Panna. देश के दिल कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश के पवित्र शहर पन्ना में हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा(Rath Yatra) की परम्परा अनूठी है। देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है। ओडिशा के जगन्नाथपुरी(Odisha Jagannathpuri Yatra) की तर्ज पर यहां आयोजित होने वाले इस भव्य धार्मिक समारोह(religious ceremony) में राजशी ठाट-बाट और वैभव की झलक देखने को मिलती है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी(Lord Jagannath Swamy)की एक झलक पाने समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। पन्ना जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह के दरम्यान यहां की अद्भुत और निराली छटा देखते ही बनती है।
170 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी
जगन्नाथ रथयात्रा पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह द्वारा शुरू कराई गई थी, जो परम्परानुसार अनवरत जारी है। इस वर्ष रथयात्रा आज 1 जुलाई को शाम 6:30 बजे पूरे विधि-विधान के साथ जगन्नाथ स्वामी मन्दिर(Jagannath Swamy Temple) से निकलेगी। उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले की प्राचीन व ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव(Ancient and Historical Rath Yatra Festival) की शुरुआत तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह(Panna Naresh Maharaja Kishore Singh) ने की थी। उस समय वे पुरी से भगवान जगन्नाथ स्वामी जी की मूर्ति लेकर आये थे और पन्ना में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। पुरी में चूंकि समुद्र है इसलिए पन्ना के जगन्नाथ स्वामी मन्दिर के सामने सुन्दर सरोवर का निर्माण कराया गया था। तभी से यहां पुरी की ही तर्ज पर रथयात्रा समारोह का आयोजन होता है जिसमें लाखों लोग पूरे भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। ऐसी कहावत है कि जिस वर्ष यहां मन्दिर का निर्माण हुआ तो यहां अटका चढ़ाया गया। महाराजा किशोर सिंह को स्वप्न आया कि पन्ना में अटका न चढ़ाया जाए अन्यथा पुरी का महत्व कम हो जायेगा। इसलिए यहां भगवान जगन्नाथ स्वामी को अंकुरित मूंग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। आज भी यहां पर अंकुरित मूंग व मिश्री का प्रसाद चढ़ता है। जानकारों का यह कहना है कि राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा(Panna Rath Yatra) बड़े ही शान-शौकत व वैभव के साथ निकलती थी। इस रथयात्रा में सैकड़ों हांथी, घुड़सवार, सेना के जवान, राजे-महाराजे व जागीरदार सब शामिल होते थे। रूस्तम गज हाथी की कहानी भी यहां काफी प्रचलित है। बताते हैं कि तत्कालीन महाराज का यह प्रिय हाथी रथयात्रा में अपनी सूंड से चांदी का चौर हिलाते हुए चलता था। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीय तिथि को यहां पुरी के जगन्नाथ मन्दिर की तरह हर साल रथयात्रा निकलती है। रथयात्रा के दौरान यहां भी भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मन्दिर से बाहर सैर के लिए निकलते हैं। यह अनूठी रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर तीसरे दिन जनकपुर पहुंचती है। जनकपुर मंदिर के पुजारी उदय मिश्रा बताते हैं कि महाराजा किशोर सिंह के पुत्र हरवंशराय द्वारा जनकपुर में भी भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया था। रथयात्रा के जनकपुर पहुंचने पर यहां के मन्दिर को बड़े ही आकर्षक ढ़ंग से सजाया जाता है तथा यहां पर मेला भी लगता है।
रथयात्रा को रियासत काल जैसा महत्व अब नहीं मिल रहा
राजशाही जमाने में शुरू हुई पन्ना की इस प्राचीन और ऐतिहासिक रथयात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर जो पहचान मिलनी चाहिये थी, वह नहीं मिल सकी। इस दिशा में यदि शासन स्तर पर ठोस व प्रभावी पहल की जाये तो पन्ना में ईको टूरिज्म के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है। रियासत काल में इस समारोह का महत्व इतना ज्यादा था कि तत्कालीन नरेशों ने जगन्नाथ स्वामी मन्दिर से लेकर अजयगढ़ चौराहा तक डेढ़ किमी. रथयात्रा मार्ग के दोनों तरफ बरामदा का निर्माण कराया था, जहां पर रथयात्रा में शामिल होने के लिए आने वाले श्रद्धालु ठहरते थे लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते वह प्राचीन व्यवस्था अतिक्रमण के चलते ध्वस्त हो गई, जिससे रथयात्रा वाला मार्ग संकीर्ण हो गया है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पन्ना के ऐतिहासिक रथयात्रा को उसका पुराना वैभव वापस दिलाने की दिशा में रूचि ली थी, वे 2003 में पन्ना आकर समारोह में शामिल भी हुए थे लेकिन इसके बाद फिर किसी मुख्यमंत्री ने पन्ना की प्राचीन रथयात्रा को वह महत्व नहीं दिया, जिसकी पन्ना नगर के लोग अपेक्षा करते हैं।
शासन से नहीं मिलता सहयोग
पन्ना की प्राचीन ऐतिहासिक रथयात्रा को राजशाही ज़माने की तरह पूरे ठाट-बाट व वैभव के साथ निकालने हेतु शासन से जिस तरह का सहयोग मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता। अपेक्षित सहयोग न मिल पाने से पन्ना का यह सबसे बड़ा धार्मिक समारोह अब सिर्फ परम्परा के निर्वहन तक सिमट कर रह गया है। जगन्नाथ स्वामी मंदिर के पुजारी राकेश गोस्वामी ने बताया कि पिछले साल रथयात्रा में हुए खर्च का 1 लाख 48 हजार रुपये अभी तक मंदिर को नहीं मिला। इस वर्ष की तैयारियों बावत पूछे जाने पर बताया कि रथयात्रा समारोह के आयोजन को लेकर पिछले दिनों हुई बैठक में कलेक्टर पन्ना ने पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव का हवाला देकर जनसहयोग से रथयात्रा निकालने को कहा है। जनता के सहयोग से व्यवस्थाएं की जा रही हैं, शासन व प्रशासन से अभी तक कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। किसी अधिकारी ने मंदिर आकर व्यवस्थाओं व तैयारियों की खोज खबर भी नहीं ली।
रथयात्रा को मिले राज्य उत्सव का दर्जा
पन्ना के प्रबुद्धजनों व श्रद्धालुओं का कहना है कि समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोगों की आस्था व धार्मिक महत्ता को देखते हुए पन्ना की ऐतिहासिक व प्राचीन रथयात्रा समारोह को राज्य उत्सव का दर्जा मिलना चाहिए। पूर्व में इस बावत प्रशासनिक स्तर से पहल भी की गई है। तत्कालीन प्रभारी अधिकारी धर्मार्थ रत्नेश दीक्षित ने बताया कि पन्ना की रथयात्रा समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिए गौरव की बात है। आपने बताया कि पन्ना की रथयात्रा को राज्य उत्सव के रूप में स्थापित करने हेतु धर्मार्थ सचिव मनोज श्रीवास्तव को पत्र भेजा जाकर इस दिशा में आवश्यक पहल करने का अनुरोध किया गया था। समारोह के लिए शासन से आर्थिक सहयोग प्रदान किये जाने की मांग भी की गई थी, लेकिन इस पहल और प्रयास के सार्थक परिणाम सामने नहीं आ सके। शासन से अपेक्षित सहयोग न मिलने के बावजूद इस वर्ष रथयात्रा समारोह में जनसहयोग से बुन्देलखण्ड के प्राचीन परिवेश व परम्पराओं की झलक मिले, इसका पूरा प्रयास किया जा रहा है।