Bhopal. चुनाव से पहले बिजली गुल यानी सरकार की सिट्टीपिट्टी गुम। मध्यप्रदेश में भी कुछ यही हाल है, जहां लगातार बिजली संकट गहरा रहा है। इस गहराते संकट के बीच भीषण गर्मी लोगों के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है। मध्यप्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़े हैं। स्थानीय चुनाव में भी बीजेपी को लोगों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस चाहती तो इस मुद्दे पर जनता का भरोसा जीत सकती थी। सरकार की रातों की नींद उड़ा सकती थी। लेकिन सरकार से सुस्त तो कांग्रेस नजर आ रही है। इसका विरोध प्रदर्शन या छुटपुट जगहों पर हो रहा है या फिर सोशल मीडिया तक सिमटा हुआ है, जो भीषण गर्मी सरकार के पसीने छुटा सकती है। फिलहाल कांग्रेस में उस गर्मी का डर ज्यादा दिखाई दे रहा है। क्या इसलिए कांग्रेस और उसके नुमाइंदे अघोषित बिजली कटौती और कोयला संकट पर मोर्चा खोलने से पीछे हट रहे हैं।
प्रदेश में हो रही अघोषित बिजली कटौती
पूरे देश की तरह मध्यप्रदेश में भी पारा दिनों दिन ऊपर चढ़ रहा है। गर्मी से जनता बेहाल है। मध्यप्रदेश में थोड़ा बहुत बिजली संकट तो कई बार देखा गया है। लेकिन इस बार हालात विकट हैं। लंबे समय बाद प्रदेश अघोषित बिजली कटौती के चुंगल में फंस गया है। दिलचस्प ये है कि 38 हजार करोड़ रूपये चुकाने के बावजूद प्रदेश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अघोषित बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल देकें तो यहां अभी चार से छह घंटे तक की कटौती हो रही है। सरकार का दावा तो ये है कि डिमांड और सप्लाई में 571 मेगावॉट की कमी आ रही है। जबकि जानकार कुछ और ही मान रहे हैं। उनके मुताबिक प्रदेश में 1500 से 2000 मेगावॉट की बिजली कम है।
शिवराज सरकार ने बिजली संकट से मुंह मोडा
मध्यप्रदेश के पूर्व बिजली अधिकारी इस मामले में सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। पूर्व अधिकारियों का कहना है कि सरकार जानबूझ कर प्रदेश में गहराते इस संकट से मुंह मोड रही है। बिजली विभाग की कुछ गलतियों की वजह से भी प्रदेश में बिजली का संकट है जबकि पड़ोसी राज्यों को ठीक ठाक बिजली मिल रही है। डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव की फिक्र में जुटी सरकार फिलहाल मुंहबाय खड़ी मुसीबत को नजरअंदाज कर रही है। किस्मत से विपक्ष भी इस मामले में इतना खामोश है कि जनता के पास अपनी आवाज खुद उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है।
मीटिंग में बिजली संकट का मुद्दा भी उठा
सरकार मस्त, कांग्रेस सुस्त और जनता त्रस्त। बिजली गुल होती है और एसी, कूलर और मशीनों का शोर थम जाता है। कांग्रेस का हाल भी बिजली गुल हुए सिस्टम की तरह नजर आ रहा है, जो बिजली कटौती को जमकर मुद्दा बना सकती थी। पर ताज्जुब की कमलनाथ ने ट्वीटर पर सरकार से नाराजगी जाहिर की। अभी हाल ही में उनके घर मीटिंग भी हुई। सुना है उस मीटिंग में बिजली संकट का मुद्दा भी उठा। लेकिन कोई ऐसी रणनीति नहीं बन सकी जो सड़क पर उतर कर सरकार के पसीने छुटाने का काम कर सके। कहीं-कहीं से इक्का-दुक्का प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। जिसकी आवाज सत्ताधीशों तक पहुंचना ही नामुमकिन है। ऐसे में ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि कांग्रेस हाथ आए मुददों को भी ठीक से भुना नहीं पाती है। जबकि विपक्ष में कुछ महीनों के लिए ही बैठी बीजेपी ने ये गलती नहीं की थी।
