुनाव प्रभारियों की बैठक में इसी तर्ज पर सबको जिम्मेदारी बांट दी। विधायकों को ताकीद कर दिया कि नगर सरकार उनका भविष्य भी तय करेगी। इसके अलावा हर कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाने पर जोर देना है।
विधायकों को फ्री हैंड देने का दांव
कमलनाथ के दांव का असर बीजेपी की बेचैनी में साफ दिखाई दे रहा है। कमलनाथ का ये दांव है विधायकों को फ्री हैंड देने का दांव। कमलनाथ ने सभी विधायकों को मेयर चुनाव के लिए फ्री हैंड दे दिया है। मेयर को जिताने की जिम्मेदारी कांग्रेस विधायकों पर है जिन्हें कमलनाथ ने ये वादा भी किया है कि जो विधायक मेयर को चुनाव जिता सकेंगे अगले चुनाव में उनका टिकट पक्का है। राजनीति की दुनिया में मौका परस्त कई होंगे लेकिन कमलनाथ वादा निभाने वालों में से एक हैं। इसलिए कांग्रेस के विधायक पूरी ताकत से मेयर चुनाव में पार्टी को जिताने में जुट गए हैं।
बीजेपी ने भी विधायकों को सौंपी जिम्मेदारी
बीजेपी ने भी विधायकों को जिम्मेदारी सौंपी है। भोपाल के लिए तो सुना है कि विधायकों ने बकायदा बीजेपी प्रत्याशी को जिताने की गारंटी भी दी है। इसी तरह जबलपुर की सीट पर भी विधायकों ने अपनी पसंद के उम्मीदवार को टिकट दिलवाया है। विधायकों को जीत का दारोमदार तो सौंप दिया गया है लेकिन इस जीत के बदले उन्हें विधानसभा का टिकट देने जैसा कोई भरोसा विधायकों को नहीं दिया गया है। उस पर क्राइटेरिया की तलवार अलग से लटक ही रही है। ऐसे में कांग्रेस विधायकों के सामने बीजेपी विधायकों का उत्साह फीका ही नजर आ रहा है। इस बार बीजेपी की मुश्किल इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कांग्रेस के विधायकों की ताकत पिछली बार के मुकाबले काफी ज्यादा है। रणनीति भी नई है और संगठन की काट का तरीका भी अलग है।
बीजेपी का मुकाबला सिर्फ कांग्रेस से नहीं, जनता को भी देना है जवाब
इस बार शहर की सरकार के लिए जब बीजेपी सरकार चुनावी मैदान में उतरेगी तो मुकाबला सिर्फ कांग्रेस से नहीं कई मोर्चों पर बीजेपी को जनता के सामने जवाब देना है। कोरोना के समय जो जनप्रतिनिधि गायब रहे या खामोश रहे उन्हें अपने कामों का हिसाब भी देना होगा। बारिश के समय हो रहे चुनाव में दल दल बनी गलियों से जब खुद चुनाव मांगने गुजरेंगे तो कीचड़ में डूबे हर गड्ढे पर सफाई भी देनी पड़ सकती है। कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं में अंतर ये होगा कि कांग्रेस फुल कॉन्फिडेंस के साथ मैदान में होगी क्योंकि पहली बात ये कि कांग्रेस विधायकों के पास खोने के लिए कुछ खास है नहीं पर थोड़ा भी बेहतर किया तो टिकट मिलना तय है लेकिन बीजेपी को सबसे पहले तो सारी सीटों पर जीत हासिल करनी है। एक महापौर की सीट भी गंवाई तो मौजूदा सरकार की पकड़ पर सवालिया निशान तो लग ही जाएगा।