GWALIOR: देश में नेता लेकिन ग्वालियर में भगवान की तरह पूजे जाते हैं अटल जी ,मंदिर भी है,पढ़ें क्यों ग्वालियर उनके दिल में बसता था

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Dev Shrimali
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GWALIOR: देश में नेता लेकिन ग्वालियर में भगवान की तरह पूजे जाते हैं अटल जी ,मंदिर भी है,पढ़ें क्यों ग्वालियर उनके दिल में बसता था


GWALIOR. आज जन नायक अटल विहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है।   वैसे तो भारत  रत्न अटल विहारी वाजपेयी को किसी क्षेत्र या राज्य से बांधकर सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे पूरे देश कैसे जन नायक थे जिनके दिल में भारत बसता  था और जो करोड़ों भारत वासियों के दिलों में बसते हैं। लेकिन ग्वालियर के  लिए अटल जी और अटल जी के लिए ग्वालियर का एक ख़ास अर्थ था ,है और सदैव रहेगा। वे भले ही राजनीति के सिलसिले में कानपुर ,लखनऊ से लेकर दिल्ली पहुंचे लेकिन अपनी मातृभूमि ग्वालियर से जुड़ाव उनका ताउम्र रहा और यहाँ के खानपान और दोस्तों से भी याराना अंतिम सांस तक कायम रहा। यही कारण  है कि देश में ग्वालियर ही है जहाँ उन्हें सिर्फ नेता की तरह नहीं बल्कि भगवान की  तरह याद किया जाता है और भले  भव्य न हो लेकिन यहाँ उनका एक मंदिर भी है जिसमें उनकी सुबह शाम पूजा भी होती है।



दरअसल ग्वालियर का हर गली कूचा ऐसा है जहाँ से अटल जी की यादें जुड़ीं है। वे भले ही जन्में उत्तर प्रदेश के यमुना किनारे बसे गाँव बटेश्वर में लेकिन वे वहां बस कुछ दिन ही वहां रहे और फिर ग्वालियर आ गए जहाँ उनके पिता सिंधिया रियासत में शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई का जन्म 25 दिसंबर 1924 को उत्तर प्रदेश के बटेश्वर गांव में हुआ था लेकिन उनका बचपन ग्वालियर के कमल सिंह के बाग में गुजरा उन्होंने प्राथमिक और स्नातक की शिक्षा भी ग्वालियर से हासिल की थी। वे यहां जनकगंज शाखा में जाकर आरएसएस के सम्पर्क  में आये और फिर अपना जीवन उसी को सौंप दिया। उन्होंने राजनीति का ककहरा भी यहीं सीखा और विक्टोरिया कॉलेज ( वर्तमान एमएलबी कॉलेज ) में छात्रसंघ पदाधिकारी बने। यहीं से कविता लेखन की शुरुआत की। यहीं  की गलियों में अपने सहपाठियों के साथ गुल्ली डंडा और खो - खो खेला। बाद में वे आगे बढ़ते गए और उनकी बचपन की यादें फ़साने बनकर आज भी कहि -सुनी जातीं हैं ।  इसलिए ग्वालियर से जुड़ी यादें और उनकी कार्यशैली को लोग आज भी बड़ी  शिद्दत याद करते हैं।ग्वालियर में उनका पैतृक घर कमल सिंह के बाग में स्थित है और इन्हीं गलियों से होकर उन्होंने राजनीति की शुरुआत की और उसके बाद वह ग्वालियर से दिल्ली तक के सफर को तय किया।अब ग्वालियर में स्थित अटल जी का घर एक लाइब्रेरी के रूप में तब्दील कर दिया गया है अटल जी जब जिंदा थे तब उन्होंने ही अपने घर को लाइब्रेरी बनाने का निर्णय लिया था आज उनका यह सपना पूरा हो गया है।