कमलनाथ के दौर में भी था बिजली संकट
साल 2019, जून का महीना। ये वो समय था जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष और विधायक लालटेन लेकर सड़क पर चलते नजर आते थे। उस वक्त मध्यप्रदेश पर कमलनाथ की सरकार काबिज थी। शिवराज सिंह चौहान विपक्ष का हिस्सा थे। उस वक्त प्रदेश में बिजली संकट ने दस्तक दी। मौका ताड़ने में बीजेपी ने देर नहीं की खुद तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुजालपुर से लालटेन यात्रा शुरू की। भोपाल में विश्वास सारंग, साध्वी प्रज्ञा भारती, राकेश सिंह और रामेश्वर शर्मा लालटेन लेकर पदयात्रा करते दिखे।
कोयला संकट को दूर करने की कवायद शुरू
विपक्ष में रहकर संघर्ष का ये माद्दा फिलहाल कांग्रेस में मिसिंग नजर आ रहा है। बिजली की किल्लत के साथ साथ कांग्रेस में भी वो स्पार्क गायब है, जो सरकार को इस लापरवाही के लिए नाको चने चबवा दे। सरकार की लापरवाही इस बात से जाहिर है कि समय रहते कोयला संकट को दूर करने की कवायद शुरू नहीं की गई। अब बिना किसी जानकारी के लिए गांवों में घंटो बिजली गोल है और शहरों में थोड़ी थोड़ी कटौती जारी है। इस संकट का अंदाजा काफी पहले से हो गया था। लेकिन कांग्रेस कोई ठोस रणनीति बनाकर सरकार के खिलाफ मैदान में नहीं उतर सकी।
कोयला की बचा जरूरी
मध्यप्रदेश के चार थर्मल पावर प्लांट में अब 2 लाख 60 हजार 500 मिट्रिक टन के आसपास ही कोयला बचा है। जबकि फुल कैपिसिट से पावर प्लांट चलाने के लिए हर रोज 80 हजार मिट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो कोयला बचा है वो कितने दिन काम आएगा। हालत गंभीर देख बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने दिल्ली भागदौड़ शुरू कर दी है। तोमर हाल ही में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर के आए हैं। सूत्रों के मुताबिक तोमर वहां जानकारी देकर आए हैं कि मध्यप्रदेश को रोज 8.6 रैक कोयला मिल रहा है जबकि जरूरत 12.5 रैक की है।
नाराजगी जाहिर की
कांग्रेस की खामोशी के चलते आम जनता ने खुद अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दी है। हरदा के किसानों ने पिछले दिनों स्थानीय बिजली दफ्तर का घेराव कर अपनी नाराजगी जाहिर की। अफसोस की उस समय अधिकारी कर्मचारी दफ्तर से नदारद थे। विधायक शशांक भार्गव और विधायक विजय चौरे ने स्थानीय स्तर पर बिजली दफ्तर के बाहर धरना जरूर दिया। लेकिन ये प्रदर्शन तो ऊंट के मुंह में जीरे से भी कम है।
हालात बिगड़ते देख डेमेज कंट्रोल शुरू
बिजली गुल है और कांग्रेस का मीटर डाउन है। चुनावी मौसम को भांपते हुए कांग्रेस बिजली के मुद्दे पर सरकार को घेरने में बुरी तरह फेल रही है। चुनावी साल से पहले इस मुद्दे पर हल्ला बोलकर कांग्रेस भरपूर राजनीतिक माइलेज ले सकती है। लेकिन फ्यूज बल्ब बन कर रह गई, जो कभी कभी गलती से टिमटिमा देता है और फिर बंद हो जाता है। इसी सुस्ती का फायदा बीजेपी उठा रही है। पहले तो बिजली की किल्लत की लापरवाह रही लेकिन हालात बिगड़ते देख डेमेज कंट्रोल में भी पीछे नहीं है। अघोषित बिजली कटौती का मामला तूल पकड़े उससे पहले शहरों में हालात काबू में कर लिए गए हैं। डबल इंजन की सरकार शायद चुनावी राज्य में स्थिति जल्दी सुधार भी ले। लेकिन मुद्दा उठाने में कांग्रेस ने जिस जज्बे की कमी दिखाई है उसकी कमी पूरी होना कोयले की कमी पूरी होने से ज्यादा मुश्किल दिखाई देता है।