DAMOH:17वी शताब्दी में स्वयं प्रगट हुए थे भगवान जागेश्वरनाथ भगवान, हजारों श्रद्धालु पहुंचेंगे

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Rajeev Upadhyay
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DAMOH:17वी शताब्दी में स्वयं प्रगट हुए थे भगवान जागेश्वरनाथ भगवान,  हजारों श्रद्धालु पहुंचेंगे

Damoh. जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर बुंदेलखंड के प्रसिद्घ तीर्थ क्षेत्र जागेश्वरनाथ धाम बांदकपुर में विराजमान भगवान  शिव को  13 वें ज्योर्तिलिंग रुप में जाना जाता है। यह स्वयंभू शिवलिंग 17वी शताब्दी में अपने आप ही जमीन के नीचे से प्रकट हुए थे। तभी से यह तीर्थ क्षेत्र जागेश्वरधाम बांदकपुर के नाम से जाना जाने लगा। इस मंदिर के सामने ही माता पार्वती का मंदिर है। यहां मांगी जाने वाली सभी मनोकामनाएं भगवानभोलेनाथ पूरी करते हैं। श्रावण सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।




आज लगा श्रद्धालुओं का तांता




 आज श्रावण सोमवार को मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। यहां दिनभर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। देश के बड़े-बड़े राजनेता भी भगवान जागेश्वरनाथ के दर्शन कर चुके हैं। 




महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन




यहां महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सभी धार्मिक रीति, रिवाज के साथ संपन्न होता है। इस दिन भगवान को जलअर्पित करने पूरे प्रदेश से हजारों श्रद्घालु पहुंचते हैं।




1772 में स्वयं प्रकट हुआ शिवलिंग




श्रीजागेश्वरनाथ धाम बांदकपुर का इतिहास अतिप्राचीन है। शास्त्रों के अनुसार स्कंद पुराण के रेवा अवंतिका खंड में जागेश्वरनाथ महादेव का वर्णन मिलता है। कालांतर में बाणासुर नाम का राजा हुआ जो भोलेनाथ का परम भक्त था। जिसके द्वारा रेत के शिवलिंग बनाने का वर्णन आता है जो बाद में भौगोलिक परिवर्तनों के कारण भूगर्भ में समा गया और 17वी शताब्दी में 1772 में जमीन के नीचे से स्वयं प्रगट हुआ था। उस समय बांदकपुर विशाल जंगली क्षेत्र था।





हर दस वर्ष में बदली जाती है जलहरी





यह शिवलिंग इतना विशाल है कि श्रद्धालुओं की दोनों भुजा में समाहित नहीं हो पाता है। भगवान शिव की महिमा ऐसी है कि शिवलिंग की मोटाई बढ़ती चली जा रही है। जिसका प्रमाण है कि  शिवलिंग की चांदी जलहरी छोटी पड़ने पर हर दस वर्ष में बदली जाती है। जागेश्वरनाथ महादेव मंदिर से सौ फीट की दूरी पर पश्चिम में पार्वती माता का मंदिर है। माता पार्वती की प्रतिमा की दृष्टि सीधे भगवान जगेश्वरनाथ महादेव पर आकर पड़ती है। शिव-पार्वती के बीच में अवरोध पैदा न हो इसलिए नंदी की प्रतिमा स्थापित की गई है। 13वे ज्योर्तिलिंग जगेश्वरनाथ महादेव के धाम मंदिर के उत्तर में यज्ञमंडप ठीक सामने अमृतकुंड, उत्तर में भैरव जी व मां दुगर का मंदिर,पार्वती जी के दक्षिण रामजानकी मंदिर, मारुति नंदन मंदिर, नर्मदा, लक्ष्मी नारायण मंदिर पश्चिम में राधा- कृष्ण मंदिर है। यहां मुंडन संस्कार किए जाते हैं।




आपस में मिल जाते हैं दोनों मंदिर के झंडे




महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह धूमधाम से संपन्न होता है। बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि पर्व पर हजारों की संख्या में कांवरिए नर्मदा जल लेकर पैदल बांदकपुर पहुंचते हैं और महादेव की पिंडी पर चढ़ाते हैं। प्राचीन मान्यता है महाशिवरात्रि पर सवा लाख कांवर चढ़ाने पर माता पार्वती और भगवान शिव के मंदिर के झंडे आपस में मिल जाते हैं और मिलकर अपने आप गांठ बन जाती है।




प्राचीन इमरती के जल से होता है अभिषेक




भोलेनाथ के मंदिर के समीप ही एक प्राचीन जलकुंड है जिसे इमरती कहते हैं। इसका पवित्र जल भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है। यह कुंड सदा अपार जल से भरा रहता है इसका पानी आज तक खाली नहीं हुआ।


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