स्कूल बना स्मारक



अटल  विहारी वाजपेयी की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा महारा बाड़ा स्थित गोरखी स्कूल में हुई। यह स्कूल तब सिंधिया राज परिवार द्वारा संचालित होता था लेकिन स्वतंत्रता के बाद यह स्कूल मध्यप्रदेश सरकार के अधीन हो गया। अटल बिहारी वाजपेई नहीं जिस स्कूल में पढ़ाई की उस स्कूल के छात्र और शिक्षक अपने आप को गर्व महसूस करते हैं ग्वालियर में स्थित गोरखी स्कूल का हर कमरा और मैदान अटल जी की यादों से संजोया गया है। 1935 -37 में जब अटल जी स्कूल में पढ़ाई करते थे तो उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेई इस स्कूल में शिक्षक थे स्कूल प्रबंधक ने आज भी उस रजिस्टर को सुरक्षित रखा है जिसमें अटल जी की उपस्थिति दर्ज हुआ करती थी। अब इस स्कूल को में अटल जी के नाम पर एक छोटा स्मारक भी बनाया गया है जिसमें उनसे जुड़े फोटो और ग्वालियर में उनके परिजनों के पास मौजूद उनके निजी वस्तुओं को संग्रहित करके रहा गया है।

खाने के शौक के किस्से आज भी जीवंत हैं  

  अटलजी खाने के बहुत शौकीन थे।यही वजह है कि ग्वालियर शहर में कई दुकानें आज भी स्थित हैं  जहाँ  वे अपने बाल्य काल और अपनी युवा अवस्था में अटल बिहारी बाजपेई उन दुकानों पर घंटों बताया करते थे।ग्वालियर में नया बाजार में  स्थित बहादुरा स्वीट्स के लड्डू और रसगुल्ले अटल जी को बेहद पसंद थे और कहा जाता है कि जब वह प्रधानमंत्री थे तो लोग बहादुरा के लडडू और रसगुल्ले यहां से ले जाते थे और यही उनका एंट्री पास हुआ करता था।इसके साथ ही शहर में एक पुरानी सड़क किनारे लगने वाली दुकान के गरमागरम  मंगोडे भी उन्हें पसंद थे। यहाँ यह मंगोड़े एक अम्मा बनाती थी। एक बार जब पीएम के तौर पर अपना जन्मदिन मनाने ग्वालियर आये तो उन्हने इन अम्मा को भी मिलने बुलाया था। पहले वे वही जाकर मंगौड़े खाते थे लेकिन जब वे राष्ट्रीय नेता हो गए तब भी उन्होंने इसका स्वाद नहीं भूला। वे जब भी ग्वालियर आते वहां से मंगाकर मंगौड़े अवश्य खिलाते थे।



मेले के शौक़ीन



अटल जी को बचपन से ही ग्वालियर मेले को लेकर ख़ास आकर्षण था और यह भी ताउम्र कायम रहा। वे अनेक राष्ट्रीय ओहदों पर होते हुए भी अचानक बिना किसी को पूर्व सूचना दिए मेले में पहुँच जाते थे और अकेले ही घुमते रहते थे जब तक प्रशासन और पार्टी नेताओं को इसकी भनक लगती वे ट्रैन पकड़कर दिल्ली लौट भी जाते थे। बीजेपी के वरिष्ठ  नेता और उनके साथ काम कर चुके राज चड्ढा जब ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष बने तब मेले ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे किये थे। चड्ढा जी उन्हें इसके समारोह में आमंत्रित करने दिल्ली गए। वे आये भी और उस समारोह में उन्होंने मेले और ग्वालियर से जुड़ीं अनेक यादें अपने भाषण में सुनाईं जिन्हे सुनाते समय वे अनेक बार भावुक हुए। ऐसी ही अनेक यादें आज भी लोगों के दिलो दिमाग में है। इसीलिए अटल जी का जन्मदिन हो या पुण्यतिथि ग्वालियर के लिए सदैव ख़ास रहती है।


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