ग्वालियर. आज से पांच साल पहले सूखा और जल संकट की मार झेल रहे जिले के पांच गांवों ने अपने प्रयासों से गांव की तस्वीर बदल दी है। मामला भितरवार तहसील की ग्राम पंचायत बडेराभारस का है जहां के गांवों में आज से पांच साल पहले तक जल संकट था। गांव में पानी की कमी की वजह से इलाके में लोग अपनी बेटियों की शादी करने से कतराते थे। इसकी वजह गांव की महिलाओं को दो किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता था। जल संकट की गंभीर समस्या पर अब यहां के लोगों ने अपने प्रयासों से काबू पा लिया है। ग्रामीणों ने समन्वय के साथ यह मुहिम चलाकर सूखे से निजात पाई है। आईये जानते हैं जल संरक्षण से जुड़ी यह प्रेरक कहानी जो हमें पानी बचाने का संदेश देती है।
'गांव का पानी गांव में' मुहिम से शुरुआत: आज से पांच साल पहले तक पंचायत सभी गांवों में भूजल स्तर 140 फीट तक चला गया था। पंचायत की तीन हजार की आबादी का जलस्त्रोत सिर्फ एक कुआं था। यहीं से ग्रामीण पानी भरते थे। गांव में फैले इस जल संकट से पार पाने का जिम्मा ग्राम पंचायत की सरपंच सर्वदी सिंह ने उठाया । सबसे पहले सरपंच ने जिला पंचायत के अफसरों को जल संकट की समस्या बताई। इसके बाद सरकारी मदद और ग्रामीणों को जागरुक कर बारिश के पानी को गांव में ही रोकने के प्रयास शुरू किए। ग्रामीणों ने पंचायत के माथे से सूखे का कलंक मिटाने के लिए 'गांव का पानी गांव में' की सीख पर अमल करना शुरू किया। सबसे पहले गांव-गांव जाकर टोलिया बनाई। जनजागरण कर ग्रामीणों को खेत तालाब, मेढ़ बंधान, पौधारोपण के फायदे गिनाए। सरंपच कहती हैं कि पंचायत का सबसे बड़ा ग्राम तोड़ा है, जिसकी आबादी 759 है, जल संकट से उबरने की पहल इसी गांव से हुई। देखते ही देखते पांचों गांवों के लोग जुड़ते चले गए। आखिरकार ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई और पंचायत के सभी पांच गांवों में भूजल स्तर 40 फीट पर आ गया।
बदली गांव की तस्वीर, अब पानी ही पानी: पानी बचाने की मुहिम से पंचायत का सिंचित क्षेत्रफल 332 हेक्टेयर हो गया है। ग्रामीण हर साल नए काम जोड़ना शुरू करते हैं जिसकी बदौलत अब यहां दो तालाब, दो खेत तालाब, नौ चेकडैम, 50 टयूबवेल, 15 कूप हो गए हैं। सरपंच ने बताया कि पहले ग्रामीण एक फसल ही बड़ी मुश्किल से ले पाते थे। अब किसान दोनों सीजन में फसल कर रहे हैं। फल और सब्जी की पैदावार होने से ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार आया है। यह पंचायत दूसरे गांवों के लिए मिसाल बनकर उभरी है।